लगभग जान देना, जान देने से बड़ा होता है
lagbhag jaan dena, jaan dene se baDa hota hai
अनुराग अनंत
Anurag Anant
लगभग जान देना, जान देने से बड़ा होता है
lagbhag jaan dena, jaan dene se baDa hota hai
Anurag Anant
अनुराग अनंत
और अधिकअनुराग अनंत
ज़रूरी नहीं कि तुम बोलो और कोई सुन ही ले
ज़रूरी तो यह भी नहीं कि सुन कर कुछ कर ही दे
इसलिए आवाज़ निकालने की व्यर्थता
को सहलाते हुए मौन रहने का विकल्प
चुन लेते हैं जीवन और दुनिया देख चुके लोग
सब लोगों की दुनिया एक बराबर नहीं
किसी की दुनिया में सिर्फ़ चार लोग हैं
तो किसी की दुनिया में वह अकेला
और किसी किसी की दुनिया में
वह स्वयं भी नहीं है, जिसकी वह दुनिया है
वहाँ मात्र स्मृति और अबूझे विचार हैं
उस पानवाले के उदास चेहरे की तरह
जो मेरा नाम नहीं जानता पर मुझे जानता है
उसे मालूम होता है कि जब मैं उसकी दुकान के सामने खड़ा होता हूँ
तो तुम्हारे बारे में सोच रहा होता हूँ
उसे मालूम है मंगल ग्रह सिर्फ़ अंतरिक्ष में ही नहीं है
बल्कि तुम्हारी गली के चौथे मकान में भी है
उसे मालूम है 'यथार्थ' और 'लगभग यथार्थ' के बीच कितना फ़ासला है
और यह भी कि मैं एक दिन
इसी फ़ासले के बीच
गिर कर लगभग ख़त्म हो जाऊँगा
वह व्यक्ति कवि नहीं है
पर यह ज़रूर जानता है कि लगभग ग़ायब हो चुके
लोगों को बचा लिया जाना चाहिए
यदि बचाना चाहते हैं हम
यह दुनिया और इसके रंग
वह मुझसे कहता है
कि यदि ज़रूरत पड़ेगी तो
वह मुझे बचाने के लिए
लगभग अपनी जान दे सकता है
उसके बीवी-बच्चे हैं
इसलिए जान देने का विकल्प उसके पास नहीं है
'जान देना' छोटी बात है
और 'लगभग जान देना' उससे बड़ी
एक छोटी बात के सामने उससे बड़ी बात खड़ी हो तो
जीवन 'लगभग जीवन' होने से बच जाता है।
- रचनाकार : अनुराग अनंत
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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