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कोई मुझसे पूछे

koi mujhse puchhe

अजय सिंह

अजय सिंह

कोई मुझसे पूछे

अजय सिंह

और अधिकअजय सिंह

    कोई मुझसे पूछे

    वह तुम्हारे लिए क्या है

    मैं कहूँगा : वह मेरी मुक्ति है

    आज़ादी की तमन्ना

    खुली हवा

    कभी उन्मुक्त झरना

    कभी दहकती चट्टान

    कभी प्यास

    कभी तृप्ति

    कभी मृग मरीचिका

    कभी रसीले चुंबन

    कभी अथाह यातना

    कभी अपार सुख

    कभी पर पीड़ा

    कभी अनंत इंतज़ार

    बन कर वह मुझसे लिपट जाती है

    मैं उसकी देह के सुनहरे जंगल

    में बार-बार गुम होता हुआ

    लौटता हूँ सुरक्षित

    नए जीवन की ओर

    वह ऐसे मिलती है

    जैसे धान के खेत की बगल में

    अड़हुल का फूल अचानक दिखे

    अपनी मोहक सुंदरता

    से बेपरवाह

    हवा में धीरे-धीरे हिलता हुआ

    और ख़ुशी के मारे आप चिल्ला उठें

    और उसकी ओर लपकें

    अरे, तुम यहाँ!

    मुझे उस पर भरोसा है

    जैसे तीसरी दुनिया के सर्वहारा

    और प्रगतिशील निम्र-पूँजीवादी बुद्धिजीवी को

    मार्क्स और माओ पर

    स्रोत :
    • रचनाकार : अजय सिंह
    • प्रकाशन : समालोचन वेब पत्रिका

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