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कविता, लड़की और सेफ़्टी पिन

kawita, laDki aur safety pin

कमल जीत चौधरी

कमल जीत चौधरी

कविता, लड़की और सेफ़्टी पिन

कमल जीत चौधरी

और अधिककमल जीत चौधरी

    वह लड़की

    नमक को पहरे पर बैठाकर

    बिना सांकल वाले ग़ुसलख़ाने में नहाकर

    जब बाल सुखाती है

    तो उसके छोटे आँगन की

    कच्ची दीवारें टख़नों तक दब जाती हैं

    गली उसे ताड़ने के लिए

    उसके आँगन से ऊँची हो जाती है

    वह गिलहरी बन

    अपने जामुन के ऊँचे पेड़ पर चढ़ जाती है

    उसे रात को सपना आता है

    वह जामुन का पेड़ बन गई है

    जोंकें उस पर चढ़कर

    उसका जामुनीपन चूस रही हैं

    सुबह स्वप्न-फल पढ़कर

    वह पूरे गाँव के बीच खारा समुद्र हो जाती है...

    एक जोड़ी आँखें तलाशती

    जो उसे आँख से

    आँख तक

    आँख भर देख सके

    वह कविता लिखती है

    जिसके बिंब झाड़ियों में

    फड़फड़ाते पक्षियों को बाहर निकालते हैं

    जिसके प्रतीक

    मोटी गर्दन की टाई को पकड़ लेते हैं

    जिसके भाव

    आग और ताव को

    अपने प्रेमी के सुर्ख़ होंठों में

    दबाकर रख लेते हैं

    जिसकी भाषा सफ़ेद कोट पर स्याही छींटती

    तालियाँ बजाती है

    जिसकी संवेदना

    युग के टूटते बटनों और

    फ़्री होती जिप के बीच मुझे

    सेफ़्टी पिन के समान लगी :

    अफ़स्पा के शहर में

    शिद्धत से चूम कर

    आजकल मैंने इसी सेफ़्टी पिन को

    अपने दिल के साथ लगाया है

    लोग मुझे पूछ रहे हैं

    अजी क्या हो गया!!

    'ग़ालिब' कोई बतलाए कि हम बतलाए क्या...

    स्रोत :
    • रचनाकार : कमल जीत चौधरी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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