कविता अपने जर्जरीभूत रूप में
kavita apne jarjribhut roop mein
कबीर के निर्भय निर्गुण से मेल खाती एक और
समकालीन कविता
कविता के ऊपर लिखी जा रही अद्भुत
विश्लेषणात्मक पंक्तियों की शृंखला में
एक और समकालीन कविता
इस तरह से रोटी तोड़ने के विषय में
दाल-चावल कविता
महँगे ब्याह पंडाल में पनीर टोफ़ू कुकुरमुत्ते के
विरोध में खड़े हुए
प्रत्याशी-कवियों-कवयित्रियों की परवल-कविता
करेला-कविता नारियल-कविता
गोभी-कविता जैसे कई प्रयासों को देखते बनती
नमक-घी कविता
पिता जी के बचपने में गर्भ है इस कविता का
पापा का फूला हुआ
ग़ुस्से में लाल-पीला होता मुँह
मेरे इतना कहने पर कि ‘ये नहीं खाना’ कविता को
उपमा-तिल उपमा-मस्सा दे गया
पीठ पर एक भद्दी गाँठ
डॉक्टरों की राय में अहिंसक
जैसे माँ का हर बार ठहाके लगाते हुए छाप देना
पंजे से पृथ्वी-अंक
भूरे रंग पर भूरा-लाल
कविता पर कविता लिखे जाने की समकालीन कविता
निर्भय निर्गुण कविता के ऊपर
किम-जॉन्ग-उन कविता
प्यूटिन-ट्रम्प इन कविता ऑफ़ द सब-आल्टर्न
लिप्यंतरण में ध्वस्त हो रहे
आलोचक-घटोत्कच-चेकोस्लोवाकिया-चेक
युद्ध-बास अथवा युद्ध-रास
पे डोरे डालती कविताओं की सूची में गिनती
बढ़ाने हेतु यह गिनती-कविता
विनती-कविता! क्षमा करना पाठक-देव-देवी-देवो!
मगर युग का चरित्र निर्माण उठाओ
और देखो कि हर दिशा में ‘कविता पे कविता पेले रहो’
‘झेले रहो’
बमबारी-गनबारी-टिकटबारी बारियों पर नज़र फेरो
यही है तुम्हारा साहित्यिक विमर्श
जीवन-विमर्श डीमन-विमर्श या कहो भाषा-मल्टीवर्स
गाली-गलौज-मौज-हौज-फ़ौज
(प्रधानमंत्री जी! डॉज!) से भरा हुआ गद्य
गद्य से भरा हुआ समाज-मूल्यांकन
[कविता कहने में क्रोध पहले कह जाना―पन] अपनापन? कहीं नहीं
अपनापन सपना-बन गंगा-मल कल्ला-ज़न
सब एक तरफ़
दुःख की दो-एक झालरों के बीच
(भाषाविद् होने का प्रमाण-पत्र―कविता)
नियमबद्ध कविता
प्रोफ़ेसरबद्ध कविता
पियरबद्ध कविता
क्रिटिकबद्ध कविता अथवा कविताबद्ध कविता
अर्थ तो हइये है बाबू!
बिना अर्थ के कविगण निवाला नहीं उतारेंगे!
मुझे व्यर्थ में चिंता लगी रहेगी
अर्थ है! अर्थ है! (थोड़ी मोहलत दे दो) बस आ रहा
स्ट्रेचर पर लेटा है अर्थ
बेटी जैसा बेटा है अर्थ
जिसके बारे में शेखी बघारने में
कहीं कोई और बात न निकल जाए का अर्थ
(छुपाए रखने पर समलैंगिकता समतल
हो जाती है—अर्बन स्वामीज़) गुरु जी ने
पुड़िया वाले हकीम ने
वज़ीर-ए-आज़म और अज़ीम-ओ-शान-शहंशाह
(सब एक ही हैं) ने किसी भी टिप्पणी से
मुँह फेरा जैसे बात उनके स्तर से
कुछ नीचे की हो
हेटरो-मेट्रो-पेड्रो कविगण ने समलैंगिक प्रेम पर
कथाओं का अंबार चीर-फाड़ कर
अपना कर्तव्य-व्यवहार-व्यवसाय निष्ठा से
निभाया (शार्ट में, चुना लगाया! हाँ, सच में, मैं कह रहा हूँ ना)
सह रहा हूँ न इसलिए परिचित हूँ
कोई कितना समझ रहा है
मेरे उठ रहे रोंगटे और बढ़
रहे रक्तचाप में मेरी समलैंगिकता का भेद
यह पहले शब्द से भाप लेता हूँ
(स्कूल में सुना था किसी सीनियर के मुँह से—
‘कच्छा देख के, नुन्नु नाप लेता हूँ!’)
ऐसे और इस प्रकार के महानुभावों के उपदेशों से
सुसज्जित-लज्जित-फ़क्ड-इट कविता
ठेस से लैस
यानी आपके पेट में गुड़गुड़ी मचाने पर उतारू—
जुझारू—(अब तुम झुको, मैं मारूँ?) कविता
—अभद्र
सब्र तो हासिल-ए-कुन भी नहीं है
दूर-दूर तक नहीं है इन पंक्तियों में इलास्टिक-समझौता
ज़्यादा खींचातानी बुझाओगे तो
और भी ख़राब लिखूँगा
जी, धमकी भी है
प्रेम भाषा नवरस एस्थेटिक प्रोस्थेटिक पथेटिक
आपका अपना मत
आपका अपना योजन-भोजन-स्लोगन-ट्रोजन-हॉर्स!
मेरा? चल रही समकालीन कविता का कोड-मोर्स
आज नहीं
आने वाले सौ? हज़ार? शायद लाख वर्षों में
कोई और बौड़म-गाय-गे-स्ट्रीट-स्मार्ट कवि जब
पढ़ेगा ना ये कविता तब
अनुगूँज में―अर्थ-नून में―मई-जून में―
काव्य-लून में कटेगा बाल उस कविता का जिस में बहुते
होगा पाखंड-डैंड्रफ़
आज ही थोड़े सर चकराया जो आज ही तुम भी
समझ पाओगे
समकालीन कविता निर्गुण निर्भय इतनी कि आसन-राशन—
आनन-फानन सभी में घुस रहा होगा
यह काव्य-गान यह काव्य-स्नान यह काव्य-बाण यह
काव्य-दान
कविता में समकालीनता का प्रभाव नहीं
देखिए, कविता चलते हुए प्रवेश कर रही है हर एक
ध्वस्त हो चुके मापदंड के
हरे अभाव में
कविता-गाँव में
कविता-छांव में
(देखो कुत्ता! कुत्ते जी के भाँव-भाँव में)
- रचनाकार : अभिजीत
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.