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कभी मुझको रोप कर देखो

kabhi mujhko rop kar dekho

कुमार कृष्ण शर्मा

कुमार कृष्ण शर्मा

कभी मुझको रोप कर देखो

कुमार कृष्ण शर्मा

धान रोपते समय तुम

कौन-सा गाना गुनगुनाती हो

प्रेम का

या विरह का

ऐसा करना

इस बार

घटनों तक

कुछ कोसे

कुछ ठंडे पानी में

खड़ा हो

मुझे मेरी जड़ों से पकड़

रोप देना धान की जगह

उग आऊँगा

यक़ीन मानो

मैं उग आऊँगा

तुम बस इतना करना...

गाँव के बच्चों को

मेरे बीचोबीच दौड़ाना

बूढ़ों को कहना

मेरी मेढ़ों पर बैठ

अपनी जवानी के क़िस्से सुनाएँ

शामें जब उदास बोझिल हो जाएँ

तुम मेरी मिंजरों को

हाथ में पकड़

सहलाने आना

मैं मिट्टी को हाथ में उठा

वादा करता हूँ

तुम्हारी झोली

पके हुए दानों से भर दूँगा

मैं ऐसी फ़सल बन उग आऊँगा

जिसको

नफ़रत की कोई दराँती

कभी नहीं काट पाएगी

मैं दानों में भर दूँगा इतनी उर्जा

कोई भी पेट उसे खा

दुबारा भूखा नहीं सोएगा

मैं दूगा इतना आत्मविश्वास

जिससे ज़ुल्म की चक्की में पिसता

हर दाना

पत्थर तोड़ विद्रोह कर उठेगा

हाँ... ऐसा ही होगा

मेरा विश्वास करो

मुझको

एक बार

अपने हाथों से रोप कर तो देखो।

स्रोत :
  • रचनाकार : कुमार कृष्ण शर्मा
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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