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ग्रीष्मकालीन जहाज़

greeshmkalin jahaz

अनुवाद : वीरेंद्र कुमार बरनवाल

माची तवारा

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माची तवारा

ग्रीष्मकालीन जहाज़

माची तवारा

और अधिकमाची तवारा

    आहिस्ते जगती हुई धरती की तरह

    चलना शुरू करता है

    ग्रीष्मकालीन जहाज़

    पूर्वी चीन सागर की

    गहरी नीली सतह पर

    केवल आसमान केवल लहरें

    वे सभी झूठ जो कभी बोले थे तुमने

    उन का सचमुच नहीं है कोई अर्थ

    मानो कहता है समुद्र

    डेक पर प्रत्येक की है अपनी सुहावनी हवा

    एक व्यक्तिगत समय जब

    अवांछित है कोई बातचीत

    एकाएक लगता है अद्भुत

    कि मेरे पोर्टहोल से दिखते

    हरेक नन्हे द्वीप का है कोई नाम

    सतह पर नन्ही-नन्ही लहरें

    जैसे शिशुओं की उसांस

    मध्य वसंत में पीताभ नदी

    तुम्हारा बायाँ हाथ,

    टटोलता मेरी उँगलियाँ एक के बाद दूसरी

    शायद यह प्यार है।

    केसरिया आकाश के नीचे

    कुजुकुरी सागर तट पर

    चिपट जाती हूँ तुम से

    आप्लावित एक ही रंग में।

    आगे भी बात करना कह कर

    रख देते हो तुम टेलीफ़ोन

    मैं चाहती हूँ

    करना और बात

    ठीक अभी इसी दम।

    सॉरी बोलती हूँ हल्के से

    मानो बोला हो किसी दोस्त से

    पिता सिर्फ़ आँख गड़ा देते है चाय के प्याले में।

    तुम्हारे जाते ही

    साँझ समा जाती है मेरे अंतर में

    पूरे परिदृश्य में व्याप्त होते हो तुम।

    एक और शनिवार तुम्हारी प्रतीक्षा में

    प्रतीक्षा में बीता समय

    स्त्रियों का उपजीव्य है।

    खस्ता हाल है हमारी टीम की

    फिर भी लगती हैं ख़ुश

    सट कर बैठी तुम्हारे साथ

    मेरे जन्म दिन पर। तुम्हारे साथ। साल लगता है छोटा

    और दिन बहुत बड़ा।

    खिलता है गुलाब

    करते जानी अनजानी

    कि चार सौ येन ने बनाया है इसे मेरा

    फिर करना बात करना मेरा इंतज़ार

    तुम्हारा प्रेम होता है हमेशा मुखर

    आदेशों में

    उठती है निग़ाह बारिश की

    झड़ी की ओर, एकाएक

    खोजने लगती हूँ तुम्हारे होंठ

    गर्म हूँ—जानती हुई

    कहती हूँ जब लग रही है ठंड

    तुम भी लगते हो तैयार कहने को मुझे भी

    देर तीसरे पहर

    तुम और हम निहारते हैं एक ही चीज़

    जैसे ख़त्म हो रहा है कुछ हमारे बीच

    याद है अगस्त की वह भोर

    तुमने चालू किया था इंजिन

    और ले गए थे मुझे दूर

    कोई भी हो कारण यह नियति है

    औरत को जान लेना

    लोग नहीं रह सकते हैं प्रेम के आसरे

    आने वाली सुबह और विदा

    के आँसुओं के आस्वाद का

    बनाता हूँ एक आमलेट

    वेलेंटाइन दिवस पर—तुम से हट

    बिताती हैं दिन

    धर्म स्थल को एक साध्वी सरीखी

    जानती हुई वह रात थी

    हमारे पहले चुंबन की

    बंद कर देती हूँ अपनी डायरी ज़ोर से

    तुम ने पकड़ रखा है मुझे कस कर

    मानो मैं जा रही हूँ बहुत दूर—

    मार्च महीना है अलविदा का

    मार्च में, रहे वसंत के प्रति

    उदासीन है मेरा मन मैं निहारती हूँ

    तुम्हें 'प्लम' के ढेर से खिले फूलों में

    गुज़रते एक दूसरे के पास से

    विपरीत दिशाओं के एस्केलेटर्स पर—

    कितनी ख़ुश हूँ मैं पा कर तुम्हारा पल भर का साथ

    स्रोत :
    • पुस्तक : सूखी नदी पर ख़ाली नाव (पृष्ठ 122)
    • संपादक : वंशी माहेश्वरी
    • रचनाकार : माची तवारा
    • प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
    • संस्करण : 2020

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