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खिड़की

khiDki

फरूग़ फरूख़ज़ाद

और अधिकफरूग़ फरूख़ज़ाद

    एक खिड़की देखने को

    एक खिड़की सुनने को

    एक खिड़की कुँए के वलय सी

    धरती के लबालब हृदय से

    इस उदार नीले दुहराव पर खुलती

    एक खिड़की, अकेलेपन के नन्हे हाथों में

    रात का दुलार

    और जादुई तारों की गंध बिखेरती

    न्यौता जा सकता है सूर्य को

    जिरेनियम की रुसवाई पर

    एक खिड़की काफ़ी है, मेरे लिए।

    मैं आई हूँ गुड़ियों के शहर से

    काग़ज़ी दरख़्तों की छाया से

    चित्र-पुस्तक वाले बाग़ीचे में

    दोस्ती-प्रेम के ऊसर अनुभव,

    रूखे मौसमों से

    गर्दभरी मासूम गलियों से

    धुँधली बारहखड़ी और

    तपेदिक स्कूल की डेस्कों

    के पीछे बैठे बरसो में

    उस क्षण से

    जब बच्चे सीखते हैं

    श्यामपट पर लिखना

    पत्थर

    और बौराए सितारे

    उड़ जाते हैं पुराने दरख़्तों से

    माँसाहारी पौधों की जड़ों से

    आई हूँ मैं

    मेरा हृदय डबडबान है

    उस तितली की करुण चीत्कार से

    जो आलपीन की सलीब पर

    दफ़न है नोटबुक में।

    जब मेरी आस्था

    झूल रही थी

    न्याय के कच्चे धागे से

    और शहर भर में

    मेरे दिल-दियों को

    किया जा रहा था

    चकनाचूर।

    जब मेरे प्रेम

    की शिशु आँख

    पर बाँधी जा रही थी

    क़ानून की पट्टी काली,

    और मेरी आरज़ू

    की परीशां पेशानी

    से ख़ून के फ़व्वारे

    छूट रहे थे

    जब मेरी ज़िंदगी

    दीवालघड़ी की टिक्-टिक्

    के सिवा और कुछ भी नहीं थी,

    मैंने जाना

    कि अगर कुछ था करना मुझे

    तो सिर्फ़

    प्यार, दीवानावार।

    मेरे लिए काफ़ी है एक खिड़की

    होने के पल को काफ़ी है एक खिड़की

    और देखने को

    और चुप रहने को।

    अख़रोट की पौध

    अब अपनी पत्तियों को

    दीवार का अर्थ समझाने लायक़

    बड़ी हो गई है

    आईने से पूछो

    अपने तारनहार का नाम

    क्या यह धरती जो

    काँपती है तुम्हारे पैरों तले

    तुम से अधिक अकेली नहीं?

    सपने हर बार

    अपनी निर्मल चोटियों से गिरकर

    चूर हो जाते हैं।

    मुझे महक रही है

    एक चार पंखुरिया फूल की

    जो बूढ़े ख़्यालों की

    मज़ार पर उगा है।

    वह स्त्री जो

    अपनी पवित्रता

    और प्रतीक्षा के परदे में

    धूमिल हो गई

    वही क्या नहीं थी

    मेरी जवानी?

    वे उत्सुक सीढ़ियाँ

    क्या दुबारा चढूँगी मैं

    उस भले देवता को भेंटने

    जो टहलता होगा

    मेरे घर की छत पर?

    मुझे लगता है

    समय मुझसे आगे निकल गया है

    मुझे लगता है यही क्षण

    इतिहास के पन्नों में दबा

    मेरा भाग है।

    मुझे लगता है यह मेज़

    मेरे बालों और

    उस उदास अजनबी

    की हथेलियों के बीच

    एक अनचाहा अवरोध है

    मुझसे कहो कुछ

    क्या अपनी गर्माहट में

    तुम्हें घेरता व्यक्ति

    तुमसे जीवित होने के प्रमाण

    के अलावा कुछ और

    चाह सकता है?

    मुझसे कहो कुछ

    अपनी खिड़की की

    स्निग्ध छाया में

    सूरज से जुड़ी हूँ मैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : दरवाज़े में कोई चाबी नहीं (पृष्ठ 251)
    • संपादक : वंशी माहेश्वरी
    • रचनाकार : फरूग़ फरूख़ज़ाद
    • प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
    • संस्करण : 2020
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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