वाङ् जिङ् से आया हुआ सात वर्षीय वह लड़का
शोरगुल भरे इम्फाल शहर के
एक बड़े होटल में जूठे गिलास धोता है।
जन्म से अपने माँ-बाप को न पहचानने वाले, उस पर
देखा नहीं एक दिन भी कृपा करते हुए ईश्वर को,
जिस पर मेरा विश्वास है,
एक वेश्या ने उसे पाला
अपना शरीर बेचकर रक्त-पिंड से बड़े होने तक।
एक दिन जब क्षय रोग से पीड़ित हुई
उसके शरीर का मूल्य नहीं रह गया
तब उसने भेजा उस लड़के को प्यार से मनाकर
सुंदर शहर की कहानी सुनाकर।
बोरे के गोदाम, जहाँ वह सोते ही छींकने लगता है, के बाहर
रोज़ सुनाई देती है पगली के रोने की आवाज़
रात के डाकुओं के असहनीय अत्याचार के कारण।
अँधेरी रात का अमरवाती इम्फाल शहर
पेरिस की रात के आनंद से भी अधिक आनंद है यहाँ
निऑन नहीं जलता, फलू रिसेंट मरकरी की रोशनी नहीं होती
सोचता है—मारवाड़ी की दुकान में कपड़े का थान काट रहा चूहा
काश मैं भी उन बड़े पेट वाले पति-पत्नी के बीच सो जाऊँ
पैसे का बटुआ बनकर।
इसी बीच वाङ् जिङ् से आया हुआ
सात वर्षीय लड़का काट रहा है
शिशिर की ठंडी रात थर-थर काँपता हुआ
होंठों में कालिमा लिए, बग़ैर कंबल के
फटी हुई उँगलियों से गिनता है
कब आएगी मेरी माँ, दम घुटने वाली इस जगह से
एक बार ले जाने के लिए, उसके चिथड़ों के बीच करवट बदल सकूँ
—मुझे नहीं चाहिए, इस शहर में रहना
शिकायत करूँगा, उससे बहुत अंतर है, जो तुमने पहले कहा था,
मन हो मन बड़बड़ा कर सो गया आँसू सूखे बिना।
कपड़े का थान काटने वाला चूहा पहुँच गया उनके बीच।
- पुस्तक : आधुनिक मणिपुरी कविताएँ (पृष्ठ 78)
- संपादक : देवराज
- रचनाकार : रतनकुमार थियाम
- प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
- संस्करण : 1989
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