स्टॉफ़ रूम में नियुक्तियों पर चिंतन
stauf room mein niyuktiyon par chintan
‘नियुक्तियों में गड़बड़ी हो रही है,
देखिए योग्यता कोई पैमाना नहीं रहा’
पहले रामजनम जी ने यह विषय उठाया—
उनका मानना था कि योग्यता तो जन्मजात लक्षण है
देखिए पहले बहुत ईमानदारी थी
अब नियुक्तियों में बड़ी गड़बड़ हो रही है
मेरा तो क्या हुआ कि
मेरे चेहरे का प्रभामंडल देखकर ही बहुत बड़े विद्वान ने कहा
देखो कैसे दिप-दिप करता है इसके तो रक्त में ज्ञान संचरित हो रहा है
इस पर सुरेखा जी ने बहुत संक्षेप में कहा—
देखिए हम स्त्रियों की योग्यता को पहचाना न जाता
ग़नीमत थी कि रामाधार जी ने वैसी ही आशीष दिया
जैसा आपको मिला
जिवराखन जी ने तपाक से कहा—
देखिए देर से ही सही लेकिन अगड़ों और पिछड़ों की ऐसी दोस्ती की सरकार न होती
तो मेरी नियुक्ति भी कहाँ हो पाती
वह तो मंत्री जी ने साथ दिया
और यह ऐतिहासिक है कि समय के महत्व को महत्व दिया गया
इस पर सबसे कम उम्र के, कवि मन रिपुदमन ने कहा
यह कैसे भुलाया जा सकता है कि प्रगतिशील कारणों से मेरी नियुक्ति हुई
मुझसे तो बस मेरा हाल-चाल पूछा गया
कि आने में तकलीफ़ तो नहीं हुई
वैसे भी इतनी दूर से यात्रा करके पहुँचा था
सरकारी कुर्सी तो मेरे लिए तारे की यात्रा की तरह थी
वह तो कहिए कि संग-साथ ऐसा मिलता गया
कि कारवाँ बनता गया
अब देखिए कैसा समय आ गया है
नियुक्ति में विचारधारा और भावनाओं का महत्व ही नहीं है
श्री. ता. सिं. की आवाज़ बारीक थी—
और रिपुदमन जी आप जैसे भले, सरल लोग कम ही हैं
हमारे हाथ तो इधर इसलिए ही बँधे रहते हैं कि साख़ पर आँच न आए
जब लोग आशीर्वाद ही नहीं चाहते हैं तो क्या किया जाए
बहुत गिरावट है समाज में
औ फिर देखिए सबकी ज़रूरत तो सब ख़ेमे को है,
इस बात को समझना ज़रूरी है
रामजनम जी फिर बोले—
''क्या जी आज खाली बाते-बतकही होगा कि चाय भी पिया जाएगा
अनवरवा को बुलवाइए, समोसा लाए गर्मा-गर्म। संकट में मिल-बाँट कर खाना ही रहेगा
और यह कुलपतिया कौन-सा बड़ा योग्य है
अरे विद्वान तो पहले होते थे।''
- रचनाकार : सोमप्रभ
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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