मेरे ईश्वर
जहाँ-जहाँ रही मैं
उससे थोड़ा ऊँचा तुम्हारा स्थान रहा हमेशा
मैं बात कहने में रही
और तुम कही बात सुन लेने में
मैं क़दम बढ़ाने में रही
और तुम रास्ते के थोड़ा पीछे खिसक जाने में
मेरा ईश्वर उतना दूर नहीं मुझसे
जितना इस संसार में देखा गया
बस एक सीढ़ी भर का फ़ासला है
अपनी आवाज़ को उस तक जाते सुना है मैंने
उसके पीछे-पीछे चलती देखी है चाल अपनी
उसके हाथों में महसूस की है छुअन अपनी
दुःखों को जब ख़ुद ही उठाकर
ओढ़ लिया माथे पर
तो ईश्वर ने ख़ुद बतलाया मुझे
लौट रही हूँ अपने ईश्वर को छोड़ अकेला
जानती हूँ मेरी कमी कभी न खलेगी उसे
बुझेगी मेरे ही भीतर कोई लौ
मेरे ही भीतर कोई अंधकार गहराने लगेगा
यह भी जानती हूँ कि मेरे इस ख़याल से पहले
मेरा ईश्वर जा चुका होगा
और मैं ताउम्र करती रहूँगी कोशिशें
लौट आने की
पर आ न सकूँगी
ईश्वर से ख़ाली इस दुनिया में
अपनी ही खोज में भटका करूँगी
छोर नापते हुए अपने
लौटने के इस ख़याल से
कभी न लौट सकूँगी फिर
इस जगह जहाँ खड़े हो
मैंने लौट जाने का फ़ैसला किया
इस जगह जहाँ खड़े हो
मैंने देखा था ईश्वर को अपने :
लौटते हुए।
- रचनाकार : ममता बारहठ
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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