आविष्कारक
avishkarak
वे आ गए हैं, परली तरफ़ के लोग, निपट अजनबी, हमारे तौर-तरीक़ों
से अनजान।
झुंडों में आए हैं वे।
उस जगह, जहाँ देवदार के दरख़्त, कट चुके और फिर से सींचे-गोड़े
हरे-भरे खेतों से अलग होते हैं, भीड़ की शक्ल में वे प्रकट हुए।
लंबी दूरी तय करके आने के कारण पसीना-पसीना हो रहे थे उनके जिस्म।
टोपियाँ आँखों पर झुक आई थीं और थकान से चूर पैर लटपटा रहे थे।
हमें देख कर वे यक्-ब-यक् रुक गए।
प्रकटतः उन्हें वहाँ हमारे होने की उम्मीद नहीं थी,
उन जुते पड़े कूँड़दार खेतों पर,
किसी भेंट-मुलाक़ात के लिए नितांत अस्वाभाविक जगह।
हमने उनके कंधे थपथपाए और हिम्मत बँधाई।
उनमें से सबसे समझदार आदमी पास आया, फिर दूसरा; बिल्कुल
जैसे जड़विहीन-बेजान।
हम आने वाले तूफ़ान के बारे में सतर्क करने यहाँ आए हैं, उन्होंने कहा,
तुम्हारा सबसे कठिन-कठोर दुश्मन।
हमें उसकी जानकारी है, तुम्हारी ही तरह, महज़ सुनी सुनाई बातों और
बड़े-बूढ़ों की दास्तानों के ज़रिये।
लेकिन इस वक़्त तुम्हारे सम्मुख हम कल्पनातीत रूप से ख़ुश और
बच्चों के-से सुखाभास में डूबे क्यों हैं?
हमने उनका शुक्रिया अदा किया और विदा होने को कहा।
लेकिन उसके पहले कुछ पीने को, और उनके हाथ काँप उठे,
उनकी आँखें उनके प्यालों में चमक उठीं,
लकड़ी और कुल्हाड़ी वाले लोग, जो ग़रीबी और तंगहाली से जूझने
के लिए बने हैं,
किंतु पानी पर क़ाबू पाने, या घर बनाने, या चमकीले रंगों में
इस सबकी कलाकृतियाँ बनाने से अनभिज्ञ।
शीतउद्यान अथवा ख़ुशी की क्षणभंगुरता से अनजान।
बेशक हम उन्हें शिक्षित और अपने अधीन कर सकते थे
क्योंकि तूफ़ान का डर गंभीर है।
और तूफ़ान का पूरा अंदेसा था;
लेकिन क्या उसको लेकर शब्दों की फ़िजूलख़र्ची उचित होती, क्या उससे
भविष्य को बदलना न्यायसंगत हो जाता?
हम जहाँ हैं, वहाँ कोई भारी डर नहीं है।
- पुस्तक : रोशनी की खिड़कियाँ (पृष्ठ 215)
- रचनाकार : रेने शार
- प्रकाशन : मेधा बुक्स
- संस्करण : 2003
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