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मृत्यु-भय

mrityu bhay

अनुवाद : मदन सोनी

जॉन एशबेरी

जॉन एशबेरी

मृत्यु-भय

जॉन एशबेरी

 

अब यह कौन-सी चीज़ है मेरे साथ
और क्या यह वैसी ही है जैसा मैं हो गया हूँ?
क्या ऐसी कोई अवस्था नहीं जो मुक्त हो सीमाओं से
पहले और बाद से? आज खिड़की खुली है

और बहती आ रही है हवा पियानो की तरंगों को समेटे
अपने आँचल में, मानो यह कहने, देखो जॉन
मैं ये ये लाई हूँ—यानी
कुछ बिथोविन, कुछ ब्राहम,

कुछ चुनिंदा पाउलेंक नोट्स...हाँ
वह फिर मुक्त हो रही है, हवा, वापस आते रहना होगा उसे
क्योंकि इतने-भर के लिए वह ठीक है।
मैं रहना चाहता हूँ उसके साथ निर्भय

जो रोकती है मुझे कुछ ख़ास डग भरने से
दस्तक देने से कुछ ख़ास दरवाज़ों पर, डर से अकेला बूढ़ा
हो जाने के और यात्रा की सांध्य बेला में किसी के न मिलने के
सिवा एक और ख़ुद के

सिर हिलाते शिष्टाचार से : अस्तु, तुम रह लिए कुछ देर
लेकिन अब हम फिर से साथ हैं, यही है जो मानी रखता है।
दिखाते हुए मुझे रास्ता, तुम इसे छोटा कर सकते थे,
लेकिन थम चुका है समीर और मौन अंतिम शब्द है।

           
स्रोत :
  • पुस्तक : पुनर्वसु (पृष्ठ 188)
  • संपादक : अशोक वाजपेयी
  • रचनाकार : जॉन एशबेरी
  • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली
  • संस्करण : 1989

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