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संसद मा अँधेरु भरा

sansad ma andheru bhara

श्यामसुंदर मिश्र 'मधुप'

श्यामसुंदर मिश्र 'मधुप'

संसद मा अँधेरु भरा

श्यामसुंदर मिश्र 'मधुप'

और अधिकश्यामसुंदर मिश्र 'मधुप'

    राजधानी मा आयेउ

    अस चहला-कीच किहेउ

    कचरा बरपेउ

    सराँइधि मचायेउ

    इन्द्र केरि फुलवारी ते लावा भवा

    अर्जुन का

    अरघान का हिमालय वहु

    जमुना मा धँसिगा,

    अस अपन उजेरु उरेहेउ

    धरती पर चमकेउ

    कि आसमान का सिविता सरमाइगा

    उवतइ खन डरिगा

    पुरबहे मा फँसिगा

    मुलु तुमारि चमक

    क्षण भर की रहइ,

    अब अन्धकार का रयाला बहइ

    को हरइ?

    कुछ मंत्र फूँकउ

    कुछ तंत्र बँकउ

    तब तौ सिविता के आका बनेउ

    चाँद के काका बनेउ

    मंगरु

    बुद्धु

    बृहस्पति की सान बनेउ

    हनुमान बनेउ

    आकास का बगल दाबेउ

    सिविता का फ्याँट बाँधेउ

    चाँद का रपटायेउ,

    यह समझेउ

    हनुमान तौ रामदूत रहइँ

    वइ राम

    जउन राजतंत्रु घालिन

    लोकतंत्रु पालिनि

    लोक हित मा

    राजु-पाटु त्यागिनि

    परिवारु त्यागिनि

    लोक-लाज राखिनि

    लोक-लागि

    रन-बन घूमें

    धूप मा सुखाइनि द्याँह

    जाड़ु बाँधिनि मुट्ठिन मा

    बरखा विताइनि सर

    दुख-सुख भे समान

    उत्तर ते दक्खिन तकु

    कुल्लि देसु घूमिनि

    जन-जन चूमिनि

    हीन का उठाइनि सर

    दीन का लगाइनि गर

    खाले जउन परे रहइँ

    तिनका उपर किहिनि

    कोल

    भील

    बाँदर

    सब का धाइ मिले

    सबरी का जाइ मिले

    सरनागत पालिनि

    पत्थर तक तारिनि

    राम अस जनतंत्री

    जन-जन मा रमे

    मन-मन मा जमे

    सबु जगु धारिनि

    तब वइ राम बने

    सब का समान बने

    तब वइ वीर बने

    तब वह तीर बने

    रावन का मारिनि

    अनाचारु जारिनि।

    यहे राम असली

    तुम्हार राम नकली

    ध्वाखा-घंधड़ी

    बड़े कंतड़ी।

    ऐसे राम के दूत बनतिउ

    तौ मउका परे

    सोभा देति

    सुर्ज निगलबु

    चाँद का चरबु

    तारेन का हरबु,

    तुम्हइँ तौ पनबिजुली का दम रहइ

    मुला वह दिनु लाई

    वह सिर्फ राति केरि चेरी

    तिहू के बुतइ मा देरी

    कौनउ राखउ तुम

    सुर्ज-चाँद मरे परे

    तारा सब तरे परे

    जमीन पर झरे परे

    यह समझेउ कि :

    झरा जौनु फरा

    बुतान जौनु बरा

    अब बतावउ का होइ

    संसद मा अँधेरु भरा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : घास के घरउँदे (पृष्ठ 97)
    • रचनाकार : श्यामसुंदर मिश्र ‘मधुप’
    • प्रकाशन : आत्माराम एण्ड संस, कश्मीरी गेट, दिल्ली
    • संस्करण : 1991

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