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एक दुश्मन है मेरा जो मुझमें बैठा है

ek dushman hai mera jo mujhmen baitha hai

प्रदीप अवस्थी

प्रदीप अवस्थी

एक दुश्मन है मेरा जो मुझमें बैठा है

प्रदीप अवस्थी

घर से निकलना चाहिए दिन में

एक बार तो कम से कम कहते सब

जाना कहाँ चाहिए कोई नहीं बताता

किसके साथ

फटी जेब को सिलने का

कोई नुस्ख़ा काम नहीं आता

अकेले कमरे में इंतज़ार करता है वह जो है

लेकिन उसकी उपस्थिति के बारे में

बात नहीं की जा सकती

बताने चलो किसी को तो समझाना पड़ता

समझाने चलो तो क्या?

सब तो सही है

एक दुश्मन है मेरा जो मुझमें बैठा है

मैं जो कह रहा हूँ

आपको वही समझना चाहिए

जबकि यह शुरुआत है

मेरे झूठ बोलने की

किसी दवा या डॉक्टर के बस की बात नहीं

इस सिर के दुखने का इलाज

अंदर बैठकर

नसों को तोड़ता-मरोड़ता रहता है कोई

कभी-कभी ही छुट्टी लेता है कमबख़्त

अब तक मैंने किसी स्त्री के बारे में बात नहीं की

क्योंकि उजाले से जोड़ा जाना चाहिए उन्हें

कुछ रहस्य हमें बचाकर रखने चाहिए

वे हमें दो हिस्सों में चीरें रोज़

थोड़ा-थोड़ा भले ही

हम बिना तकलीफ़ के रोएँ

जैसे बिना किसी बात के ख़ुश रहते हैं लोग

समय बीत जाने के बाद खोलेगा

अपने राज़ स्वयं।

स्रोत :
  • रचनाकार : प्रदीप अवस्थी
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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