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एक विक्षिप्त प्रेम कविता

ek wikshaipt prem kawita

अनुराग अनंत

अनुराग अनंत

एक विक्षिप्त प्रेम कविता

अनुराग अनंत

और अधिकअनुराग अनंत

    मैंने ऐसी कोई ग़लती नहीं की

    जैसे हाथों से काँच के गिलास गिर जाने पर होती है

    मारने से पहले माथा चूमने की बुरी आदत थी उसे

    हर बार माफ़ करता रहा उसे

    उसी एक आदत के बदौलत

    उसका नाम इश्क़ था

    जब तक हमें यह पता चला

    हमारे अपने अपने नाम खो चुके थे

    इतना भी कठिन नहीं था

    अपनी ही मृत्यु पर रोना

    और इतना भी सरल नहीं था

    तेज़ाब पीते हुए हँसना

    हम जिस क़स्बे से थे

    वहाँ रेशम में भी काँटे थे

    और हवाओं में भी आग

    हमने प्रेम किया था

    ये किसी खूसट माली की बाग़ से फूल चुराने जैसा अपराध था

    हमारी नंगी पीठ पर हमारे क़स्बे ने अपना पता लिखा

    और हम लापता हो गए

    इस तरह तुम दो बच्चों की माँ बनी

    और मैं एक बेरोज़गार कवि

    हम दोनों को अकेले-अकेले जो बनना था

    हम बन गए

    हम दोनों को साथ-साथ जो बनना था

    उस पर पेशाब करके

    एक प्रेम कविता को विक्षिप्त कर दिया गया

    यह किसी क़ानून की किताब में अपराध नहीं था

    इसलिए सबको भरपेट नींद आती रही

    और हम भूखे पेट जागते रहे।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अनुराग अनंत
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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