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एक कम महत्व वाला आदमी

ek kam mahatv vala adami

तजेंद्र सिंह लूथरा

तजेंद्र सिंह लूथरा

एक कम महत्व वाला आदमी

तजेंद्र सिंह लूथरा

हर घर, हर जगह,

होता है एक काम महत्व वाला आदमी,

वो बोलता नहीं, सिर्फ़ सुनता है,

सिर्फ़ पूछने पर देता है जवाब,

झिझक शंका रोज़ पूछती है उससे,

तुम कहाँ बैठोगे?

तुम्हारा कमरा आज क्या होगा?

तुम्हारी चादर, तुम्हारा बिस्तर कब बदला जाएगा?

आज तुम्हारा खाने-सोने का समय कितना खिसकेगा?

इस बार तुमारी छुट्टी किसकी छुट्टी से कटेगी।

अपने सारे सवालों के जवाबों में

वो एक कबाड़ी की तरह

कचरे में हाथ डाल-डालकर

बाकी सबके बचे-छोड़े

कम महत्व के टुकड़ों को

अनचाहे मन से थोडे कम से

बोरी में भर लेता है

आधी दिहाड़ी के लिए।

और एक दिन जब नहीं रहता

ये कम महत्व वाला आदमी

तो उसके तमाम सवाल

उसकी झिझक उसकी शंका

उसकी पिछली पंक्ति, उसका कोना

उसकी औढ़न, उतरन, बिछावन

उसकी पौनी करवट

उसकी कटी छुट्टी

उसका टूटा, खिसका समय

उससे भी कम महत्व वाले आदमी को

बड़े परोपकारी भाव से

थमा दिया जाता है।

स्रोत :
  • रचनाकार : तजेंद्र सिंह लूथरा
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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