एक अदृश्य प्रेमी पीछा करता है
ek adrishya premi pichha karta hai
एक अदृश्य प्रेमी पीछा करता है
स्त्री का
वह जो है कमल के पत्ते से भी
ज़्यादा चिकना और कोमल
सख़्त और खुरदुरा उतना ही
जितना हिमालय
उसकी उठती-गिरतीं भुजाएँ
जैसे सागर में ज्वार-भाटा
एक ऐसा ही पुरूष पीछा करता है
स्त्री का
जिसका झुका है माथा
स्त्री के क़दमों में
यह स्त्री
उत्तर आधुनिक समय में भी चाहती है
एक ऐसा प्रेमी
जो चूम-चूम ले
उसका अंग-अंग
जो उठा लेते स्त्री को
अपनी हथेली पर
गुलाब की तरह
टाँक ले बटन की तरह
अपने कोट में
ऐन दिल के पास
यह स्त्री समय के सागर तट पर
करती है प्रतीक्षा
जाने कब से
एक अदृश्य प्रेमी पीछा करता है
स्त्री का
उसके सपने में।
- रचनाकार : चंद्रेश्वर
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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