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घरों के दरवाज़े

gharon ke darwaze

विजया सिंह

विजया सिंह

घरों के दरवाज़े

विजया सिंह

घरों के दरवाज़े मौसमों को पहचानते हैं

वे इंतज़ार करते हैं बारिश का, कड़ी गर्मी के बाद

उनके दिलों के सिकुड़े हुए स्नायु

पाना चाहते हैं उस विस्तार को

जो सिर्फ़ अम्बर के नीचे खड़े होकर बरसात में भीगने से मिलता है।

घरों की दहलीज़ों में अटके

वे ऋतुओं की धीमी पदचाप को अपने अंत:करण में

वायु के कंपन ही से पहचान जाते हैं

वे जानते हैं पढ़ना उस लिपि को

जो केवल आकाश में लिखी जाती है।

हवा की आर्द्रता उन्हें नम बनाती है

प्रभंजन का वेग उनके परों को गति देता है

लहरों का हिल्लोल-कंपन उन्हें बह जाने का निमंत्रण देता है

दीवारों से टँगे, वे बस हुँकार में सिर हिला-हिला कर शांत हो जाते हैं

जैसे कोई बच्चा खिलौने की ज़िद में थक कर सो जाता है।

वे पहचानते हैं हमारी पदचाप को

सीढ़ियों से उतरते और चढ़ते हुए

वे जानते हैं हम कब किसी शव-यात्रा से लौट रहे हैं अपना ही भार ढोते

हमारी चप्पलों की सूखी मिट्टी संकेत देती है उनको

हमारे मरुस्थलों में भटकाव का।

स्रोत :
  • रचनाकार : विजया सिंह
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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