ख़ाली आँखें
समय के साथ
या यूँ कहें कि उम्र की वजह से
या फिर यूँ कहें कि न समय के साथ
और न ही उम्र की वजह से
शायद किसी अकाल और हमारे किसी प्रारब्ध की वजह से
घर में कुछ जगहें और कुछ कमरे ख़ाली होते गए
धीमे-धीमे कुछ कुर्सियाँ अकेली रह गईं घर में
जहाँ चश्में और किताबें रखी जाती थीं
वे अलमारियाँ सूनी होती गईं दीवारों में
शराब की बोतलें और सिगरेट बुझाने के कोने वीरान हो गए
फिर एक दिन घर में रखे ख़ाली जूते भी इसलिए फेंक दिए गए
क्योंकि उनका ख़ालीपन मेरी आँखों और तलवों से ज़्यादा बड़ा था
मैंने महसूस किया कि दिन गुज़रने के साथ
मेरी माँ की आँखें भी ख़ाली-ख़ाली-सी नज़र आने लगी थीं
उसका मन इतना रिक्त हो चुका था कि
उसने मुझे बचपन की तरह सहलाना और दुलारना बंद कर दिया था
हालाँकि यह मुझे अच्छा लगता था कि
उस बुरे वक़्त में माँ मेरे साथ स्नेह का कोई ढोंग नहीं रचती थी
माँ उन दिनों वक़्त के मुताबिक़ ही मेरे साथ बर्ताव करती थी
उस आत्मीय दूरी में भी मैं उसके बहुत पास था
या यूँ कहें कि उस ख़ौफ़नाक दूरी में भी हम आत्मीय रूप से क़रीब थे
हम सबको वह रिक्तता भाने लगी थी
उस रिक्तता में रहकर हम उसके आदी हो चुके थे
जिसे किसी अचंभे की तरह
हमारे कलेजे और घर की छत पर गिरा दिया था
किसी अनाम ईश्वर ने
हम सब अपने-अपने दुःख में ख़ुश थे
और चाहते थे कि कोई भी उन्हें ठेस न पहुँचाए
अपने अकेलेपन और उदासी में हमने दुनिया के सबसे सुंदर काम किए
उन दिनों मैंने माँ को चोरी-चोरी गीत सुनते हुए देखा
गीत गाते-गुनगुनाते हुए देखा
मैंने किताबें ख़रीदना और उन्हें छूना सीखा
उन दिनों मैंने माँ की आँखों से प्रतीक्षाएँ सीखीं
तब से अब तक
हमने जीवन को एक पवित्र प्रतीक्षा माना
माँ गर्मियों के दिनों में कभी-कभी
पक्षियों के लिए छत पर पानी से भरा मिट्टी का बर्तन रख दिया करती थी
यह देखकर मैंने और मेरी छोटी बहनों ने पेड़ की नाज़ुक टहनियों पर बैठना सीखा
जब पक्षियों के लिए रखा पानी सूख जाता था
तो हम टपकते हुए नलों से अंजुरी में पानी भर छतों की तरफ़ दौड़ लगाते थे
हथेलियाँ भीग जाने पर हम धीमे-से मुस्कुराते
हम सिर्फ़ उतना ही हँसते थे जितना ज़रूरी था
और जितना उस वक़्त को अच्छा लगता था
माँ को हमारे सुख-दुख के बीच का यह संतुलन बहुत अच्छा लगता था
उसकी आँखों में यह भरोसा जगने लगा कि
उसके बच्चे अब वे चीज़ें सीख चुके हैं
जो हमारी रिक्तता में जीने के लिए अनिवार्य थीं
उसे पता चल गया था शायद कि
हम अपने जीवन की सबसे मुलायम टहनियों पर ज़िंदा रह सकते हैं
और जब धीमे-धीमे यह सब बहुत आसान हो गया
मौसम बदलने लगे
एक-एक कर सारे मौसम आकर गुज़रने लगे
और आस-पास के बच्चे हमारे घर आने-जाने लगे बेख़ौफ़
पड़ोस की औरतें हमारे घर कभी गेहूँ बीनने के लिए
और कभी मंगल काज का बुलावा देने आने लगीं
तो सबको लगने लगा कि अब घर में सब कुछ ठीक हो चुका है
और इस घर में कहीं कोई जगह ख़ाली नहीं बची है
हम अपनी रिक्तता के साथ बड़े होते गए
उम्र के साथ हमारा ख़ालीपन छोटा होता गया
लेकिन अपनी-अपनी बची हुई रिक्तता में हम सब जानते थे
कि घर के कुछ कमरे और अलमारियाँ
चश्में और किताबें रखने की जगहों के साथ ही
शराब की बोतलें और सिगरेट बुझाने के कोने अभी भी ख़ाली हैं
मैं चुन-चुनकर उन ख़ाली जगहों को अपने ख़ालीपन में रख लेता था
लेकिन माँ की आँखों का सूनापन मुझे बहुत सालता था
उन्हें रखने की कहीं कोई जगह नहीं थी
उन्हें वहीं होना चाहिए था जहाँ वे ठहरती थीं
मेरे पास कोई तरीक़ा नहीं था
कि मैं अपनी माँ की बुझी हुई चुप आँखों को भर सकूँ
मैं घर की ख़ाली जगहों और माँ की ख़ाली आँखों को भरना चाहता था
शायद ठीक उसी दिन से मैंने कविताएँ लिखना शुरू कर दिया
- रचनाकार : नवीन रांगियाल
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए द्वारा चयनित
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