कीड़े लगे चुटकुलों के बीच
वह मुझे दुघलाता रहा।
असमाप्त कथा वस्तुओं के अर्धजीवित पात्रों के बीच
मुझे ढूँढ़-ढूँढ़
वह अकारण ही मुझ पर तरस खाने लगा
मुझे ज़रा अज़ब लगा
तो मैं उसे छकाने लगा!
जितना ही वह हँसता, मुस्कराता
उतना ही मैं पिराता!
तब उसने फ़रमान जारी किया
कि रहम करने वालों को प्राणदंड दिया जाएगा!
कीड़े लगे चुटकुलों को उसने गर्म पानी से नहलाया,
असमाप्त कथा वस्तुओं के अर्धजीवित पात्रों को
विघटन की दुम में बाँध
नक़लचियों के नगर में घुमाया
पर वातजंय पीड़ा-सा
विधा बदल-बदल में उसे छकाता रहा।
आख़िर उसने अपने फ़रमान का
अपमान न होने देने के लिए
एक दिन आत्महत्या कर डाली
और यों मैं
हर दिशाहीन दृष्टि में
मर्दानगी का विधाता बन गया
- पुस्तक : पहचान सीरीज़, खंड : दो (पृष्ठ 490)
- संपादक : अशोक वाजपेयी
- रचनाकार : शिवकुटी लाल वर्मा
- प्रकाशन : सेतु प्रकाशन
- संस्करण : 2023
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