(बिहार के एक वामपंथी आलोचक की उस 'अछूत दृष्टि' को समर्पित जिसके तहत उन्होंने अपनी एक पुस्तक में 'सुलभ इंटरनेशनल' को ब्राह्मण-शूद्र का भेद मिटाने वाला क़रार दिया)
अभिनय आपकी रग-रग में बसा है
आपके दादा-परदादा-छड़दादा का 'जीन'
पूरा का पूरा उगता उतरता आया है आपमें
आप गदहे को भी बाप बनाकर काम निकालने की
सांस्कारिक कला आयातित करते आए हैं बख़ूबी
अपने ही स्वभावधर्मा पुरखों से
हमारा आपका सदियों का छत्तीसी नाता है
आपके समाजसत्ता संचालक हाथों से
नुचते पिटते आए हैं हम क्या करें ग़ुरूर
जात के शास्त्रसम्मत ओछे हैं आपके मुँहताक हुज़ूर
आप मेहतरी के अछूत मैदान में भी लाभ-लोभ सूँघ
तैयारी के साथ उतर आए हैं और
यहाँ के भी राजा बने बैठे हैं
सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक होंगे पाठक
यहाँ तक तो ठीक
पर संचालक भी होंगे पाठक या उसके गोतिया भाई ही
यानी मिश्र-द्विवेदी-चौबे-छब्बे आदि-इत्यादि ही
यह कहाँ का न्याय
काम होगा हमारा यहाँ भी
बल्कि असली तो हमारा ही
मलमूत्र गिंजेंगे हमारे अवर्ण अन्त्यज हाथ
और कुर्सी टेबुल डटा वहाँ आप थामेंगे क़लम-दवात
हज़रिया-पनसहिया नोटों की गड्डी होगी
आपकी तंदुल तनख़्वाह में
जबकि हमारे बटुआ को मिलेगी
अठन्नी-चवन्नी-खुदरिया नोटों की
आपकी दया से थूकी भींगी सौग़ात
हमारी बिरादरी के ही किसी अग्गू दिमागी ने
हमारी ठगैती की कहावती कथा बाँची है ठीक ही—
कमाए लँगोटी क़रार, खाए धोती वाला
आपको नाटक करने में है महारत हासिल
गर सूअर खोभार सने गँदले हाथ रहने वाले
घुरफेकन डोम का भी किरदार पड़े निभाना
तो तय है सौ फ़ीसदी आपका
थपकी ताल बटोरू अभिनय कर पाना
हम तो इतने गए गुज़रे ठहरे कि
खुले मंच पर आए हमको न ठीक से
ख़ुद का भी नकली पार्ट ज़माना
हे सवर्ण अभिनय के रचयिता सम्राट
अभिनय आडम्बर से तनिक बाहर निकल और
खोल कपट तज आचार कृपण
चल सको तो गह लो सच का हाथ!
- रचनाकार : मुसाफ़िर बैठा
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.