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पानी

pani

हरि मृदुल

इतनी चमक-दमक

ऐसी चकाचौंध

इस क़दर गहमागहमी

इतना बड़़ा बाज़ार!

फट पड़ी हैं आँखें

पस्त पड़ गई है देह

गला सूख गया है!

तेज़ प्यास लगी है मुझे

एक बूँद तक मयस्सर नहीं

होने को पानी भरपूर!

पंद्रह रुपए की बोतल

कितनी चाहिए?

मिलेंगी

जितनी चाहिए

जेब में हाथ डालिए...

जैसे हलक़ में हाथ डालकर

निकाल लिए पंद्रह रुपए

प्यास फिर भी नहीं बुझी

एक बोतल और

एक और

इतनी चमक-दमक

ऐसी चकाचौंध

इस क़दर गहमागहमी

अब मुझे पेशाब लग आई है

ज़ोरों की

कहाँ करूँ?

जेब में हाथ डालिए

पाँच रुपए निकालिए

सामने है टाइल्स लगा

चमचमाता पेशाबघर।

स्रोत :
  • रचनाकार : हरि मृदुल
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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