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मार्च की क्रांति

march ki kranti

अनुवाद : दिनेश चमोला

डगों टाया

डगों टाया

मार्च की क्रांति

डगों टाया

और अधिकडगों टाया

    क्षितिज से एकाएक

    चुपके से कट जाता है चुपचाप

    सफ़ेद बिंदुओं का समूह

    नीले अकाश के आर-पार।

    फैलती है दरार

    जहाँ रेंगते हैं स्फटिक मणि

    और फिर बदल जाते हैं

    एक सवेरे के रूप में।

    तारों की प्रशांत ख़ामोशी की छाया में

    नदिया से कुछ दूर

    एक नाव तैरती है सँकरी घाटी तक

    छोटे बाँहों वाला कुर्ता पहने

    एक जंगली लड़का

    नाव की तलहटी पर झुकता है

    और

    अपने हाथ रखता है

    कील के नीचे घास-फूस पर

    जहाँ छुपाई हुई है मशीनगन

    घुप्प अँधेरे में धुँधला-सा

    घाटी के झुकाव पर पेड़ों से इतर

    किनारे की ज्वारीय स्तर पर

    फ़ासिस्ट सीमा पर

    जैसे ही पार करती है नाव

    सँकरी घाटी को बदल जाती है

    धरती की आवाज़ में

    और एकाएक हो जाती है बंद

    मशीनगन के धुएँ से उभरती है ख़ामोशी

    जो गूँजती है घाटी से

    ऊपर और नीचे

    चाँदनी धीरे से बाँट देती है रात को

    फिर चाँद

    धीरे-से चला जाता है बादलों में

    फिर चमकता है

    और रात्रि को

    आलोकित करता है

    दूर फैले खेतों को

    जंगल के छोरों को

    छिप जाती है

    एक टिमटिमाती लालटेन

    और आकाश के झूमते चक्र से

    अचानक छिटका

    उतरता है हवा का एक झोंका

    नष्ट हो जाता है एकाएक एक गाँव

    भाग जाते हैं

    गाँव के निवासी

    आग से झुलसे हुए

    शून्य और शुष्क

    जब बहती हैं

    कमज़ोर हवाएँ

    काली झुलसी हुई धरती पर

    एक कमज़ोर कुत्ते की

    भौंकने की धीमी आवाज़

    सुनाई देती है।

    सितारों के फूल

    ढक देती है धरती

    जिसमें आधे लाल हैं

    आधे पीले

    गिरते हैं

    धीरे-धीरे घूमते हुए

    ग्रीष्म की पहली हवा के साथ

    समय आने पर

    उग आते हैं नए पत्ते

    पुराने गिर जाते हैं

    लाल धरती पर सफ़ेद सितारों की तरह

    स्रोत :
    • पुस्तक : समकालीन बर्मी कविताएँ (पृष्ठ 83)
    • संपादक : चन्द्र प्रकाश प्रभाकर 'मौतीरि'
    • रचनाकार : डगों टाया
    • प्रकाशन : इरावदी प्रकाशन, नई दिल्ली
    • संस्करण : 1994

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