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माँसल-संगीत

mansal sangit

एंजेल मिगेल केरेमेल

और अधिकएंजेल मिगेल केरेमेल

    एक साँवले सितार की तरह

    तुम्हारे निरावरण साँवले तन के संगीत को मैं पी चुका हूँ

    तुम्हारी अलकें काली थीं, रेशमी थीं

    काली—मगर शोक सूचक नहीं

    चाँदनी जैसे दाँतों से

    मैंने तुम्हारे शरीर के संगीत की सबसे परिपक्व

    उठान को चिह्नित कर दिया—

    हम चाँद की दूधिया परछाइयों में

    नहाए हुए थे—

    तुम्हारे स्वर रात को चीरते हुए

    पक्षी की तरह, ख़ून सने सुनहले तीर की तरह

    उड़ रहे थे

    ओह! ओह! तुम्हारे तन के संगीत ने

    मुझे पागल कर दिया था!

    तुम्हारी अलकें काली थीं—रेशमी थीं

    काली—मगर शोक सूचक नहीं

    मेरे हाथों में जूही के फूल थे

    उनमें से हर फूल—तुम्हारे तन की सिहरन

    तुम्हारी सिसकारियों और शिकायतों का प्रतीक था!

    दूधिया चाँद, महकदार मिठास

    गीत और दर्द के धूपछाँही धागों से

    बुने हुए छत्र के नीचे खड़ी हुई

    मेरी नन्हीं ज़िंदगी—

    मेरी साँवली धूप!

    तुम्हारी अलकें काली थीं—रेशमी थीं

    काली—मगर शोक सूचक नहीं!

    स्रोत :
    • पुस्तक : देशान्तर (पृष्ठ 377)
    • संपादक : धर्मवीर भारती
    • रचनाकार : एंगेल मीगेल केरमेल
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ, काशी
    • संस्करण : 1960

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