एक
एक रात भोपाल में
रंगबिरंगे शैतान
आसमान से उतरे
और हलक़ से नीचे
और पेट के नीचे
और आत्मा से नीचे
बहुत नीचे जाकर
चीख़कर बोले अपनी पितृभाषा में
दूर किसी सँकरी गली में
किसी लंबी सड़क किसी सुनसान मैदान
किसी टूटते मकान किसी छूटते शहर की
अधरात में
सुनी आपने उनकी वह चीख़
और अगर कपड़ों से नाक-नक़्श से
चाल-ढाल से रहन-सहन से
आप ख़ुद लग रहे हैं
उनके नाते-रिश्तेदार
तो बरख़ुरदार,
भोपाल की उस शैतानी रात में
अपने आपको देखिए थोड़ी देर
आत्मा के ऊपर
पेट के ऊपर
हलक़ के ऊपर
आ गया है
पाप आपका
टेंटुआ दबाता
पूछ रहा है
उस रात का हिसाब
उस रात की शराब
उस रात की औरत
उस रात का बिस्तर
क्यों आप बने
अपनी नन्ही चाहत के
दो
असीम आकाश को छोड़कर
क्यों आप उड़े
भोपाल से दिल्ली
दिल्ली से
मास्को या न्यूयाॅर्क तक
- रचनाकार : प्रभात त्रिपाठी
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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