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मणिकर्णिका

manikarnika

कुमार मंगलम

कुमार मंगलम

मणिकर्णिका

कुमार मंगलम

और अधिककुमार मंगलम

    यह बेहद अजीब समझ है कि

    शहर जले या कोई जगह

    धू-धू कर

    उसे कह दिया जाए मणिकर्णिका

    जलने का संबंध अगर मणिकर्णिका से है

    तो हरेक व्यक्ति का अपना एक मणिकर्णिका है

    एक जलनख़ोर प्रेमी

    या एक बद-दिमाग़ नेता-तानाशाह

    या कोई एक महत्वाकांक्षी कवि

    इन सब का श्मशान बहुत बड़ा हो सकता है

    अनवरत आग पगी लहलह जलती चिता

    किंतु क्या मणिकर्णिका सिर्फ़ इतना भर है?

    वह कौन है

    जो प्रेम नहीं करता

    ईर्ष्या करता है—

    उसके अभाव को किसने जना है?

    वह कौन है—

    जो काग़ज़ के कोरे पन्ने पर

    कर रहा है हस्ताक्षर

    और देश को बना दे रहा है—महाश्मशान

    वह कौन है डोमराज—

    मणिकर्णिका के डोमराज से अलग

    जो मृत्यु के इस महाभसड़ के लिए जिलाए है आग

    वह हरेक समय एक ऐसे शिगूफ़े के साथ प्रकट होता है

    कि समूचा देश वधस्थल बन जाता है

    निश्चय ही उसके लिए मणिकर्णिका

    किसी घाट का नाम नहीं

    देस का नाम है

    कि वह शालीन—

    धार्मिक

    अपने अस्तित्व के धर्म-ध्वजा में लिपटा

    स्रष्टा, संरक्षक और संहारक बना है

    कि कोई उसके सनैले दाढ़ी में आग क्यों नहीं लगाता?

    मुखाग्नि ऐसे भी तो दी जा सकती है—

    मणिकर्णिका घाट पर

    लकड़ी के विशाल गट्ठर पर पीठ खुजाता

    बूढ़ा मल्लाह

    जिसे रैक्व नहीं कहा किसी ने

    एक गृहस्थ संन्यासी

    जो एक राजघर संरक्षित मंदिर का उपेक्षित पुजारी है

    घर चलाने के लिए उन्होंने दो गायें पाली हैं

    उनके जीवन का सकल उत्पाद सिर्फ़ डेढ़ लीटर दूध है

    दिन में भाँग पीसने की

    आवाज़ आती रहती है सिलबट्टे पर

    उसी सिलबट्टे पर

    जिस पर पीसती है उसकी पत्नी चटनी

    उसके बच्चे नाँव-दर-नाँव फर्लांगते

    पतंग लूटते हैं—

    बच्चों को बरजते पुजारिन

    ठंडी नज़र से देखती हैं पुजारी को

    उपेक्षित आह भरती हैं

    भगत का बचवा कफ़न बटोरते

    गिनता है हिसाब

    और ख़ुश होता कि

    लाशें ठीक रही हैं

    उसका कारोबार बहुत फला है इन दिनों—

    फिर ख़ुश होते-होते हो जाता है उदास

    कि आख़िर इतनी लाशें...

    शराब की तलब लगती है उसे

    बहुत जबरिया वह तलब दबाते हुए

    पंडित जी को आवाज़ देता है—

    एक ही बार में भाँग का गोला गटक जाता है—

    और लोटा भर पानी पीते हुए

    मुनि अगस्त लगता है।

    वह गिनता है कफ़न

    और फिर आश्वस्त होता है

    कि देश में मृत्यु-दर बढ़ी है

    जनसंख्या विभाग का सच्चा नोडल अधिकारी है वह

    पर उसका नाम दर्ज नहीं है देश के किसी रजिस्टर में

    कफ़न-बेचवा ही लोकतंत्र में मालिक होते हैं!

    जो श्मशान में कफ़न बटोरते हैं—

    वे कहीं दर्ज नहीं होते।

    कुछ माँझी सुकुमार

    बगुले के माफ़िक़ घाट पर बैठे हैं—

    जैसे ही चिता सिराती है

    और राख को गंगा के हवाले करते हैं परिजन

    वे डुबकी लगाते हैं—

    पैसे और सोने-चाँदी को मुँह में भर लाने वाले

    वे बच्चे जिनका फेफड़ा वृकोदर के उदर जितना बड़ा है

    इन धातुओं से अलग

    उनके फेफड़ों में गाँजे के धुएँ के लिए भी बहुत जगह है

    जिन्हें वापस उन्हें इस देश के मुँह पर फूँक देना चाहिए

    उनके फेफड़े को धुआँ अब बर्दाश्त नहीं करना चाहिए

    वे नीलकंठ के वंशज हैं

    सदियों से दबाए हुए हैं धुएँ को

    और गंगा करिआती जा रही हैं

    बास का भभका उठता है गंगा से

    वहीं तारकेश्वर शिव के लिए नहीं

    विश्वनाथ के लिए धतूरे की माला बेचती छोटी बिटिया

    जिसके डाली में गंगा के लिए दीये और फूल भी हैं—

    जिसके हिस्से में रुपये पाँच कम दुत्कार अधिक है—

    वह सबसे

    सभी भाषाओं में बात करती हुई

    कुछ शब्दों को हिंदी में दुहराती है—

    ले लो भैया, ख़ाली हाथ घर गए तो अम्मा मारेगी।

    एक विशाल मिट्टी के पहाड़ से आड़ हुआ

    मणिकर्णिका—

    जहाँ के देवता अंतर्धान हैं

    तारकेश्वर गंगा के गाद में विलुप्त हैं

    और शेषशायी विष्णु कहीं खो गए हैं

    फिर भी मृत्यु में गमगीन चेहरे

    धीरे-धीरे मृत्युमुखी नहीं

    जीवनमुखी होने की कोशिश करते हैं

    जीवन ऐसे भी चलता है।

    आपको नहीं पता

    तारकेश्वर महादेव नहीं

    यही तारक-मंत्र के ज्ञाता हैं—

    मोक्षकामी नहीं मोक्षदाता

    मृत्यु के असंख्य नियत कर्म

    और भरोसेमंद देवताओं के अंतर्धान होने के बाद भी

    मणिकर्णिका के जीवन में जीवन-लय भरते

    रस-सिक्त नहीं

    रस-सिद्ध

    यही हैं तारकेश्वर महादेव के कानों में तारक-मंत्र पढ़ने वाले मोक्षदा—

    कुत्तों के झुंड का क्रीड़ास्थल भर नहीं है मणिकर्णिका

    जहाँ साँड़ होने चाहिए वहाँ पत्थर की प्रतिकृति है—

    और कुत्तों की संख्या

    मृत्यु के समानुपाती बढ़ती गई है बनारस में

    फिर भी

    बनारस के सभी घाटों-सा एक घाट

    और उनसे थोड़ा अलग भी

    एक सच्चा विश्वदिव्यरंगमंच—मणिकर्णिका।

    एक सुकूनदेह और साहसी मिलन-स्थल

    दो प्रेमी जोड़ों का भी हो सकता है—

    वैसे भी धर्म के उड़ते चहुँओर बवंडर में

    प्रेम करना एक अद्भुत हिम्मत का काम है

    और यहाँ प्रेम हो भी क्यों नहीं

    आख़िरकार! शिव-सती प्रेम में

    सती के कर्णमणि से बना मणिकर्णिका

    और इन सबसे परे

    मणिकर्णिका! सिर्फ़ महाश्मशान का नाम नहीं है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : कुमार मंगलम
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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