Font by Mehr Nastaliq Web

बनारस क्या शहर है बस...!

banaras kya shahr hai bus !

उपासना झा

उपासना झा

बनारस क्या शहर है बस...!

उपासना झा

उगते सूर्य को अर्घ्य देकर ही

विदा होती है अरुंधति

कालभैरव की आरती करती है

अनवरत जलती चिताएँ

उसी शहर में

गंगा पार ठंडी रेत में

बैशाख के किसी अनमने दिन में

सूर्य के साथ उदित हुआ था प्रेम

तुम्हारे लिए हो सकता है

वह संकीर्ण गलियों वाला

गंदी सड़कों वाला शहर

भीड़-भाड़ और ट्रैफ़िक जाम में फँसा हुआ

शहर जिसकी ठगी मशहूर है

उस शहर ने मुझे ऐसे ठग लिया था

कि सब तरफ़ हरा ही नज़र आता था

***

जाने कितने व्याकुल दिन

हमने बिताए एक शहर में रहकर

एक-दूसरे को बिना देखे

जाने कितने असंख्य क्षण काटे गए

संग में बिना हँसे

तुम्हारा कंधा चूम लेने की हसरत

बनी रही एक प्यास

लेकिन 'चाहना भी चूमना ही है'

कहकर जिस तरह तुमने देखा था

आत्मा पर उसका स्पर्श अब भी है

बनारस वह आदिम इच्छा भी है

जिसने जला रखा है प्रेमियों को सृष्टि के आरंभ से

***

तुम कह सकते हो उसे

उम्र के उन बरसों की नादानी

या ये भी कि नदियों में भी होती है

समय की उठान

उन दिनों हर चीज़ नशा होती थी

हँसी में घुली रहती थी

गोदौलिया की भाँग और रथयात्रा की ठंडई

सिगरा चौराहे की चाय

लहुराबीर का समोसा

और कैंट पर खाए गए अमरुद

उचटी हुई नींद से उठने पर

गला सूख जाने से जो याद आए

बनारस वही कलेजे की फाँस है...

***

घाट-घाट का पानी पीकर

लहरतारा से जो लहर उठकर

चली गई है मंडुआडीह की तरफ़

उसमें गुम हैं हज़ार मुस्कानें

क़ैद हैं जाने कितनी जवानियाँ, ज़िंदगानियाँ

बजरडीहा में धुन है धागों के रंगों की

उसी शहर में उठती है विदा की धूम

मणिकर्णिका के मरघट पर, अनवरत

उसी शहर से कुछ अलग हटकर

दिन-रात जपते हैं बौद्ध-भिक्षु

करुणा के मंत्र

उस शहर ने बना लिया है

मुझमें एक ऐसा प्राचीन शहर

जो युगों तक जीवित रहेगा

***

प्रेम की सब कविताओं में

उदासियाँ उसी तरह गुँथी हुई हैं

जैसे जब मैं सपनों की बात लिखना चाहूँ

तो लिख जाती हूँ भरी हुई आँखें

जैसे बरसात के मौसम में किसी भी क्षण

छलकने को तैयार रहती है गंगा

जब मैं लिखना चाहूँ तुम्हारे चेहरे पर

ख़ुशी की खिलखिलाहट

काग़ज़ पर उतर जाता है तुम्हारे होंठो का चुप

बनारस वह धागा भी है

जिसने जोड़े रखा है तुम्हें मुझसे अब तक

***

उन दिनों जब तुम पूछते थे कि

प्यार की मात्रा और गहराई

और कभी-कभी उम्र भी

अस्सी घाट की सीढ़ियाँ, गंगा का तल

और बनारस

कितने माक़ूल जवाब लगते थे

और अब सोचती हूँ तो लगता है

अस्सी की कितनी सीढ़ियाँ डूब गईं

गंगा के कितने पाट सूख गए

बनारस कितना पुराना हो गया...

स्रोत :
  • रचनाकार : उपासना झा
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

यह पाठ नीचे दिए गये संग्रह में भी शामिल है

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY