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बाढ़ आएगी सोचकर फिर मैं

baDh ayegi sochkar phir main

अनुवाद : खड़कराज गिरी

वीरभद्र कार्कीढोली

वीरभद्र कार्कीढोली

बाढ़ आएगी सोचकर फिर मैं

वीरभद्र कार्कीढोली

और अधिकवीरभद्र कार्कीढोली

    ओलों से डरकर

    खिलने की प्रकिया

    रोक नहीं सकता मैं।

    तुम्हीं मेरा वास हो

    इस हल्के से झोंके में गिरोगी

    तो मैं रहूँगा कहाँ?

    तुम ही मेरी ज़िंदगी हो

    कौन सी ज़िंदगी जीऊँगा फिर मैं?

    मत सोचना, आसमान में उड़ रहे पक्षी

    पंख फैलाए देखकर

    तुमसे अलग मैं

    उड़कर कभी आसमान में पहुँच नहीं सकता,

    हरगिज़ नहीं!

    फिर भी अलग होऊँगा/ किसी के हाथ से/ सोचकर

    पुन: खिले बिना भी नहीं रह सकता!

    समुद्र दिखाओ मुझे

    समुद्र देखकर

    तुम्हारे अंदर के पवित्र झरने को

    दूषित नहीं बना सकता मैं।

    मारकर ओलों से गिरा दे मुझे

    ओले भी गिरते हैं, जैसे मैं

    फिर डरूँ मैं क्यों?

    हवा, तूफान और ओलों को

    रोकने की क्षमता नहीं है हममें।

    इसीलिए बाढ़ आएगी, सोचकर मैं

    अपना बहाव भी नहीं रोक सकता

    मेढ़क

    मेढ़कों के लिए ही अब मैं

    कुआँ भी तो नहीं बन सकता।

    स्रोत :
    • पुस्तक : इस शहर में तुम्हें याद कर (पृष्ठ 66)
    • रचनाकार : वीरभद्र कार्कीढोली
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2016

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