उम्र ज़्यादा न थी उसकी
मज़बूरियों ने बूढ़ा बना दिया था उसको
सड़क किनारे बड़े बड़े मकानों के बीच
एक छोटा-सा खपरैल का घर
घर के चबूतरे पर अकेला बैठा
आने-जाने वालों को देखता
कभी मुस्कुराता,कभी कुछ सोचता
थोड़ी देर में उदास हो जाता।
अचानक उसे दर्द महसूस होता
घर के अंदर चला जाता
किसी से न कुछ कहता
न किसी से कुछ पूछता
सिर्फ़ ख़ुद से ही बातें करता
पता नहीं कब तक ज़िंदा हूँ मैं?
वो कैसे रहेगी मेरे बिना?
यक़ीन है उसपर मुझे ख़ुद से ज़्यादा
मेरे चारों बच्चों का जीवन
संवारेगी, बेहतरीन इंसान बनाएगी।
हम दोनों के जैसा बदनसीब
तो कतई न होने देगी
लेकिन, जब ख़ुद तकलीफ़ में होगी
किसके संग अपना दर्द बाँटेगी?
हालाँकि वो नहीं मुझसा कमज़ोर
मैं तो डरपोक निकला
साथ देने का वादा कर
दग़ा देने वाला हूँ
फ़र्ज़ का भारी बोझ
उसके हिस्से में अकेले
उसके नाम करने वाला हूँ
बस कुछ पलों का मेहमान हूँ
फिर ये ज़िंदगी छोड़ जाने वाला हूँ।
प्यार तो तुम सबसे था मुझे
लेकिन तुम सबको
अपना वो प्यार कभी जता नहीं पाया
बस अब आ जाओ मेरे पास
बैठ जाओ मेरे पास
एक आख़िरी बार
जी भर के देख तुम्हें लेना चाहता हूँ मैं
बस एक आख़िरी बार
चंद पलों में पूरी ज़िंदगी
तुम्हारे साथ जी लेना चाहता हूँ मैं
इन्हीं एहसासों के साथ
अपनी आँखें बंद करना चाहता हूँ मैं।
उसका नाम लेकर एक बार
बुलाना चाह रहा था उसे
मुँह तो खुला
आवाज़ शून्य हो गई
साँसों की डोर छूट गई
आख़िरकार चला ही गया वो
अंतिम ख़्वाहिश, छोटा-सा एक सपना
उसी के साथ चला गया
जिसमें पैसे के हिसाब की कोई बात नहीं थी
अपनों ने तो साथ छोड़ा
वक्त ने भी उसे धोखा दिया
अपनी प्रिये से अंतिम बार मिलने तो देता
एक आख़िरी बार जी तो लेने देता
अब क्या वो तो चला गया
शेष उसकी यादें रह गईं
और बाकी का जीवन काटने के लिए
उसकी प्रिये अकेले रह गई
लोग उसकी क़ब्र पे फूल चढ़ाते
उसे याद करते
लेकिन ये कहना नहीं भूलते
ग़रीब था,बेबस था
मज़दूर था मजबूर था
लेकिन बेहद अच्छा इंसान था वो।
- रचनाकार : एंजेला एनिमा तिर्की
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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