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30 मार्च 2013 शनिवार शाम 4 बजे

30 march 2013 shaniwar sham 4 baje

अजय सिंह

अजय सिंह

30 मार्च 2013 शनिवार शाम 4 बजे

अजय सिंह

और अधिकअजय सिंह

    यह दिन किसी और दिन

    जैसा ही था

    वे दोनों एक राजनीतिक रैली

    से लौट रहे थे

    रैली औरतों पर बढ़ रही

    हिंसा के ख़िलाफ़ आयोजित की गई थी

    औरतों के बारे में असंवेदनशील रवैया अपनाने के विरोध में

    प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और

    राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखिया मोहन भागवत के पुतले फूँके गए

    लड़की ने अपने भाषण में कहा मेरी स्कर्ट से ऊँची

    मेरी आवाज़ है जिससे पितृसत्ता डरती है

    उसका दोस्त पोस्टर लिए हुए था

    जिस पर गोरख पांडेय की कविता पंक्ति लिखी थी :

    'सड़कों पर लड़ाई में अब तुम्हारे

    शामिल होने के दिन गए हैं’

    रैली के बाद लड़की ने अपने

    दोस्त से कहा चलो मैं तुम्हारे घर

    तुम्हें ड्रॉप कर देती हूँ

    लड़की मोटर साइकिल चला रही थी

    उसका दोस्त पीछे की सीट पर बैठा था

    यह सुहाना दृश्य था

    घर पहुँचकर उसके दोस्त ने कहा

    चाय पीकर जाना

    घर पर ताला लगा था

    जिसे उसका दोस्त खोल रहा था

    लड़की ने पूछा तुम अकेले रहते हो?

    दोस्त ने कहा फ़िलहाल

    ताला खोलकर उसने कहा आओ

    लड़की असमंजस में बाहर खड़ी रही

    दोस्त ने पूछा डर रही हो?

    लड़की ने कहा नहीं डरने की क्या बात है

    और वह दोस्त के साथ अंदर कमरे में चली आई

    कमरे में आते ही उसकी घबराहट शुरू हो गई

    कभी वह कुर्सी पर बैठती कभी टेबुल की टेक लगाकर खड़ी हो जाती

    कभी सोफ़े पर बैठ जाती कभी चहलक़दमी करने लगती

    कभी अपने कुर्ते की जेब में हाथ डालती

    फिर निकाल लेती

    दोस्त मुस्करा रहा था

    उसने कमरे का दरवाज़ा अंदर से बंद करना चाहा

    तो लड़की चीख़ पड़ी दरवाज़ा खुला रहने दो

    मुझे डर लग रहा है

    दोस्त के लगातार मुस्कुराते रहने पर

    उसने चिढ़कर कहा घबराहट के मारे मेरी जान

    निकल रही है और तुम हँस रहे हो!

    मैं कभी इस तरह अकेली किसी मर्द के साथ

    उसके कमरे में नहीं गई जहाँ और कोई हो

    पंखा थोड़ा तेज़ करो

    पंखा तेज़ चल रहा था लेकिन

    पसीना था कि लड़की को बराबर

    अपनी गिरफ़्त में लिए जा रहा था

    दोस्त ने कहा अगर तुम्हें बलात्कार की आशंका हो

    तो तुम अपने घर जा सकती हो नो प्रॉब्लम हम कल कॉफ़ी हाउस में मिल लेंगे

    लड़की ने कहा पहले तुम चाय बनाओ फटाफट

    दोस्त ने कहा चाय बनाना एक कला है

    उसके लिए थोड़ा धैर्य और समय चाहिए

    यह कहकर उसने कमरे का दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया

    लड़की ने बंद दरवाज़े को देखा दोस्त के हाथों को देखा

    उसके चेहरे के भाव को देखा

    उसकी देहभाषा को देखा

    और सोचा अगर मेरे ऊपर हमला हुआ

    तो मुझे अपने बचाव में क्या करना चाहिए

    उसे याद आया अपने पर्स में

    वह छोटा रामपुरी चाक़ू रखती है

    लेकिन पर्स पता नहीं

    उसने कहाँ रख दिया था नर्वसनेस में

    मुस्कुराता हुआ दोस्त उसे वहीं छोड़

    रसोईघर की तरफ़ चला गया

    और चाय बनाने लगा

    लड़की भी धीरे-धीरे वहीं गई और

    दोस्त के पास खड़ी हो गई

    दो प्याली चाय लेकर दोस्त

    अपने लिखने-पढ़ने की

    टेबुल पर गया और वहीं कुर्सियों पर बैठ

    दोनों चाय पीने लगे

    चाय पीते-पीते अचानक लड़की ने अपने

    दोस्त की दाईं हथेली को अपनी बाईं

    हथेली में कसकर पकड़ा और टेबुल पर

    अपना माथा टिका दिया

    जैसे कि नींद रही हो

    दोस्त ने गुँथी हुई हथेलियों को देखा

    उन हथेलियों से जो ध्वनि-तरंगें

    निकल रही थीं उन्हें समझने की उसने कोशिश की

    फिर लड़की के चेहरे को देखा

    चेहरे पर रैली की थकान थी

    हल्की उदासी से भरा सम्मोहन था

    कुछ रहस्यमय खोयापन लिए हुए सुंदरता थी

    दोस्त ने लड़की के बालों पर धीरे से हाथ फेरा

    और आहिस्ते से सिर को चूम लिया

    वह कुछ सोच रहा था कि अब आगे क्या होने वाला है

    लड़की अपने दोस्त की हथेली को कस कर पकड़े थी

    यह दिन किसी और दिन जैसा ही था

    बस, दो स्वतंत्रचेता व्यक्ति

    एक-दूसरे पर भरोसा करना सीख रहे थे

    सहभागिता बन रही थी

    प्रेम पैदा हो रहा था

    और शायद आगे की किसी बड़ी लड़ाई का

    जज़्बा पनप रहा था

    यह दिन किसी और दिन जैसा ही था

    जो दो व्यक्तियों के लिए बहुत ख़ास बन गया था।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अजय सिंह
    • प्रकाशन : समालोचन वेब पत्रिका

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