प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा सातवीं के पाठ्यक्रम में शामिल है।
सत्यवती के पुत्र चित्रांगद बड़े ही वीर, परंतु स्वेच्छाचारी थे। एक बार किसी गंधर्व के साथ युद्ध हुआ, उसमें वह मारे गए। उनके कोई पुत्र न था, इसलिए उनके छोटे भाई विचित्रवीर्य हस्तिनापुर की राजगद्दी पर बैठे विचित्रवीर्य की आयु उस समय बहुत छोटी थी, इस कारण उनके बालिग होने तक राज-काज भीष्म को ही सँभालना पड़ा।
जब विचित्रवीर्य विवाह के योग्य हुए, तो भीष्म को उनके विवाह की चिंता हुई। उन्हें ख़बर लगी कि काशिराज की कन्याओं का स्वयंवर होने वाला है। यह जानकर भीष्म बड़े ख़ुश हुए और स्वयंवर में सम्मिलित होने के लिए काशी रवाना हो गए।
देश-विदेश के अनेक राजकुमार उस स्वयंवर राजकुमार उस में भाग लेने के लिए आए थे। राजपुत्रियों को पाने के लिए आपस में बड़ी स्पर्धा थी।
क्षत्रियों में भीष्म की प्रतिज्ञा की प्रतिष्ठा अद्वितीय थी। उनके महान त्याग और भीषण प्रतिज्ञा का हाल सब जानते थे। इसलिए जब वह स्वयंवर-मंडप में प्रविष्ट हुए, तो राजकुमारों ने सोचा कि वह सिर्फ़ स्वयंवर देखने के लिए आए होंगे। परंतु जब स्वयंवर में सम्मिलित होने वालों में भीष्म ने भी अपना नाम दिया तो अन्य कुमारों को निराश होना पड़ा। उनको क्या पता था कि दृढव्रती भीष्म अपने लिए नहीं, वरन् अपने भाई के लिए स्वयंवर में सम्मिलित हुए हैं।
सभा में खलबली मच गई। चारों ओर से भीष्म पर फब्तियाँ कसी जाने लगीं—“माना कि भरतवंशी भीष्म बड़े बुद्धिमान और विद्वान हैं, स्वयंवर से इन्हें क्या मतलब? इनके प्रण का क्या हुआ? जीवनभर ब्रह्मचारी रहने की इन्होंने जो प्रतिज्ञा की थी, क्या वह झूठी थी?” इस भाँति सब राजकुमारों ने भीष्म की हँसी उड़ाई, यहाँ तक कि काशिराज की कन्याओं ने भी भीष्म की तरफ़ से दृष्टि फेर ली और उनकी अवहेलना-सी करके आगे की ओर चल दीं।
भीष्म इस अवहेलना को सह न सके। उन्होंने सभी राजकुमारों को हराकर तीनों राजकन्याओं को बलपूर्वक रथ पर बैठा लिया और हस्तिनापुर को चल दिए। सौभदेश का राजा शाल्व बड़ा वीर था। काशिराज की सबसे बड़ी कन्या अंबा उस पर अनुरुक्त थी और उसको मन-ही-मन अपना पति मान चुकी थी। शाल्व ने भीष्म के रथ का पीछा किया और उसको रोकने का प्रयत्न किया। इस पर भीष्म और शाल्व के बीच घोर युद्ध छिड़ गया। भीष्म ने उसे हरा दिया, किंतु काशिराज की कन्याओं की प्रार्थना पर उसे जीवित ही छोड़ दिया।
भीष्म काशिराज की कन्याओं को लेकर हस्तिनापुर पहुँचे। विचित्रवीर्य के विवाह की सारी तैयारी हो जाने के बाद जब कन्याओं को विवाह मंडप में ले जाने का समय आया तो काशिराज की बड़ी बेटी अंबा एकांत में भीष्म से बोली—“गांगेय, मैंने अपने मन में सौभदेश के राजा शाल्व को अपना पति मान लिया था। इसी बीच आप मुझे बलपूर्वक यहाँ ले आए। मेरे मन की बात जानने के बाद आप मेरे बारे में अब जो उचित समझें, करें।”
भीष्म को अंबा की बात जँची। उन्होंने अंबा को उसकी इच्छानुसार उचित प्रबंध के साथ शाल्व के पास भेज दिया और अंबा की दोनों बहनों—अंबिका और अंबालिका—का विचित्रवीर्य के साथ विवाह करा दिया।
अंबा अपने मनोनीत वर सौभराज शाल्व के पास गई और सारा वृत्तांत कह सुनाया। उसने कहा—“राजन्! मैं आपको ही अपना पति मान चुकी हूँ। मेरे अनुरोध से भीष्म ने मुझे आपके पास भेजा है। आप मुझे अपनी पत्नी स्वीकार कर लें।”
पर शाल्व न माना। उसने अंबा से कहा—“सारे राजकुमारों के सामने भीष्म ने मुझे युद्ध में पराजित किया और तुम्हें बलपूर्वक हरण करके ले गए। इतने बड़े अपमान के बाद मैं तुम्हें कैसे स्वीकार कर सकता हूँ। तुम्हारे लिए अब उचित यही है कि तुम भीष्म के पास जाओ और उनकी सलाह के मुताबिक़ ही काम करो।”
बेचारी अंबा हस्तिनापुर लौट आई और भीष्म को सारा हाल कह सुनाया। उन्होंने विचित्रवीर्य से कहा—“वत्स, राजा शाल्व अंबा को स्वीकार नहीं करता। इससे विदित होता है कि उसकी इच्छा अंबा को पत्नी बनाने की नहीं थी। अब उसके साथ तुम्हारा ब्याह करने में कोई आपत्ति नहीं रही है। पर विचित्रवीर्य अंबा के साथ ब्याह करने को राजी न हुए।
बेचारी अंबा न इधर की रही न उधर की। कोई और रास्ता न देख वह भीष्म से बोली—“गांगेय, मैं तो दोनों ओर से ही गई। मेरा कोई भी सहारा न रहा। आप ही मुझे हर लाए थे, अतः अब आपका यह कर्तव्य है कि आप मेरे साथ ब्याह कर लें।”
भीष्म ने उसकी बात ध्यान से सुनी और अपनी प्रतिज्ञा की याद दिलाकर बोले—“अपनी प्रतिज्ञा तो मैं नहीं तोड़ सकता।” उन्होंने अंबा की परिस्थिति समझकर विचित्रवीर्य से दुबारा आग्रह किया, पर वह न माना। भीष्म ने अंबा को फिर समझाया और कहा कि सौभराज शाल्व के ही पास जाओ और एक बार फिर प्रार्थना करो। लाचार अंबा फिर शाल्व के पास गई और उसकी बहुत मिन्नतें कीं, लेकिन दूसरे की जीती हुई कन्या को स्वीकार करने से सौभराज ने साफ़ इंकार कर दिया। अंबा इस प्रकार छह साल तक हस्तिनापुर और सौभदेश के बीच ठोकरें खाती फिरी। उसने अपने इस सारे दुख का कारण भीष्म को ही समझा। उन पर उसे बहुत क्रोध आया और प्रतिहिंसा की आग उसके मन में जलने लगी।
भीष्म से बदला लेने की इच्छा से वह कई राजाओं के पास गई और उनको अपना दुखड़ा सुनाया। भीष्म से युद्ध करके उनका वध करने की उसने राजाओं से प्रार्थना की, पर राजा लोग तो भीष्म के नाम से ही डरते थे। किसी में इतना साहस न था कि भीष्म से युद्ध करे। क्षत्रियों से एकदम निराश होकर अंबा ने तपस्वी ब्राह्मणों की शरण ली। तपस्वियों ने कहा—“बेटी, तुम परशुराम के पास जाओ। वे तुम्हारी इच्छा अवश्य पूरी करेंगे।” तब ऋषियों की सलाह पर अंबा परशुराम के पास गई।
अंबा की करुण कहानी सुनकर परशुराम का हृदय पिघल गया। उन्होंने दयार्द्र स्वर में कहा—“काशिराज-कन्ये, तुम मुझसे क्या चाहती हो?”
अंबा ने कहा—“ब्राह्मण वीर, मेरी प्रार्थना केवल यही है कि आप भीष्म से युद्ध करें। मैं आपसे भीष्म के वध की भीख माँगती हूँ।”
परशुराम को अंबा की प्रार्थना पसंद आई। बड़े उत्साह के साथ वह भीष्म के पास गए और उन्हें युद्ध के लिए ललकारा। दोनों कुशल योद्धा थे और धनुष-विद्या के जानकार भी। दोनों ही जितेंद्रिय और ब्रह्मचारी थे समान योद्धाओं की टक्कर थी। कई दिनों तक युद्ध होता रहा, फिर भी हार जीत का निश्चय न हो सका। अंत में परशुराम ने हार मान ली और उन्होंने अंबा से कहा—“जो कुछ मेरे वश में था, कर चुका। अब तुम्हारे लिए यही उचित है कि तुम भीष्म ही की शरण लो।”
पर अंबा ऐसी बातों से कब विचलित होने वाली थी? उसने वन में जाकर फिर तपस्या शुरू की और तपोबल से स्त्री रूप छोड़कर पुरुष बन गई और उसने अपना नाम शिखंडी रख लिया।
जब कौरवों और पांडवों के बीच कुरुक्षेत्र के मैदान में युद्ध हुआ, तो भीष्म के विरुद्ध लड़ते समय शिखंडी रथ के आगे बैठा था और अर्जुन ठीक उसके पीछे। ज्ञानी भीष्म को यह बात मालूम थी कि अंबा ही शिखंडी का रूप धारण किए हुए है। इसलिए उन्होंने उस पर बाण चलाना अपनी वीरोचित प्रतिष्ठा के विरुद्ध समझा। शिखंडी को आगे करके अर्जुन ने भीष्म पितामह पर हमला किया और अंत में उन पर विजय प्राप्त की। जब भीष्म आहत होकर पृथ्वी पर गिरे, तब जाकर अंबा का क्रोध शांत हुआ।
satyavti ke putr chitrangad baDe hi veer, parantu svechchhachari the. ek baar kisi gandharv ke saath yuddh hua, usmen wo mare ge. unke koi putr na tha, isliye unke chhote bhai vichitravirya hastinapur ki rajagaddi par baithe vichitravirya ki aayu us samay bahut chhoti thi, is karan unke balig hone tak raaj kaaj bheeshm ko hi sanbhalana paDa.
jab vichitravirya vivah ke yogya hue, to bheeshm ko unke vivah ki chinta hui. unhen khabar lagi ki kashiraj ki kanyaon ka svyanvar honevala hai. ye jankar bheeshm baDe khush hue aur svyanvar mein sammilit hone ke liye kashi ravana ho ge.
desh videsh ke anek rajakumar us svyanvar rajakumar us mein bhaag lene ke liye aaye the. rajputriyon ko pane ke liye aapas mein baDi spardha thi.
kshatriyon mein bheeshm ki prtigya ki pratishtha advitiy thi. unke mahan tyaag aur bhishan prtigya ka haal sab jante the. isliye jab wo svyanvar manDap mein pravisht hue, to rajakumaron ne socha ki wo sirf svyanvar dekhne ke liye aaye honge. parantu jab svyanvar mein sammilit honevalon mein bheeshm ne bhi apna naam diya to anya kumaron ko nirash hona paDa. unko kya pata tha ki driDhavrti bheeshm apne liye nahin, varan apne bhai ke liye svyanvar mein sammilit hue hain.
sabha mein khalbali mach gai. charon or se bheeshm par phabtiyan kasi jane lagin—“mana ki bharatvanshi bheeshm baDe buddhiman aur vidvan hain, svyanvar se inhen kya matlab? inke pran ka kya hua? jivanbhar brahamchari rahne ki inhonne jo prtigya ki thi, kya wo jhuthi thee?” is bhanti sab rajakumaron ne bheeshm ki hansi uDai, yahan tak ki kashiraj ki kanyaon ne bhi bheeshm ki taraf se drishti pher li aur unki avhelana si karke aage ki or chal deen.
bheeshm is avhelana ko sah na sake. unhonne sabhi rajakumaron ko harakar tinon rajkanyaon ko balpurvak rath par baitha liya aur hastinapur ko chal diye. saubhdesh ka raja shaalv baDa veer tha. kashiraj ki sabse baDi kanya amba us par anurukt thi aur usko man hi man apna pati maan chuki thi. shaalv ne bheeshm ke rath ka pichha kiya aur usko rokne ka prayatn kiya. is par bheeshm aur shaalv ke beech ghor yuddh chhiD gaya. bheeshm ne use hara diya, kintu kashiraj ki kanyaon ki pararthna par use jivit hi chhoD diya.
bheeshm kashiraj ki kanyaon ko lekar hastinapur pahunche. vichitravirya ke vivah ki sari taiyari ho jane ke baad jab kanyaon ko vivah manDap mein le jane ka samay aaya to kashiraj ki baDi beti amba ekaant mein bheeshm se boli—“gangey, mainne apne man mein saubhdesh ke raja shaalv ko apna pati maan liya tha. isi beech aap mujhe balpurvak yahan le aaye. mere man ki baat janne ke baad aap mere bare mein ab jo uchit samjhen, karen. ”
bheeshm ko amba ki baat janchi. unhonne amba ko uski ichchhanusar uchit prbandh ke saath shaalv ke paas bhej diya aur amba ki donon bahnon—ambika aur ambalika—ka vichitravirya ke saath vivah kara diya.
amba apne manonit var saubhraj shaalv ke paas gai aur sara vrittant kah sunaya. usne kaha—“rajan! main aapko hi apna pati maan chuki hoon. mere anurodh se bheeshm ne mujhe aapke paas bheja hai. aap mujhe apni patni svikar kar len. ”
par shaalv na mana. usne amba se kaha—“sare rajakumaron ke samne bheeshm ne mujhe yuddh mein parajit kiya aur tumhein balpurvak haran karke le ge. itne baDe apman ke baad main tumhein kaise svikar kar sakta hoon. tumhare liye ab uchit yahi hai ki tum bheeshm ke paas jao aur unki salah ke mutabik hi kaam karo. ”
bechari amba hastinapur laut aai aur bheeshm ko sara haal kah sunaya. unhonne vichitravirya se kaha—“vats, raja shaalv amba ko svikar nahin karta. isse vidit hota hai ki uski ichchha amba ko patni banane ki nahin thi. ab uske saath tumhara byaah karne mein koi apatti nahin rahi hai. par vichitravirya amba ke saath byaah karne ko raji na hue.
bechari amba na idhar ki rahi na udhar ki. koi aur rasta na dekh wo bheeshm se boli—“gangey, main to donon or se hi gai. mera koi bhi sahara na raha. aap hi mujhe har laye the, atः ab aapka ye kartavya hai ki aap mere saath byaah kar len. ”
bheeshm ne uski baat dhyaan se suni aur apni prtigya ki yaad dilakar bole—“apni prtigya to main nahin toD sakta. ” unhonne amba ki paristhiti samajhkar vichitravirya se dobara agrah kiya, par wo na mana. bheeshm ne amba ko phir samjhaya aur kaha ki saubhraj shaalv ke hi paas jao aur ek baar phir pararthna karo. lachar amba phir shaalv ke paas gai aur uski bahut minnten keen, lekin dusre ki jiti hui kanya ko svikar karne se saubhraj ne saaf inkaar kar diya. amba is prakar chhah saal tak hastinapur aur saubhdesh ke beech thokren khati phiri. usne apne is sare dukh ka karan bheeshm ko hi samjha. un par use bahut krodh aaya aur pratihinsa ki aag uske man mein jalne lagi.
bheeshm se badla lene ki ichchha se wo kai rajaon ke paas gai aur unko apna dukhDa sunaya. bheeshm se yuddh karke unka vadh karne ki usne rajaon se pararthna ki, par raja log to bheeshm ke naam se hi Darte the. kisi mein itna sahas na tha ki bheeshm se yuddh kare. kshatriyon se ekdam nirash hokar amba ne tapasvi brahmnon ki sharan li. tapasviyon ne kaha—“beti, tum parshuram ke paas jao. ve tumhari ichchha avashya puri karenge. ” tab rishiyon ki salah par amba parshuram ke paas gai.
amba ki karun kahani sunkar parshuram ka hriday pighal gaya. unhonne dayardr svar mein kaha—“kashiraj kanye, tum mujhse kya chahti ho?”
amba ne kaha—“brahman veer, meri pararthna keval yahi hai ki aap bheeshm se yuddh karen. main aapse bheeshm ke vadh ki bheekh mangti hoon. ”
parshuram ko amba ki pararthna pasand aai. baDe utsaah ke saath wo bheeshm ke paas ge aur unhen yuddh ke liye lalkara. donon kushal yoddha the aur dhanush vidya ke jankar bhi. donon hi jitendriy aur brahamchari the saman yoddhaon ki takkar thi. kai dinon tak yuddh hota raha, phir bhi haar jeet ka nishchay na ho saka. ant mein parshuram ne haar maan li aur unhonne amba se kaha—“jo kuch mere vash mein tha, kar chuka. ab tumhare liye yahi uchit hai ki tum bheeshm hi ki sharan lo. ”
par amba aisi baton se kab vichlit honevali thee? usne van mein jakar phir tapasya shuru ki aur tapobal se stri roop chhoDkar purush ban gai aur usne apna naam shikhanDi rakh liya.
jab kaurvon aur panDvon ke beech kurukshetr ke maidan mein yuddh hua, to bheeshm ke viruddh laDte samay shikhanDi rath ke aage baitha tha aur arjun theek uske pichhe gyani bheeshm ko ye baat malum thi ki amba hi shikhanDi ka roop dharan kiye hue hai. isliye unhonne us par baan chalana apni virochit pratishtha ke viruddh samjha. shikhanDi ko aage karke arjun ne bheeshm pitamah par hamla kiya aur ant mein un par vijay praapt ki. jab bheeshm aahat hokar prithvi par gire, tab jakar amba ka krodh shaant hua.
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हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।