Font by Mehr Nastaliq Web

बाल महाभारत : अज्ञातवास

baal mahabharat agyatvas

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी

बाल महाभारत : अज्ञातवास

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी

और अधिकचक्रवर्ती राजगोपालाचारी

    नोट

    प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा सातवीं के पाठ्यक्रम में शामिल है।

    सब अपना-अपना भेष बदलकर राजा विराट के यहाँ चाकरी करने गए, तो विराट ने उन्हें अपना नौकर बनाकर रखना उचित समझा। हर एक के बारे में उनका यही विचार था कि ये तो राज करने योग्य प्रतीत होते हैं। मन में शंका तो हुई, पर पांडव के बहुत आग्रह करने और विश्वास दिलाने पर राजा ने उन्हें अपनी सेवा में ले लिया। पांडव अपनी-अपनी पसंद के कामों पर नियुक्त कर लिए गए। युधिष्ठिर ‘कंक’ के नाम से विराट के दरबारी बन गए और राजा के साथ चौपड़ खेलकर दिन बिताने लगे। भीमसेन ‘वल्लभ’ के नाम से रसोइयों का मुखिया बनकर रहने लगा। वह कभी-कभी मशहूर पहलवानों से कुश्ती लड़कर या हिंस्त्र जंतुओं को वश में करके राजा का दिल बहलाया करता था। अर्जुन स्त्री के वेश में ‘बृहन्नला’ के नाम से रनवास की स्त्रियों, खासकर विराट की कन्या उत्तरा और उसकी सहेलियों एवं दास-दासियों को नाच और गाना-बजाना सिखलाने लगा। उनकी बीमारियों का इलाज करने और उनकी देखभाल करने में अपनी चतुरता का परिचय देते हुए राजा को ख़ुश करता रहा। सहदेव ‘तंतिपाल’ के रूप में गाय-बैलों की देखभाल करता रहा। पांचाल-राजा की पुत्री द्रौपदी, जिसकी सेवा-टहल के लिए कितनी ही दासियाँ रहती थीं, अब अपने पतियों की प्रतिज्ञा पूरी करने हेतु दूसरी रानी की आज्ञाकारिणी दासी बन गई। विराट की पत्नी सुदेष्णा की सेवा-सुश्रूषा करती हुई रनवास में ‘सैरंध्री’ के नाम से काम करने लगे।

    रानी सुदेष्णा का भाई कीचक बड़ा ही बलिष्ठ और प्रतापी वीर था। मत्स्य देश की सेना का वही नायक बना हुआ था और अपने कुल के लोगों को साथ कीचक ने बूढ़े विराटराज की शक्ति और सत्ता में ख़ूब वृद्धि कर दी थी। कीचक की धाक लोगों पर जमी हुई थी। लोग कहा करते थे कि मत्स्य देश का राजा तो कीचक है, विराट नहीं। यहाँ तक कि स्वयं विराट भी कीचक से डरा करते थे और उसका कहा मानते थे। जब से पांडवों के बारह बरस के वनवास की अवधि पूरी हुई थी, तभी से दुर्योधन के गुप्तचरों ने पांडवों की खोज करनी शुरू कर दी थी खोज इन्हीं दिनों हस्तिनापुर में कीचक के मारे जाने की ख़बर पाते ही दुर्योधन का माथा ठनका कि हो-न-हो कीचक का वध भीम ने ही किया होगा। यह दुर्योधन का अनुमान था। उसने अपना यह विचार राजसभा में प्रकट करते हुए कहा—“मेरा ख़याल है कि पांडव विराट के नगर में ही छिपे हुए हैं। मुझे तो यही ठीक लगता है कि पांडव वहाँ होंगे, तो निश्चय ही विराट की तरफ़ से हमसे लड़ने आएँगे। यदि हम अज्ञातवास की अवधि पूरी होने से पहले ही उनका पता लगा लेंगे, तो शर्त के अनुसार उन्हें बारह बरस के लिए फिर से वनवास करना होगा। यदि पांडव विराट के यहाँ भी हुए, तो भी हमारा कुछ नहीं बिगड़ेगा। हमारे तो दोनों हाथों में लड्डू हैं।”

    दुर्योधन की यह बात सुनकर त्रिगर्त देश का राजा सुशर्मा उठा और बोला—“राजन्! मत्स्य देश के राजा विराट मेरे शत्रु हैं। कीचक ने भी मुझे बहुत तंग किया था। इस अवसर का लाभ उठाकर मैं उससे अपना पुराना बैर भी चुका लेना चाहता हूँ।”

    कर्ण ने सुशर्मा की बात का अनुमोदन किया। फिर सबकी राय से यह निश्चय किया गया कि विराट के राज्य पर राजा सुशर्मा दक्षिण की ओर से हमला करे और जब विराट अपनी सेना लेकर उसका मुक़ाबला करने जाए, तब ठीक इसी मौके पर उत्तर की ओर से दुर्योधन अपनी सेना लेकर अचानक विराट नगर पर छापा मार दे। इस योजना के अनुसार राजा सुशर्मा ने दक्षिण की ओर से मत्स्य देश पर आक्रमण कर दिया।

    मत्स्य देश के दक्षिणी हिस्से पर त्रिगर्तराज की सेना छा गई और गायों के झुंड-के-झुंड सुशर्मा की सेना के कब्ज़े में गए। कंक (युधिष्ठिर) ने विराट को सांत्वना देते हुए कहा—“राजन् चिंता करें। मैं भी अस्त्र विद्या सीखा हुआ हूँ। मैंने सोचा है कि आपके रसोइये वल्लभ, अश्वपाल ग्रथिक और ततिपाल भी बड़े कुशल योद्धा हैं मैं कवच पहनकर रथारूढ़ होकर युद्धक्षेत्र में जाऊँगा। आप भी उनको आज्ञा दें कि रथारूढ़ होकर मेरे साथ चलें। सबके लिए रथ और शस्त्रास्त्र की आज्ञा दीजिए।”

    यह सुनकर विराट बड़े प्रसन्न हो गए। उनकी आज्ञानुसार चारों वीरों के लिए रथ तैयार होकर खड़े हुए। अर्जुन को छोड़कर बाक़ी चारों पांडव उन पर चढ़कर विराट और उनकी सेना समेत सुशर्मा से लड़ने चले गए। राजा सुशर्मा और विराट की सेनाओं में घोर युद्ध हुआ। जब राजा विराट बंदी बना लिए गए तो उनकी सारी सेना तितर-बितर हो गई। सैनिक भागने लगे। यह हाल देखकर युधिष्टिर भीमसेन से बोले” भीम! विराट को अभी छुड़ाकर लाना होगा और सुशर्मा का दर्प चूर करना होगा। यदि तुम सदा की भाँति सिंह की सी गर्जना करने लग जाओगे, तो शत्रु तुम्हें तुरंत पहचान लेंगे। इसलिए सामान्य लोगों की भाँति रथ पर बैठकर और धनुष बाण के सहारे लड़ना ठीक होगा।”

    आज्ञा मानकर भीमसेन रथ पर से ही सुशर्मा की सेना पर बाणों की बौछार करने लगा। थोड़ी ही देर की लड़ाई के बाद भीम ने विराट को छुड़ा लिया और सुशर्मा को क़ैद कर लिया। सुशर्मा की पराजय की ख़बर जब विराट नगर पहुँची, तो नगरवालों ने नगर को ख़ूब सजाकर आनंद मनाया और विजयी राजा विराट के स्वागत के लिए शहर के बाहर चल पड़े। इधर नगर के लोग विजय की ख़ुशियाँ मना रहे थे और राजा की बाट जोह रहे थे, तो उधर उत्तर की ओर से दुर्योधन ने तबाही मचा दी।

    राजकुमार उत्तर तो बिल्कुल डर गया था और काँप रहा था। उसने बृहन्नला से कहा—“बृहन्नला मुझे बचाओ इस संकट से मैं तुम्हारा बड़ा उपकार मानूँगा।”

    इस प्रकार राजकुमार उत्तर को भयभीत और घबराया हुआ जानकर बृहन्नला ने उसे समझाते हुए और उसका हौसला बढ़ाते हुए कहा—“राजकुमार घबराओ नहीं तुम तो सिर्फ़ घोड़ों की रास सँभाल लो।” इतना कहकर अर्जुन ने उत्तर को सारथी के स्थान पर बैठाकर रास उसके हाथ में पकड़ा दी। राजकुमार ने रास पकड़ ली। आचार्य द्रोण यह सब दूर से देख रहे थे। उनको विश्वास हो रहा था कि यह अर्जुन ही है। उन्होंने यह बात इशारे से भीष्म को जता दी। यह चर्चा सुनकर दुर्योधन कर्ण से बोला—“हमें इस बात से क्या मतलब कि यह औरत के भेष में कौन है! मान लें कि यह अर्जुन ही है। फिर भी हमारा तो उससे काम ही बनता है। शर्त के अनुसार उन्हें और बारह बरस का वनवास भुगतना पड़ेगा।”

    अर्जुन ने कौरव-सेना के सामने रथ ला खड़ा किया। उसने गांडीव सँभाल लिया और उस पर डोरी चढ़ाकर तीन बार ज़ोर से टंकार को कौरव सेना टंकार ध्वनि से सचेत होने भी नहीं पाई थी कि अर्जुन ने खड़े होकर शंख की ध्वनि की, जिससे कौरव सेना थर्रा उठी। उसमें खलबली मच गई कि पांडव गए।

    वीडियो
    This video is playing from YouTube

    Videos
    This video is playing from YouTube

    चक्रवर्ती राजगोपालाचारी

    चक्रवर्ती राजगोपालाचारी

    स्रोत :
    • पुस्तक : बाल महाभारत कथा (पृष्ठ 52)
    • रचनाकार : चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
    • प्रकाशन : एनसीईआरटी
    • संस्करण : 2022
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

    टिकट ख़रीदिए