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विश्वासभाजन जातक

vishvasbhajan jatak

अज्ञात

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विश्वासभाजन जातक

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और अधिकअज्ञात

    प्राचीन काल में वाराणसी के राजा ब्रह्मदत्त के समय में बोधिसत्व एक बहुत संपन्न श्रेष्ठी थे। जिस समय जंगलों में हरी-हरी घास उगती थी, उस समय उनके गोपालक और भी सब गोपालकों को अपने साथ लेकर जंगल में जाया करते थे और वहीं गौएँ चराते थे। बीच-बीच में वे दूध आदि लाकर बोधिसत्व को दे जाया करते थे। गौओं के चरने और रहने की जगह के पास ही एक सिंह रहा करता था। गौएँ सिंह से इतना डरती थीं कि उनका दूध घट जाया करता था। एक दिन जब एक गोपालक घी लेकर आया, तब बोधिसत्व ने उससे पूछा—क्यों जी, यह घी इतना कम क्यों है? गोपालक ने घी कम होने का कारण बता दिया। कारण सुनकर बोधिसत्व ने कहा—क्या तुम यह बतला सकते हो कि वह सिंह किसी प्राणी पर अनुरक्त है? गोपालक ने कहा—जी हाँ, वह एक मृगी पर अनुरक्त है। बोधिसत्व ने पूछा—क्या तुम उस मृगी को पकड़ सकते हो? गोपालक ने कहा—जी हाँ, पकड़ सकता हूँ। बोधिसत्व ने कहा—अच्छा तो तुम उस मृगी को पकड़ लो और उसके सिर से लेकर पैर तक सारे शरीर पर विष मल दो; और दो दिन तक उसे बाँध रखो। जब उसके शरीर का सारा विष अच्छी तरह सूख जाए, तब उसे छोड़ दो। सिंह स्नेह के कारण उसका शरीर चाटेगा, जिससे वह मर जाएगा। उस समय तुम उसका चमड़ा, नाख़ून, दाँत और चर्बी लेकर मेरे पास आना। इतना कहकर और विष देकर बोधिसत्व ने उस गोपालक को विदा किया।

    गोपालक ने वन में पहुँचकर जाल लगाया और मृगी को पकड़कर बोधिसत्व के परामर्श के अनुसार उसके सारे शरीर पर विष मल दिया और तब दो दिन के उपरांत उसे छोड़ दिया। जब सिंह ने उस मृगी को फिर पाया, तब वह स्नेहवश उसका शरीर चाटने लगा। चाटते-चाटते ही उसकी मृत्यु हो गई। गोपालक उसका चमड़ा आदि लेकर बोधिसत्व के पास पहुँचा। उसे देखकर बोधिसत्व ने कहा—कभी किसी को स्नेह के वश में नहीं होना चाहिए। देखो, ऐसा बलवान सिंह एक मृगी पर अनुरक्त होने के कारण उसका शरीर चाटता-चाटता मर गया। इसके उपरांत उन्होंने उपस्थित लोगों को उपदेश देने के लिए नीचे लिखे आशय की गाथा कही—

    कभी यह समझना चाहिए कि यह विश्वसनीय है। किसी पर विश्वास करने से ही मनुष्य पर विपत्ति आती है। इसी विश्वास के कारण इस सिंह के प्राण गए हैं।”

    इसके उपरांत बहुत दिनों तक दानादि सत्कार्य करते हुए वे अपने कर्मों के अनुसार फल भोगने के लिए परलोक को चले गए।

    स्रोत :
    • पुस्तक : जातक कथा-माला, पहला भाग (पृष्ठ 147)
    • प्रकाशन : साहित्य-रत्नमाला कार्यालय
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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