चंद्रयान (संवाद)
chandryan(sanvad)
नोट
प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा तीसरी के पाठ्यक्रम में शामिल है।
(कक्षा में अध्यापिका का आगमन और सभी बच्चों का अभिवादन।)
सभी विद्यार्थी — सुप्रभात अध्यापिका जी!
अध्यापिका — सुप्रभात बच्चो! आज हम चाँद के बारे में कुछ बातचीत करते हैं। आप सबने चाँद देखा है न! आपने चाँद की बहुत-सी कविताएँ भी गाई हैं।
सभी विद्यार्थी — जी हाँ...हमने चाँद देखा है। चाँद कभी दिखाई देता है और कभी नहीं भी दिखता।
अध्यापिका — अच्छा! ऐसा क्यों होता है कि चाँद कभी दिखता है और कभी नहीं दिखता?
एक विद्यार्थी — अध्यापिका जी! चाँद का मन है, वह दिखे न दिखे।
दूसरी विद्यार्थी — वह बादलों के साथ छुपन-छुपाई खेलता होगा।
तीसरी विद्यार्थी — मेरा तो बहुत मन करता है कि मैं चाँद पर जाऊँ।
अध्यापिका — क्या हम चाँद पर जा सकते हैं?
सभी विद्यार्थी — जी हाँ...!
अध्यापिका — कैसे?
सभी विद्यार्थी — रॉकेट से....
अध्यापिका — ठीक है। अब यह बताओ कि क्या कोई रॉकेट अभी तक चाँद पर गया है?
सभी विद्यार्थी — हाँ...हाँ! गया है। एक नहीं...कई गए हैं।
अध्यापिका — अच्छा! कौन-सा रॉकेट?
सभी विद्यार्थी — चंद्रयान 1, 2, 3!
अध्यापिका — शाबाश! आपको चंद्रयानों के बारे में तो पता है। हमारे वैज्ञानिकों ने चंद्रयान-3 को चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर उतारा है। ऐसा करने वाला भारत पहला देश है। है न हम सबके लिए गौरव की बात!
एक विद्यार्थी — यह दक्षिणी ध्रुव क्या है?
अध्यापिका — जैसे दक्षिण दिशा में धरती का दक्षिणी ध्रुव है, वैसे ही चंद्रमा का भी दक्षिणी ध्रुव है। कठिन परिस्थिति के कारण वहाँ कोई भी यान उतारना मुश्किल है। पर हमारे वैज्ञानिकों ने यह गौरवपूर्ण कार्य कर लिया है। आज की हमारी बातचीत इसी चंद्रयान के बारे में है। हमारे देश के वैज्ञानिक चाँद पर रॉकेट भेजकर यह पता लगाने का प्रयत्न कर रहे हैं कि चाँद पर क्या-क्या है?
कुछ विद्यार्थी — हमारा भी मन करता है कि हम भी चाँद पर जाकर वहाँ के बारे में जानें।
अध्यापिका — हाँ... हाँ, क्यों नहीं! अच्छा यह बताएँ कि वैज्ञानिकों को चाँद पर क्या-क्या मिला होगा?
कुछ विद्यार्थी — पानी, मिट्टी...!
अध्यापिका — एकदम सही! आप तो बहुत कुछ जानते हैं। आपको तो पता ही है कि चाँद धरती से बहुत दूर है। इसलिए वैज्ञानिकों ने चाँद पर एक रॉकेट भेजा और जानने का प्रयास किया कि वहाँ क्या-क्या है? उन्होंने इसे ‘चंद्रयान मिशन’ नाम दिया। ‘चंद्रयान’ ने चाँद के चारों ओर चक्कर लगाया और यह पता लगाया कि चाँद पर पानी है।
एक विद्यार्थी — वैज्ञानिकों को इतनी दूर जाकर पानी का पता लगाने की क्या आवश्यकता थी? हमारे घर के आस-पास पानी से भरे तीन-चार पोखर हैं।
एक अन्य विद्यार्थी — वे पानी लेने नहीं, वे तो चाँद के रहस्यों का पता लगाने गए थे।
अध्यापिका — हाँ, बिलकुल ठीक कहा। एक रहस्य जानने के बाद वैज्ञानिकों की जिज्ञासा और बढ़ी। उन्होंने फिर से रॉकेट भेजने की योजना बनाई और उन्होंने दूसरा रॉकेट भेजा और इसे ‘चंद्रयान-2’ का नाम दिया; पर यह कुछ ख़राबी के कारण चाँद पर उतर नहीं पाया। वैज्ञानिकों ने हार नहीं मानी। वे फिर से अपने कार्य में जुट गए...और उनका परिश्रम रंग लाया। इस बार चंद्रयान-3 चाँद पर पहुँच गया। आप सबने टीवी पर देखा होगा।
एक विद्यार्थी — मैं टीवी पर तो नहीं देख पाई थी, पर मैंने रेडियो पर सुना था।
एक अन्य विद्यार्थी — और प्रधानाध्यापिका ने भी तो सुनाया था।
अध्यापिका — तो देखा आपने, अपने देश के वैज्ञानिकों के परिश्रम का फल!
एक विद्यार्थी — अब चाँद पर क्या चल रहा है?
अध्यापिका — बहुत अच्छा प्रश्न, शाबाश! आपको पता है जो मशीन चाँद पर उतरी है, उसका नाम 'विक्रम लैंडर' है। यह लैंडर अपने साथ एक अन्य मशीन लेकर गया है जिसका नाम ‘प्रज्ञान’ है। यही प्रज्ञान चाँद पर घूम-घूमकर यह पता लगा रहा है कि चाँद की मिट्टी पृथ्वी जैसी है या नहीं, चाँद पर रहना संभव है या नहीं....
अध्यापिका — तो देखा आपने, लगातार प्रयास करने से कठिन से कठिन काम भी सफल होता है।
एक विद्यार्थी — यह तो हमें पता ही नहीं था! (आश्चर्य से)
विद्यार्थी — हम सब वो चंदा वाला गाना गाएँ?
अध्यापिका — आओ! सब मिलकर गाते हैं। “चंदा के गाँव में, तारों की छाँव में, हम सैर करने जाएँगे, हम सैर करने जाएँगे। हम कैसे जाएँगे? हम कैसे जाएँगे? हम चंद्रयान से जाएँगे, हम चंद्रयान से जाएँगे।”
- पुस्तक : वीणा (पृष्ठ 129)
- प्रकाशन : एनसीईआरटी
- संस्करण : 2022
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