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संकोच, डर, दया

sankoch, Dar, daya

गहबर गोवर्द्धन

गहबर गोवर्द्धन

संकोच, डर, दया

गहबर गोवर्द्धन

और अधिकगहबर गोवर्द्धन

    संकोच, डर, दया के अर्थी निकल गइल बा

    अब आदमी समय के साथे बदल गइल बा

    भटकल निगाह सभकर, बहकल मिजाज सभकर

    शायद शराब पी के मौसम मचल गइल बा

    पतझर बहार लउके, कँटवो गुलाब लउके

    फोटो में रंग अइसन जे भर दिहल गइल बा

    मंथन, मनन, समझ के अब काम कवन बाटे

    केकरा फिकिर कि पाँकी में दब कमल गइल बा

    दिन-रात, साँझ-भोरे सरगम सुनाई देला

    सभके दुआरी सवखे कुत्ता रखल गइल बा

    स्रोत :
    • पुस्तक : समय के राग (पृष्ठ 39)
    • संपादक : जगन्नाथ, भगवती प्रसाद द्विवेदी
    • रचनाकार : गहबर गोवर्द्धन
    • प्रकाशन : भोजपुरी साहित्य प्रतिष्ठान, पटना
    • संस्करण : 2003

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