ज़रा-सी देर को राहत है...
zara si der ko rahat hai. . .
ज़रा-सी देर को राहत है, राहत क्यों बहुत कम है,
शिकायत यह कि दुनिया में मोहब्बत क्यों बहुत कम है?
अदावत से तो दुनिया में न कोई काम होना था,
कहीं कुछ तो ग़लत है ही, शराफ़त क्यों बहुत कम है?
कहीं हमने ही तो छीना नहीं है बचपना उनका,
वो बच्चे हैं मगर उनमें शरारत क्यों बहुत कम है?
ज़रूरत पर उबलता-खौलता है सुनते आए हैं,
रगों में है लहू, उसमें हरारत क्यों बहुत कम है?
शहर वालों में ही होती शराफ़त, इसका है दावा,
शहर वालों में ही लेकिन शराफ़त क्यों बहुत कम है?
किसी मुट्ठी की ताक़त उँगलियों से है कहीं ज़्यादा,
हमें ही सोचना है यह कि ताक़त क्यों बहुत कम है?
- पुस्तक : ज्योति जगाए बैठे हैं (पृष्ठ 74)
- रचनाकार : कमलेश भट्ट कमल
- प्रकाशन : प्रकाशन संस्थान
- संस्करण : 2022
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