Font by Mehr Nastaliq Web

कार्नेलिया का गीत

karneliya ka geet

जयशंकर प्रसाद

जयशंकर प्रसाद

कार्नेलिया का गीत

जयशंकर प्रसाद

नोट

प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा बारहवीं के पाठ्यक्रम में शामिल है। —'चंद्रगुप्त' नाटक से

अरुण यह मधुमय देश हमारा!

जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।

सरस तामरस गर्भ विभा पर-नाच रही तरुशिखा मनोहर।

छिटका जीवन हरियाली पर-मंगल कुंकुम सारा!

लघु सुरधुन से पंख पसारे-शीतल मलय समीर सहारे।

उड़ते खग जिस ओर मुँह किए-समझ नीड़ निज प्यारा।

बरसाती आँखों के बादल-बनते जहाँ भरे करुणा जल।

लहरें टकराती अंनत की-पाकर जहाँ किनारा।

हेम कुंभ ले उषा सवेरे-भरती ढुलकाती सुख मेरे।

मदिर ऊँघते रहते जब-जगकर रजनी भर तारा।

वीडियो
This video is playing from YouTube

Videos
This video is playing from YouTube

जयशंकर प्रसाद

जयशंकर प्रसाद

स्रोत :
  • पुस्तक : अंतरा (भाग-2) (पृष्ठ 5)
  • रचनाकार : जयशंकर प्रसाद
  • प्रकाशन : एन.सी. ई.आर.टी
  • संस्करण : 2022
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY