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पहले हमें नदी का सपना

pahle hamein nadi ka sapna

विनोद श्रीवास्तव

विनोद श्रीवास्तव

पहले हमें नदी का सपना

विनोद श्रीवास्तव

और अधिकविनोद श्रीवास्तव

    पहले हमें नदी का सपना

    आते-आते आया था

    लेकिन अब मरुथल का कंपन

    जाते-जाते जाएगा

    जब साँसों में आग नहीं थी

    बादल तुम तो यहीं रहे

    अब छाया की पड़ी ज़रूरत

    आँचल तुम भी नहीं रहे

    पहले हमें नाम का जपना

    आते-आते आया था

    लेकिन अब परिचय का बंधन

    जाते-जाते जाएगा

    हमें बताया गया कि मेला

    मन की सारी पीर हरे

    लेकिन उत्सव में होना तो

    मन को और उदास करे

    पहले हमें गंध में रहना

    आते-आते आया था

    लेकिन अब प्राणों का चंदन

    जाते-जाते जाएगा

    अब डोलती घर आँगन में

    महकी धूप महावर-सी

    इन आँखों में तैर रही है

    कोई शाम सरोवर-सी

    पहले हमें गीत में बहना

    आते-आते आया था

    लेकिन अब सुधियों का दंशन

    जाते-जाते जाएगा

    स्रोत :
    • रचनाकार : विनोद श्रीवास्तव
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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