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छोटे का भूत

chhote ka bhoot

एक गाँव में एक व्यापारी रहता था। उसके दो बेटे और एक बेटी थी। बड़े भाई का नाम था बड़े और छोटे भाई का नाम था छोटे। बेटी का नाम था ननकी। एक बार व्यापारी बीमार पड़ गया। उसने बहुत चिकित्सा कराई किंतु कोई लाभ नहीं हुआ। अपना अंतिम समय जानकर व्यापारी ने अपने दोनों बेटों को अपने पास बुलाया।

‘बेटा, अब मेरा अंतिम समय गया है अत: तुम दोनों को अपना-अपना उत्तरदायित्व सँभाल लेना चाहिए। बड़े को व्यापार करना चाहिए और छोटे, तुमको घर-द्वार सँभाल लेना चाहिए।’ व्यापारी ने अपने बेटों से कहा।

इसके बाद व्यापारी की मुत्यृ हो गई। बड़ा बेटा जिसका नाम बड़े था, विवाहित था जबकि छोटे और ननकी अविवाहित थे। बड़े पास ही अलग घर में रहता था जबकि छोटे, ननकी और उनकी माँ अलग घर में रहते थे। पिता की मृत्यु के बाद बड़े ने व्यापार करने के लिए दूसरे देशों में जाने का निश्चय किया और एक सफ़ेद घोड़े पर सवार होकर साथ में बैलगाड़ियों में व्यापारिक सामान लेकर निकल पड़ा।

कई वर्ष व्यतीत हो गए किंतु बड़े लौटकर नहीं आया। सबने समझा कि बड़े की मृत्यु हो गई है और वह कभी लौट कर नहीं आएगा। बड़े की पत्नी ने भी यही समझा और उसने अपने लिए दूसरा पति ढूँढ़ने का निश्चय किया। बड़े की पत्नी की मति मारी गई और उसने अपने देवर छोटे को अपना पति बनाना तय कर लिया। उसे पता था कि उसकी सास तथा अन्य लोग उसे ऐसा नहीं करने देंगे अत: उसने एक योजना बनाई।

बड़े की पत्नी अर्थात् छोटे की भाभी ने दही बेचने वाली का वेश धारण किया और दही बेचने निकल पड़ी। वह 'दही ले लो, दही ले लो!’ की आवाज़ लगाती हुई अपनी सास के घर के सामने पहुँची। उसका देवर छोटे घर के दरवाजे पर बैठा केनदरा (सारंगी) बजा रहा था। भाभी ने छोटे से कहा कि दही ख़रीद लो।

‘माँ से पूछकर आता हूँ।’ कहकर छोटे ने केनदरा वहीं रखा और घर के भीतर चला गया। भाभी ने केनदरा उठाया और अपने घर लौट आई। छोटे जब माँ से पूछकर बाहर आया तो उसका केनदरा ग़ायब था। उसने यह बात अपनी माँ को बताई।

दहीवाली की चाल-ढाल का विवरण सुनकर माँ समझ गई कि यह छोटे की भाभी का काम है। उसने सोचा कि हो सकता है कि वह अपने देवर को चिढ़ाने के लिए वेश बदलकर आई और उसका केनदरा ले गई हो। माँ छोटे का केनदरा लेने छोटे की भाभी के घर गई।

‘ये हमारा भाभी-देवर के बीच का मामला है। आप बीच में पड़ें और जिसका केनदरा है, उसे लेने भेजें।’ भाभी ने माँ का स्वागत-सत्कार करते हुए कहा।

माँ ने लौटकर छोटे से कहा कि तुम्हीं अपनी भाभी से अपना केनदरा ले आओ।

किंतु छोटे को भाभी का यह व्यवहार उचित नहीं लग रहा था अत: उसने अपनी बहन ननकी से कहा कि वह जाकर उसका केनदरा ला दे। ननकी छोटे के कहने पर भाभी के पास गई।

‘ये हमारा भाभी-देवर के बीच का मामला है। आप बीच में पड़ें और जिसका केनदरा है, उसे लेने भेजें।’ भाभी ने ननकी का स्वागत-सत्कार करते हुए कहा।

ननकी ने लौटकर छोटे से कहा कि तुम्हीं भाभी से अपना केनदरा ले आओ।

छोटे समझ गया कि अब उसे ही जाना होगा। मन मारकर वह भाभी के पास पहुँचा।

‘आओ, देवर जी आओ!’ भाभी ने छोटे का जी खोलकर स्वागत किया। उसे ख़ूब खिलाया-पिलाया।

‘अब मुझे मेरा केनदरा दे दो।’ छोटे ने अपना केनदरा माँगा।

‘दे दूँगी, पहले ये शरबत तो पियो।’ भाभी ने कहा और शरबत का कुल्हड़ उसके आगे बढ़ा दिया। छोटे ने सोचा कि जल्दी से शर्बत पी लेने पर उसका केनदरा भी उसे जल्दी मिल जाएगा। उसने एक ही साँस में पूरा शर्बत पी लिया। भाभी ने शर्बत में जादुई बूटियाँ घोल दी थीं जिससे छोटे का मस्तिष्क भाभी के प्रभाव में गया। भाभी ने उससे साथ रहने को कहा तो वह भाभी के साथ रहने लगा।

एक दिन भाभी और छोटे अटारी पर बैठे हुए थे कि भाभी को उसका पति अर्थात् छोटे का बड़ा भाई आता दिखाई दिया। अब भाभी घबरा गई। लेकिन थी वह दुष्ट प्रकृति की अत: उसने दूसरे ही पल एक युक्ति सोचा और छोटे को रसोई घर में ले जाकर एक घड़े में छिपने को कहा। छोटे तो आज्ञाकारी सेवक बन चुका था। वह बिना किसी पूछ-ताछ के घड़े में छिपकर बैठ गया। भाभी ने घड़े के नीचे आग जला दी। जब तक बड़े घर में प्रवेश करता तब तक छोटे उबलकर मर चुका था।

‘मैं पहले तुमसे मिलने गया लेकिन अब छोटे और ननकी से मिलने जाता हूँ।’ बड़े ने कहा।

‘नहीं, पहले कुछ खा लो फिर जाना।’ भाभी ने मनुहार करते हुए कहा।

बड़े मान गया। वह खाने बैठा तो भाभी ने छोटे का माँस परोस दिया। बड़े को क्या पता कि वह अपने छोटे भाई का माँस खा रहा है। जैसे ही बड़े ने माँस का पहला टुकड़ा खाया वैसे ही जादुई बूटी का प्रभाव समाप्त हो गया। छोटे तो मर चुका था अत: उसका भूत बूटी के प्रभाव से मुक्त हो गया। तब उसे भाभी का छल-कपट याद आया। उसने मन ही मन सोचा कि ऐसी दुष्ट औरत से अपने भाई की रक्षा करनी चाहिए। ऐसी औरत का कोई भरोसा नहीं है, यह किसी दिन बड़े को भी मार सकती है।

छोटे अब भूत बन चुका था अत: वह बड़े से बात नहीं कर सकता था। वह समझ नहीं पा रहा था कि वह बड़े को कैसे सचेत करे? फिर उसे एक युक्ति सूझी।

छोटे ने अपना केनदरा उठाया और बजाने लगा। बड़े ने केनदरा का स्वर सुना तो वह समझ गया कि यह तो छोटे का केनदरा है। उसने इधर-उधर देखा किंतु छोटे दिखाई नहीं दिया। तभी उसे एक आश्चर्यजनक दृश्य दिखा। छोटे का केनदरा हवा में उड़ता हुआ बज रहा था। बड़े ने देखा तो वह डर गया।

वह भागा-भागा अपनी माँ के पास गया। माँ से छोटे के बारे में पूछा। माँ ने बताया कि छोटे की भाभी दहीवाली बनकर आई थी और उसका केनदरा ले गई थी।

छोटे उसके पास अपना केनदरा लेने गया तो फिर लौटकर नहीं आया। यह सुनकर बड़े को अपनी पत्नी पर संदेह हुआ। उसने जाकर अपनी पत्नी से पूछा। वह मुकर गई।

‘मुझे क्या पता? वह मेरे पास नहीं आया। वह आवारा था, कहीं भाग गया होगा।’ भाभी ने लापरवाही से कहा।

‘क्या उसका केनदरा तुम्हारे पास है?’ बड़े ने पूछा।

‘हाँ, मेरे पास है।’ भाभी ने कहा।

बड़े का संदेह विश्वास में बदल गया कि उसकी पत्नी झूठ बोल रही है। यदि केनदरा उसकी पत्नी के पास है तो छोटे का केनदरा छोटे की तरह कौन बजा रहा है?

उसने अपनी पत्नी से बार-बार पूछा लेकिन वह हर बार झूठ बोलती रही।

छोटे के भूत ने देखा कि उसका भाई सच्चाई जानने को व्याकुल है किंतु जान नहीं पा रहा है। स्वयं छोटे भी चाहता था कि बड़े को सच्चाई पता चल जाए। वह विचार कर रहा था कि क्या किया जाए तभी उसे जादुई बूटी की याद आई। उसे पता नहीं था कि वह कौन-सी बूटी थी। अत: छोटे का भूत श्मशान में पहुँचा। वहाँ उसने एक अघोरी से जादुई बूटी के बारे में पूछा। अघोरी ने छोटे के भूत को जादुई बूटी के बारे में बता दिया कि वह कहाँ मिलेगी। छोटे का भूत जादुई बूटी ले आया और उसे भाभी के भोजन में मिला दिया। भाभी ने भोजन किया तो वह आज्ञाकारी सेविका बन गई। अब छोटे के भूत ने केनदरा बजाते हुए केनदरा के स्वर के माध्यम से बड़े से कहा कि भाभी से सच्चाई पूछो। बड़े ने वैसा ही किया।

‘मुझे बताओ कि तुमने छोटे के साथ क्या किया?’ बड़े ने पूछा।

जादुई बूटी के प्रभाव से प्रभावित भाभी ने सबकुछ सच-सच उगल दिया। बड़े ने सुना तो वह अवाक रह गया। उसे यह सुनकर बहुत दुख हुआ कि उसने अपने छोटे भाई का मांस खाया। वह रोने लगा। उसके आँसू छोटे के केनदरा पर गिरे। केनदरा पर आँसू गिरते ही चमत्कार हुआ और छोटे पुन: मनुष्य रूप में गया। बड़े ने छोटे को जीवित देखा तो आगे बढ़कर उसे गले लगा लिया। इसके बाद बड़े ने अपनी पत्नी को आदेश दिया, ‘जाओ कुएँ में कूद जाओ!’

बड़े की पत्नी बूटी के प्रभाव से आज्ञाकारिणी हो गई थी अत: वह जाकर कुएँ में कूद गई। इस बार उसके बुरे कर्मों के कारण उसका बुरा अंत हुआ। वहीं छोटे भूत योनि से मनुष्य योनि में लौटकर अपने भाई, बहन और माँ के साथ प्रसन्नतापूर्वक रहने लगा।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 36)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

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