Font by Mehr Nastaliq Web

केले का पेड़ और गेंदे का फूल

kele ka peD aur gende ka phool

एक राजा था जिसकी पाँच रानियाँ थीं। पाँच रानियाँ होने पर भी उसे संतान सुख नहीं मिला था। इसी बात को लेकर वह बहुत दुखी रहता था। एक दिन वह शिकार खेलने जंगल गया। वहाँ उसे एक साधू मिला। राजा ने साधू को अपना दुख बताया।

‘हे राजन्! तुम अपनी ढाल और तलवार लेकर आम के उपवन में जाओ। वहाँ पहुँचकर अपनी तलवार से आम तोड़कर उन्हें अपनी ढाल में रोक लेना। जितने आम तुम्हारी ढाल में जाएँगें उन्हें तुम अपने महल में ले जाकर अपनी रानियों को खिला देना। इससे तुम्हें संतान की प्राप्ति होगी।’

साधू के कथनानुसार राजा अपने आम के उपवन में गया वहाँ उसने तलवार से आप तोड़े और उन्हें अपनी ढाल में रोकने का प्रयास किया। ढाल में एक आम रुका शेष नीचे गिर गए। राजा उस एक आम को लेकर अपने महल में पहुँचा। उसने अपनी बड़ी रानी को बुलाया।

'ये एक आम है। इसे तुम पाँचों रानियाँ आपस में बाँटकर खालो। इसके प्रभाव से तुम लोग माँ बन सकोगी।’ राजा ने बड़ी रानी को आम देते हुए कहा।

बड़ी रानी आम लेकर शेष रानियों के पास पहुँची। उस समय सबसे छोटी रानी किसी दुखी औरत की मदद करने गई थी। बड़ी रानी सहित तीनों रानियों ने सोचा कि छोटी रानी के भाग्य में ये आम खाना लिखा होता तो इस समय वह यहीं होती। अत: हमें उसकी प्रतीक्षा करने के बदले इस आम को आपस में बाँटकर खा लेना चाहिए।

चारों रानियों ने यही किया। आम को छीला, उसके चार टुकड़े किए और एक-एक टुकड़ा खा लिया।

थोड़ी देर बाद छोटी रानी लौटी। उसने आम का छिलका देखा तो शेष रानियों से अपने हिस्से के आम के बारे में पूछा। छोटी रानी को राजा ने आम के बारे में बता दिया था।

‘एक ही आम था और हमसे रहा नहीं गया तो हमने मिलकर खा लिया।’ बड़ी रानी ने भोलेपन से कहा। जबकि मन ही मन वह यह सोचकर प्रसन्न थी कि अब छोटी रानी राज्य को उत्तराधिकारी नहीं दे सकेगी।

बड़ी रानी की बात सुनकर छोटी रानी बहुत दुखी हुई। उसने कहा तो नहीं कुछ लेकिन आम के छिलके उठाए और उन छिलकों को खा लिया।

कुछ दिन बाद छोटी रानी गर्भवती हो गई। अन्य रानियों को यह देखकर आश्चर्य हुआ। उन्होंने आम खाया था जबकि छोटी रानी ने आम का छिलका खाया था। राजा को छोटी रानी के गर्भवती होने का समाचार मिला तो वह बहुत प्रसन्न हुआ। उसने शेष रानियों को आदेश दिया कि वे लोग छोटी रानी का विशेष ध्यान रखें। राजा का यह आदेश चारों रानियों को बड़ा बुरा लगा।

‘क्या हम छोटी रानी की नौकरानियाँ हैं जो उसका ध्यान रखें?’ मँझली रानी बड़बड़ाते हुए बोली।

‘ध्यान तो रखना पड़ेगा अन्यथा राजा रुष्ट हो जाएँगे। बड़ी रानी ने समझाया।

जिस दिन छोटी रानी को प्रसव पीड़ा आरंभ हुई उस दिन राजा शिकार खेलने गया था। लेकिन उसने कह रखा था कि जैसे ही संतान का जन्म हो वैसे ही उसे सूचित किया जाए। उचित समय पर छोटी रानी ने दो संतांनों को जन्म दिया। एक लड़का था और एक लड़की।

यह देखकर चारो रानियाँ चिंतित हो उठीं। उन्हें लगा कि अब राजा छोटी रानी को अधिक महत्व देगा और छोटी रानी का पुत्र राजा का उत्तराधिकारी बनेगा। अत: चारों रानियों ने अपनी विश्वस्त दासी के हाथों छोटी रानी के नवजात पुत्र और पुत्री को जंगल में फेंक आने को कहा और उनके स्थान पर एक झाड़ू और एक टोकरी रख दी। इसके बाद चारों रानियों ने राजा के पास संदेश भेजा कि छोटी रानी ने जुड़वाँ संतानों को जन्म दे दिया है।

संदेश पाकर राजा शिकार का कार्यक्रम बीच में ही समाप्त करके प्रसन्नतापूर्वक महल लौट आया। महल में पहुँचकर उसने छोटी रानी से जन्मी अपनी संतानों को देखने की इच्छा प्रकट की। बड़ी रानी ने झाड़ू और टोकरी सामने रखते हुए कहा, ‘छोटी रानी ने इन्हें पैदा किया है। मुझे तो छोटी रानी कोई जादूगरनी जान पड़ती है। तभी तो हम लोगों से पहले यह गर्भवती हो गई और इसने ऐसी संतानें जन्मी हैं।’

झाड़ू और टोकरी देखकर राजा क्रोधित हो उठा। उसे भी लगा कि रानी मानवी नहीं है अन्यथा बच्चों की जगह झाड़ू-टोकरी पैदा नहीं करती। उसने छोटी रानी को महल से बाहर निकाल दिया। छोटी रानी महल से निकलकर दुखी होकर भटकती हुई कहीं चली गई।

उधर चारों रानियों की विश्वस्त दासी ने दोनों शिशुओं को जंगल में एक गड्ढे में फेंक दिया और वापस महल चली गई। उसका विचार था कि जंगल में कोई कोई जंगली जानवर उन्हें खा जाएगा, नहीं तो दोनों शिशु भूख-प्यास से मर जाएँगे।

संयोगवश दासी के जाते ही एक कुम्हार और कुम्हारिन वहाँ पहुँचे। वे वहाँ प्रतिदिन मिट्टी खोदने आते थे। वह गड्ढा उन्हीं का बनाया हुआ था जिसमें दासी उन शिशुओं को फेंक गई थी। कुम्हार दंपत्ति की कोई संतान नहीं थी। उन लोगों ने शिशुओं को देखा तो बहुत प्रसन्न हुए। दोनों शिशुओं को कुम्हारिन ने अपनी गोद में उठा लिया और दुलार करने लगी।

कुम्हार और कुम्हारिन के लाड़-प्यार में पलते हुए दोनों भाई-बहन बड़े होने लगे। एक दिन भाई-बहन खेलते-खेलते महल की ओर निकल गए। बड़ी रानी ने उन्हें अपनी अटारी से देखा। दोनों की आयु और रंग रूप देखकर रानी को संदेह हुआ कि कहीं ये छोटी रानी की संतान तो नहीं? बड़ी रानी के मन में खोट तो था ही। उसने अपनी उसी विश्वस्त दासी को बुलाया और उसके हाथों विषैले पुए भेजते हुए कह कि ‘जाओ, उन दोनों बच्चों को खिला दो।’

दासी ने विषैले पुए उन दोनों को खिला दिया। दोनों बने पुए खाकर ख़ुशी-ख़ुशी अपने घर लौटे। वे अभी अपनी कुम्हारिन माँ को पुओं के बारे में बता ही रहे थे कि विष का प्रभाव होने लगा और एक-एक कर भाई-बहन दोनों मर गए। कुम्हारिन ने जब यह देखा तो वह विलाप करने लगी। कुम्हारिन का विलाप सुनकर कुम्हार दौड़ा-दौड़ा आया। उसने भाई-बहन को मरा हुआ पाया तो वह भी रोने लगा। फिर जैसे-तैसे अपने मन को समझाकर उसने दोनों बच्चों के शवों को उठाया और जंगल में एक स्थान पर दफ़्ना दिया।

जिस स्थान पर भाई-बहन को दफ़्नाया था उस स्थान पर कुछ दिन बाद एक केले का पेड़ उगा और एक गेंदे का पौधा उगा। गेंदे के पौधे में एक सुंदर फूल खिला। उस फूल की सुगंध दूर-दूर तक फैलने लगी। सुगंध से आकर्षित होकर कुछ चरवाहे उधर चले आए। उन्होंने गेंदे के फूल की सुंदरता देखी तो उसे तोड़ लेना चाहा। जैसे ही एक चरवाहे ने फूल तोड़ने के लिए हाथ बढ़ाया वैसे ही गेंदे के फूल ने केले के पेड़ से पूछा, ‘भैया-भैया, ये चरवाहा मुझे तोड़ लेना चाहता है, मैं क्या करूँ?’

‘करना क्या है? स्वर्ग की सीढ़ी चढ़ जा!’ केले ने गेंदे से कहा।

फिर क्या था, गेंदे का पौधा पलक झपकते इतना ऊँचा हो गया कि उसका फूल चरवाहे की पहुँच से दूर हो गया। यह देखकर सभी चरवाहे डर गए और वहाँ से भाग खड़े हुए। कुछ दूर जाने पर चरवाहों को दो सिपाही मिले।

‘कहाँ भाग रहे हो? किसी का कोई सामान तो नहीं चुराया है?’ सिपाहियों ने चरवाहों को डाँटते हुए पूछा।

इस पर चरवाहों ने सिपाहियों को चमत्कारी गेंदे के बारे में बताया। सिपाहियों को पहले तो विश्वास नहीं हुआ फिर उन्होंने स्वयं जाकर देखने का निश्चय किया।

गेंदे का फूल उस समय तक वापस अपने स्थान पर चुका था। एक सिपाही ने हाथ बढ़ाकर गेंदे का फूल तोड़ना चाहा।

‘भैया-भैया, ये सिपाही मुझे तोड़ लेना चाहता है, मैं क्या करूँ?’

‘करना क्या है? स्वर्ग की सीढ़ी चढ़ जा!’ केले ने गेंदे से कहा। गेंदे का पौधा फिर ऊँचा हो गया और फूल सिपाही की पहुँच से बाहर हो गया।

सिपाही डर गए। वे भाग कर राजा के पास पहुँचे। राजा उस समय अपनी चारों रानियों के साथ बैठा बातें कर रहा था। सिपाहियों ने राजा को जादुई गेंदे के बारे में बताया।

‘हम स्वयं जाकर देखेंगे उसे!’ राजा ने कहा। रानियाँ भी उत्सुकतावश साथ हो लीं।

वहाँ पहुँचकर राजा और चारों रानियों ने देखा कि गेंदे का फूल सचमुच बहुत सुंदर था।

‘पहले मैं तोडूँगी।’ बड़ी रानी ने हठ किया।

‘ठीक है, पहले तुम तोड़ लो!’ राजा ने अनुमति दे दी।

रानी ने फूल तोड़ने को हाथ बढ़ाया कि वही घटना फिर घटी।

‘भैया-भैया, ये रानी मुझे तोड़ लेना चाहती है, मैं क्या करूँ?’ गेंदे ने केले से पूछा।

‘करना क्या है? स्वर्ग की सीढ़ी चढ़ जा!’ केले ने गेंदे से कहा। गेंदे का पौधा फिर ऊँचा हो गया और फूल रानी की पहुँच से बाहर हो गया।

यह देखकर बड़ी रानी डर गई। इसके बाद एक-एक करके शेष तीनों रानियों ने फूल तोड़ने का प्रयास किया लेकिन फूल उनके हाथ नहीं आया। इसके बाद राजा ने फूल तोड़ना चाहा किंतु उसे भी असफलता हाथ लगी। किंतु राजा को केले के पेड़ और गेंदे के फूल के संवाद सुनकर ऐसा लगा कि कहीं ये छोटी रानी की संताने तो नहीं हैं? साधू के कथनानुसार छोटी रानी तो गर्भवती हुई लेकिन शेष रानियों ने अब तक कोई संतान नहीं जनीं, कहीं रानियों ने झूठ तो नहीं बोल दिया था? संदेह होते ही राजा ने अपने सेवकों को चारों ओर दौड़ा दिया कि वे कहीं से भी छोटी रानी को ढूँढ़कर लाएँ।

दूसरे दिन सेवकों ने छोटी रानी को ढूँढ़ निकाला। वह दुर्दिन में रह रही थी। उसके कपड़े फट चले थे और बाल उलझे हुए थे। अपनी संतानों को गँवाकर उसकी दशा पागलों जैसी हो गई थी। राजा ने छोटी रानी को इस दशा में देखा तो उसे बहुत दुख हुआ। उसने छोटी रानी को नहलवाया-धुलवाया और अच्छे कपड़े-गहने पहनवाए। इसके बाद वह छोटी रानी सहित गेंदे के फूल के पास पहुँचा। अन्य रानियाँ भी साथ थीं।

राजा के कहने पर छोटी रानी ने गेंदे के फूल को तोड़ने के लिए हाथ बढ़ाया।

‘भैया-भैया, माँ मुझे तोड़ लेना चाहती है, मैं क्या करूँ?’

‘करना क्या है? स्वर्ग की सीढ़ी से उतर जा और माँ की गोद में चली जा!’ केले ने गेंदे से कहा। देखते ही देखते गेंदे का पौघा बहुत नीचा हो गया और उससे फूल टूटकर छोटी रानी के आँचल में गिरा। अगले ही पल केले का पेड़ बालक में और गेंदे का पौधा बालिका में परिवर्तित हो गया और बालक-बालिक ‘माँ-माँ’ कहते हुए छोटी रानी के गले लग गए।

यह दृश्य देखकर राजा सारी बात समझ गया और रानियाँ डर गईं। राजा ने रानियों को फटकार लगाई और उन्हें देश निकाला दे दिया। इसके बाद राजा छोटी रानी और अपने बच्चों को लेकर महल लौट आया। बच्चों के कहने पर कुम्हार और कुम्हारिन को भी महल में बुला लिया गया। सभी लोग हँसी-ख़ुशी से रहने लगे।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 27)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY

जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

पास यहाँ से प्राप्त कीजिए