बुद्धू अपने माता-पिता का इकलौता पुत्र था। वह बचपन से ही बुद्धू था इसलिए सब उसे बुद्धू कहकर पुकारते थे। बुद्धू का कोई मज़ाक उड़ाता तो वह भी उसे अपनी प्रशंसा लगती। बुद्धू के माता-पिता उसके भविष्य को लेकर बहुत चिंतित रहते। बुद्धू जैसे-जैसे बड़ा हुआ वैसे-वैसे वह और अधिक बुद्धू होता गया।
एक दिन बुद्धू के एक दोस्त का विवाह हुआ। बुद्धू ने देखा कि विवाह में तो बड़े बाजे-गाजे बजते हैं, मिठाइयाँ खाने को मिलती हैं और अच्छे-अच्छे कपड़े पहनने को मिलते हैं तो उसने अपने पिता से कहा कि वे उसका भी विवाह करा दें। पिता ने उसे बहुत समझाया कि वह अभी विवाह के योग्य नहीं हुआ है किंतु बुद्धू मानने को तैयार नहीं था।
'जब मेरे दोस्त का विवाह हो गया तो मेरा क्यों नहीं हो सकता है?' बुद्धू की हठ थी।
‘तेरा दोस्त बुद्धिमान है लेकिन तू बुद्धू है।’ उसके पिता ने उसे समझाने का प्रयास किया।
‘विवाह तो लड़की से करना है फिर इसमें बुद्धिमान या बुद्धू होने की क्या बात है?’ बुद्धू ने रूठते हुए कहा।
‘बात ये है बेटा कि तुझसे कोई काम करते तो बनता नहीं है, चार पैसे कमा नहीं सकता है फिर अपनी पत्नी को खिलाएगा कहाँ से?’ पिता ने स्पष्ट शब्दों में कहा।
‘जैसे मैं खाता हूँ वैसे वो खाएगी। मैं कोठे से अनाज निकालकर माँ को देता हूँ तो वो चक्की में उसे पीसती है फिर हम खाते हैं। वैसे ही वो भी कोठे से अनाज निकालकर माँ को देगी, माँ पीसेगी और हम सब खाएँगे।’ बुद्धू ने भोलेपन से तर्क दिया।
पिता समझ गया कि बुद्धू किसी भी तरह से मानेगा नहीं। अत: उसने बुद्धू को बहलाने का प्रयास किया।
‘ठीक है। जो तू कहता है तो मैं तेरा विवाह करा दूँगा। मगर पहले तू लड़की से मिलकर उसे पसंद कर लेना फिर मुझे बताना।’ पिता ने कहा।
‘मुझे लड़की कहाँ मिलेगी?’ बुद्धू ने पूछा।
‘तू जब खेत की रखवाली करने जाएगा तो मैं लड़की को तेरे पास भेज दूँगा। पिता ने कहा।
‘हाँ, ये ठीक रहेगा।’ बुद्धू ख़ुश होकर बोला।
बुद्धू के पिता ने बुद्धू से कह तो दिया कि वह खेत में लड़की भेज देगा लेकिन अब वह लड़की भेजे कहाँ से? समूचे गाँव में एक भी लड़की ऐसी नहीं थी जो बुद्धू से मिलने को भी तैयार होती। बुद्धू के पिता ने बहुत सोच-विचार किया और अंतत: वह कुम्हार के पास पहुँचा।
‘मुझे एक मिट्टी की लड़की चाहिए। बिलकुल असली जैसी क़द-काठी वाली।’ बुद्धू के पिता ने कुम्हार से कहा।
कुम्हार ने असली लड़की जैसी मिट्टी की एक मूर्ति बना दी। बुद्धू के पिता ने लड़की की मूर्ति ले जाकर खेत में बने मचान पर रख दिया।
रात को खेत की रखवाली करने के लिए जब बुद्धू मचान पर पहुँचा तो वही बहुत अंँधेरा था। वह रात भर मचान पर चढ़कर खेत की रखवाली करता रहा किंतु उसे लड़की की मूर्ति दिखाई नहीं दी। भोर होने पर वह मचान से उतरा और घर आया। आते ही अपने पिता पर बिगड़ने लगा।
‘आपने कहा था कि आप खेत में किसी लड़की को भेजेंगे ताकि मैं उसे देखकर पसंद कर सकूँ मगर आप ने नहीं भेजी। आप झूठे हैं।’
‘नहीं रे बुद्धू! मैं झूठा नहीं हूँ। मैं स्वयं एक लड़की को मचान पर बिठाकर आया था। क्या तुमने उससे बात भी नहीं की?’ बुद्धू के पिता ने कहा।
‘हें? वहाँ तो कोई लड़की नहीं थी।’ बुद्धू चकित होकर बोला।
‘अरे वाह! कैसे नहीं थी? मैं उसे स्वयं वहाँ बिठाकर आया हूँ।’ बुद्धू के पिता ने झूठ बोलते हुए कहा।
‘ऐसा है तो मैं अभी खेत में जाता हूँ। उससे मिलकर आऊँगा।’ बुद्धू ने कहा और खेत जाने को उद्यत हो उठा।
‘ठीक है जाओ, लेकिन एक बात का ध्यान रखना कि यदि तुम उससे किसी भी प्रकार का हठ करोगे तो वह तुमसे रूठ जाएगी और तुम्हारे लिए वह मिट्टी की हो जाएगी।’ बुद्धू के पिता ने बुद्धू को आगाह किया। बुद्धू का पिता जानता था कि जब लड़की की मूर्ति बुद्धू के प्रश्नों का उत्तर नहीं देगी तो बुद्धू हठ करेगा और उसे लगेगा कि उसके हठ करने के कारण लड़की मिट्टी की हो गई है।
बुद्धू दौड़ा-दौड़ा खेत पर पहुँचा। उसी समय पड़ोस के खेत वाले ने अपने खेत से जंगली सुअर को भगाया।
जंगली सुअर उसी ओर भागा जिधर बुद्धू के खेत का मचान था। इधर बुद्धू भी अपने खेत की मचान की ओर आ रहा था। सुअर बुद्धू को अपनी ओर आता देखकर हड़बड़ा कर पलटा और मचान से टकरा कर भागा। सुअर के टकराने से बाँस-बल्ली की बनी मचान हिल गई और उस पर रखी लड़की की मूर्ति नीचे गिर कर टूट गई।
जब बुद्धू ने मचान पर चढ़कर देखा तो उसे लड़की नहीं मिली। बुद्धू तो था बुद्धू, उसने समझा की सुअर उसकी होने वाली पत्नी को लेकर भाग रहा है। बस, फिर क्या था, बुद्धू सुअर के पीछे दौड़ा। आगे-आगे जंगली सुअर और पीछे-पीछे बुद्धू। दोनों भागते-भागते घने जंगल में जा पहुँचे। सुअर को तो जंगल का चप्पा-चप्पा पता था इसलिए वह पलक झपकते ही किसी झुरमुट में ग़ायब हो गया। मगर बुद्धू जंगल में भटक गया।
बहुत देर तक भटकने के बाद बुद्धू जंगल के पार एक दूसरे गाँव जा पहुँचा। गाँव के बाहर एक कुआँ था। उस कुएँ पर गाँव की लड़कियाँ पानी भर रही थीं। बुद्धू ने उन लड़कियों को ध्यान से देखा। उनमें से एक लड़की बुद्धू को भा गई। बुद्धू को लगा कि यही वह लड़की है जिसको सुअर भगा लाया है। बुद्धू ने आव देखा न ताव, लड़की का हाथ पकड़कर अपने साथ ले जाने को उद्यत हो उठा।
पानी भरने आई लड़कियों में चींख़-पुकार मच गई। वह लड़की भी सहायता के लिए पुकारने लगी जिसका हाथ बुद्धू ने पकड़ रखा था। लड़कियों की चीख़-पुकार सुनकर गाँव वाले वहाँ आ गए। उनमें उस लड़की के माता पिता भी थे।
‘तुमने मेरी बेटी का हाथ क्यों पकड़ रखा है?’ लड़की के पिता ने बुद्धू से पूछा।
‘ये मेरी होने वाली पत्नी है। मैं इसे अपने साथ ले जाने आया हूँ।’ बुद्धू ने कहा।
‘किसने कहा कि ये तुम्हारी होने वाली पत्नी है?’ लड़की के पिता ने पूछा।
‘मेरे पिता ने।’ बुद्धू ने उत्तर दिया।
‘यदि ऐसा है तो तुम्हारी होने वाली पत्नी को लेने के लिए तुम्हारे साथ तुम्हारे पिता को भी आना चाहिए। वे क्यों नहीं आए? तुम अकेले क्यों आए?’ लड़की के पिता ने पूछा।
‘मैं तो इसका पीछा करते-करते यहाँ आ गया। इसे तो सुअर भगा लाया था। लेकिन अब ये चिंता न करें, मैं इसे अपने साथ ले जाऊँगा।’ बुद्धू ने कहा।
‘हें? इसे सुअर भगा लाया था?’
‘हाँ!’
‘बेटा तुम्हारा नाम क्या है? तुम मुझे अपना नाम बताओ और पूरी घटना बताओ क्योंकि मैं इस लड़की का पिता हूँ और तुम्हारा होने वाला ससुर हूँ।’ लड़की के पिता ने कहा।
‘मेरा नाम बुद्धू है।’ कहते हुए बुद्धू ने अपने पिता से हुई बातचीत से लेकर जंगल में सुअर का पीछा करते हुए कुएँ तक आने की पूरी घटना सुना डाली।
लड़की का पिता समझ गया कि बुद्धू यथा नाम तथा गुण है। उसे लगा कि यह लड़का मूर्ख अवश्य है लेकिन उसकी पुत्री का ध्यान रखेगा। यह विचार करके लड़की के पिता ने अपनी लड़की का विवाह बुद्धू के साथ करा दिया और उसे अपने साथ अपने ही गाँव में बसा लिया।
बुद्धू अपनी पत्नी के साथ हँसी-ख़ुशी से रहने लगा। एक दिन अचानक उसे अपने माता-पिता की याद आने लगी। उसे लगा कि माता-पिता से मिले बहुत दिन हो गए हैं और उसने अभी तक अपनी पत्नी भी उन्हें नहीं दिखाई है। बुद्धू ने अपने ससुर से कहा कि वह अपने गाँव जाना चाहता है और साथ में अपनी पत्नी को भी ले जाना चाहता है।
‘ठीक है, यदि तुम जाना चाहते हो तो जाओ। वैसे भी मेरी बेटी को अपनी ससुराल में रहना चाहिए।’ बुद्धू के ससुर ने कहा। वह अब तक बुद्धू की मूर्खताओं से तंग आ चुका था इसलिए उसने सहर्ष अनुमति दे दी।
इधर बुद्धू की पत्नी बुद्धू जैसा मूर्ख पति पाकर दुखी थी। उसे लगा कि कम से कम बुद्धू के परिवार के लोग तो मूर्ख नहीं होंगे। उनके सहारे जीवन कट जाएगा। फिर उसे इस बात का भी मलाल था कि उसके पिता ने बुद्धू जैसे मूर्ख व्यक्ति से उसका विवाह करा दिया जबकि उसे अच्छे लड़के मिल सकते थे। इसलिए बुद्धू की पत्नी भी ख़ुशी-ख़ुशी साथ जाने को तैयार हो गई।
बुद्धू और उसकी पत्नी परिवार वालों और गाँव वालों से विदा लेकर चल पड़े। बुद्धू के ससुर ने बुद्धू के गाँव का सही रास्ता अपनी बेटी को समझा दिया था। बुद्धू अपनी पत्नी के साथ जिस रास्ते से लौट रहा था उस रास्ते पर एक गाँव पड़ा। उस गाँव में मेला लगा हुआ था। नाना प्रकार की वस्तुओं की दूकानें सजी हुई थीं। बुद्धू ने देखा कि एक दूकान पर बढ़िया-बढ़िया रंग-बिरंगे कपड़े बिक रहे थे। बुद्धू अपनी पत्नी सहित उस दूकान पर पहुँचा और उसने अपने लिए, अपनी पत्नी के लिए और अपने माता-पिता के लिए अच्छे-अच्छे कपड़े पसंद कर लिए।
‘इन कपड़ों को अच्छे से एक थैले में रख दो। इन्हें मैं अपने साथ ले जाऊँगा।’ बुद्धू ने दूकानदार से कहा।
‘ये लीजिए।’ दूकानदार ने कपड़े एक थैले में रखे और बुद्धू को पकड़ा दिए। बुद्धू ने थैला लिया और चल दिया।
‘अरे साहब, कपड़ों के पैसे तो देते जाइए।’ दूकानदार चिल्लाया।
‘पैसे? कैसे पैसे?’ बुद्धू ने चकित होकर पूछा।
‘अरे वाह! आपने ये जो कपड़े ख़रीदे हैं उनके पैसे नहीं देंगे क्या?’ दूकानदार क्रोधित होते हुए बोला।
‘लेकिन पैसे तो मेरे पास नहीं हैं।’ बुद्धू ने कहा। वह चलते समय बटुवा रखना भूल गया था जो उसके ससुर ने उसे दिया था।
‘तो फिर आप ये कपड़े नहीं ले जा सकते हैं।’ दूकानदार ने थैला वापस लेते हुए कहा।
'मगर ये कपड़े मुझे बहुत पसंद आए हैं और मैं इन्हें लेना चाहता हूँ।’ बुद्धू ने कहा।
‘ठीक है। यदि आप इन्हें लेना ही चाहते हैं और आपके पास पैसे नहीं हैं तो आप मुझे इन कपड़ों के बदले कुछ और दे दीजिए।’ दूकानदार ने बुद्धू की इच्छा का ध्यान रखते हुए कहा।
इस पर बुद्धू सोच में पड़ गया कि वह कपड़ों के बदले दूकानदार को क्या दे?
बुद्धू ने विचार किया कि उसके पिता के गाँव में लगभग हर घर में एक पत्नी है। लेकिन हर घर में इतने सुंदर कपड़े नहीं हैं। यदि वह इन कपड़ों को ले जाकर अपने गाँव वालों को दिखाएगा तो उसके गाँव वालों की आँखें खुली की खुली रह जाएँगी। बुद्धू ने उस दूकानदार से कहा कि कपड़ों के बदले उसकी पत्नी को रख ले। दूकानदार बुद्धू की बात सुनकर पहले तो चकित रह गया फिर वह समझ गया कि यह व्यक्ति सचमुच मूर्ख है। उसने देखा कि उसकी पत्नी सुंदर और सुशील है अत: वह बुद्धू की पत्नी के बदले कपड़े देने को तैयार हो गया।
जब बुद्धू की पत्नी को इस बात का पता चला तो उसने भी यह सोचकर संतोष कर लिया कि ऐसे व्यक्ति के साथ जीवन व्यतीत करने से तो अच्छा है कि उससे अलग हो जाया जाए। उसे पास ही अपने गाँव का एक आदमी दिखाई दिया। बुद्धू की पत्नी ने उस आदमी को अपनी व्यथा-कथा सुनाई। उस आदमी ने बुद्धू के जाने के बाद उस दूकानदार को कपड़ों के पैसे दिए और बुद्धू की पत्नी को छुड़ाकर उसके पिता के पास ले गया।
इधर बुद्धू अपने पसंद के कपड़े लेकर अपने गाँव चल दिया। गाँव के बाहर उसे अपना एक पुराना मित्र मिला।
‘बुद्धू रे बुद्धू! तू अकेला कैसे? तेरी दुल्हन कहाँ है?’ मित्र ने पूछा। उसे पता था कि बुद्धू पत्नी की खोज में गाँव से चला गया था।
‘पिता ने दुल्हन दिलाई, सुअर उसे ले भागा। मैं पहुँचा दुल्हन के गाँव, जुड़ा ब्याह का धागा।’ बुद्धू ने कहा ।
‘वो दिखने में कैसी है?’ मित्र ने जिज्ञासावश पूछा।
‘दिखने में वो है सुंदर, लेकिन कपड़े उससे भी सुंदर।’ बुद्धू ने कहा।
‘अरे, जीती जागती दुल्हन की भला कपड़ों से कैसी तुलना?’ मित्र ने चकित होकर पूछा।
‘सुअर भगाकर दुल्हन पाई, दुल्हन देकर कपड़े पाए, कपड़े ऐसे सुंदर-सुंदर, सबके मन पर रौब जमाएँ।’ बुद्धू ने बड़ी शान से कहा।
बुद्धू की बात सुनकर उसके मित्र ने अपना सिर पीट लिया। इसके बाद बुद्धू अपने घर पहुँचा।
‘अरे बुद्धू मेरे बेटे! तू कहाँ चला गया था? तेरी दुल्हन कहाँ हैं? और ये इस थैले में क्या है?’ अपने पुत्र को बहुत समय बाद अपने सामने पाकर बुद्धू का पिता भावविभोर हो उठा। उसने बुद्धू पर प्रश्नों की झड़ी लगा दी।
‘पिता जी, सुअर भगा के दुल्हन पाई, दुल्हन दे के कपड़े पाए कपड़े ऐसे सुंदर-सुंदर, सबके मन पर रौब जमाएँ।' बुद्धू ने अपने पिता से कहा।
‘क्या कहा? तूने इन कपड़ों के बदले अपनी दुल्हन किसी और को दे दी?’ बुद्धू के पिता अवाक् रह गए। बुद्धू के पिता ने भी अपना माथा ठोंक लिया। वे समझ गए कि बुद्धू सदा बुद्धू ही रहेगा।
उधर बुद्धू को अपनी पत्नी के जाने का कोई दुख नहीं था, वह तो अपने मन के सुंदर-सुंदर कपड़े पाकर ख़ुश था। इसी को कहते हैं यथा नाम तथा गुण।
buddhu apne mata pita ka iklauta putr tha. wo bachpan se hi buddhu tha isliye sab use buddhu kahkar pukarte the. buddhu ka koi mazak uData to wo bhi use apni prshansa lagti. buddhu ke mata pita uske bhavishya ko lekar bahut chintit rahte. buddhu jaise jaise baDa hua vaise vaise wo aur adhik buddhu hota gaya.
ek din buddhu ke ek dost ka vivah hua. buddhu ne dekha ki vivah mein to baDe baje gaje bajte hain, mithaiyan khane ko milti hain aur achchhe achchhe kapDe pahanne ko milte hain to usne apne pita se kaha ki ve uska bhi vivah kara den. pita ne use bahut samjhaya ki wo abhi vivah ke yogya nahin hua hai kintu buddhu manne ko taiyar nahin tha.
jab mere dost ka vivah ho gaya to mera kyon nahin ho sakta hai? buddhu ki hath thi.
‘tera dost buddhiman hai lekin tu buddhu hai. ’ uske pita ne use samjhane ka prayas kiya.
‘vivah to laDki se karna hai phir ismen buddhiman ya buddhu hone ki kya baat hai?’ buddhu ne ruthte hue kaha.
‘baat ye hai beta ki tujhse koi kaam karte to banta nahin hai, chaar paise kama nahin sakta hai phir apni patni ko khilayega kahan se?’ pita ne aspasht shabdon mein kaha.
‘jaise main khata hoon vaise wo khayegi. main kothe se anaj nikalkar maan ko deta hoon to wo chakki mein use pisti hai phir hum khate hain. vaise hi wo bhi kothe se anaj nikal kar maan ko degi, maan pisegi aur hum sab khayenge. ’ buddhu ne bholepan se tark diya.
pita samajh gaya ki buddhu kisi bhi tarah se manega nahin. atah usne buddhu ko bahlane ka prayas kiya.
‘theek hai. jo tu kahta hai to main tera vivah kara dunga. magar pahle tu laDki se milkar use pasand kar lena phir mujhe batana. ’ pita ne kaha.
‘mujhe laDki kahan milegi?’ buddhu ne puchha.
‘tu jab khet ki rakhvali karne jayega to main laDki ko tere paas bhej dunga. pita ne kaha.
‘haan, ye theek rahega. ’ buddhu khush hokar bola.
buddhu ke pita ne buddhu se kah to diya ki wo khet mein laDki bhej dega lekin ab wo laDki bheje kahan se? samuche gaanv mein ek bhi laDki aisi nahin thi jo buddhu se milne ko bhi taiyar hoti. buddhu ke pita ne bahut soch vichar kiya aur anttah wo kumhar ke paas pahuncha.
‘mujhe ek mitti ki laDki chahiye. bilkul asli jaisi qad kathi vali. ’ buddhu ke pita ne kumhar se kaha.
kumhar ne asli laDki jaisi mitti ki ek murti bana di. buddhu ke pita ne laDki ki murti le jakar khet mein bane machan par rakh diya.
raat ko khet ki rakhvali karne ke liye jab buddhu machan par pahuncha to vahi bahut ‘anndhera tha. wo raat bhar machan par chaDhkar khet ki rakhvali karta raha kintu use laDki ki murti dikhai nahin di. bhor hone par wo machan se utra aur ghar aaya. aate hi apne pita par bigaDne laga.
‘apne kaha tha ki aap khet mein kisi laDki ko bhejenge taki main use dekhkar pasand kar sakun magar aap ne nahin bheji. aap jhuthe hain. ’
‘nahin re buddhu! main jhutha nahin hoon. main svayan ek laDki ko machan par bithakar aaya tha. kya tumne usse baat bhi nahin kee?’ buddhu ke pita ne kaha.
‘are vaah! kaise nahin thee? main use svayan vahan bithakar aaya hoon. ’ buddhu ke pita ne jhooth bolte hue kaha.
‘aisa hai to main abhi khet mein jata hoon. usse milkar auunga. ’ buddhu ne kaha aur khet jane ko udyat ho utha.
‘theek hai jao, lekin ek baat ka dhyaan rakhna ki yadi tum usse kisi bhi prakar ka hath karoge to wo tumse rooth jayegi aur tumhare liye wo mitti ki ho jayegi. ’ buddhu ke pita ne buddhu ko agah kiya. buddhu ka pita janta tha ki jab laDki ki murti buddhu ke prashnon ka uttar nahin degi to buddhu hath karega aur use lagega ki uske hath karne ke karan laDki mitti ki ho gai hai.
buddhu dauDa dauDa khet par pahuncha. usi samay paDos ke khet vale ne apne khet se jangli suar ko bhagaya.
jangli suar usi or bhaga jidhar buddhu ke khet ka machan tha. idhar buddhu bhi apne khet ki machan ki or aa raha tha. suar buddhu ko apni or aata dekhkar haDbaDa kar palta aur machan se takra kar bhaga. suar ke takrane se baans balli ki bani machan hil gai aur us par rakhi laDki ki murti niche gir kar toot gai.
jab buddhu ne machan par chaDhkar dekha to use laDki nahin mili. buddhu to tha buddhu, usne samjha ki suar uski hone vali patni ko lekar bhaag raha hai. bas, phir kya tha, buddhu suar ke pichhe dauDa. aage aage jangli suar aur pichhe pichhe buddhu. donon bhagte bhagte ghane jangal mein ja pahunche. suar ko to jangal ka chappa chappa pata tha isliye wo palak jhapakte hi kisi jhurmut mein ghayab ho gaya. magar buddhu jangal mein bhatak gaya.
bahut der tak bhatakne ke baad buddhu jangal ke paar ek dusre gaanv ja pahuncha. gaanv ke bahar ek kuan tha. us kuen par gaanv ki laDkiyan pani bhar rahi theen. buddhu ne un laDakiyon ko dhyaan se dekha. unmen se ek laDki buddhu ko bha gai. buddhu ko laga ki yahi wo laDki hai jisko suar bhaga laya hai. buddhu ne aav dekha na taav, laDki ka haath pakaD kar apne saath le jane ko udyat ho utha.
pani bharne aai laDakiyon mein cheenkh pukar mach gai. wo laDki bhi sahayata ke liye pukarne lagi jiska haath buddhu ne pakaD rakha tha. laDakiyon ki cheekh pukar sunkar gaanv vale vahan aa ge. unmen us laDki ke mata pita bhi the.
‘tumne meri beti ka haath kyon pakaD rakha hai?’ laDki ke pita ne buddhu se puchha.
‘ye meri hone vali patni hai. main ise apne saath le jane aaya hoon. ’ buddhu ne kaha.
‘kisne kaha ki ye tumhari hone vali patni hai?’ laDki ke pita ne puchha.
‘mere pita ne. ’ buddhu ne uttar diya.
‘yadi aisa hai to tumhari hone vali patni ko lene ke liye tumhare saath tumhare pita ko bhi aana chahiye. ve kyon nahin aaye? tum akele kyon aye?’ laDki ke pita ne puchha.
‘main to iska pichha karte karte yahan aa gaya. ise to suar bhaga laya tha. lekin ab ye chinta na karen, main ise apne saath le jaunga. ’ buddhu ne kaha.
‘hen? ise suar bhaga laya tha?’
‘haan!’
‘beta tumhara naam kya hai? tum mujhe apna naam batao aur puri ghatna batao kyonki main is laDki ka pita hoon aur tumhara hone vala sasur hoon. ’ laDki ke pita ne kaha.
‘mera naam buddhu hai. ’ kahte hue buddhu ne apne pita se hui batachit se lekar jangal mein suar ka pichha karte hue kuen tak aane ki puri ghatna suna Dali.
laDki ka pita samajh gaya ki buddhu yatha naam tatha gun hai. use laga ki ye laDka moorkh avashya hai lekin uski putri ka dhyaan rakhega. ye vichar karke laDki ke pita ne apni laDki ka vivah buddhu ke saath kara diya aur use apne saath apne hi gaanv mein basa liya.
buddhu apni patni ke saath hansi khushi se rahne laga. ek din achanak use apne mata pita ki yaad aane lagi. use laga ki mata pita se mile bahut din ho ge hain aur usne abhi tak apni patni bhi unhen nahin dikhai hai. buddhu ne apne sasur se kaha ki wo apne gaanv jana chahta hai aur saath mein apni patni ko bhi le jana chahta hai.
‘theek hai, yadi tum jana chahte ho to jao. vaise bhi meri beti ko apni sasural mein rahna chahiye. ’ buddhu ke sasur ne kaha. wo ab tak buddhu ki murkhtaon se tang aa chuka tha isliye usne saharsh anumti de di.
idhar buddhu ki patni buddhu jaisa moorkh pati pakar dukhi thi. use laga ki kam se kam buddhu ke parivar ke log to moorkh nahin honge. unke sahare jivan kat jayega. phir use is baat ka bhi malal tha ki uske pita ne buddhu jaise moorkh vyakti se uska vivah kara diya jabki use achchhe laDke mil sakte the. isliye buddhu ki patni bhi khushi khushi saath jane ko taiyar ho gai.
buddhu aur uski patni parivar valon aur gaanv valon se vida lekar chal paDe. buddhu ke sasur ne buddhu ke gaanv ka sahi rasta apni beti ko samjha diya tha. buddhu apni patni ke saath jis raste se laut raha tha us raste par ek gaanv paDa. us gaanv mein mela laga hua tha. nana prakar ki vastuon ki dukanen saji hui theen. buddhu ne dekha ki ek dukan par baDhiya baDhiya rang birange kapDe bik rahe the. buddhu apni patni sahit us dukan par pahuncha aur usne apne liye, apni patni ke liye aur apne mata pita ke liye achchhe achchhe kapDe pasand kar liye.
‘in kapDon ko achchhe se ek thaile mein rakh do. inhen main apne saath le jaunga. ’ buddhu ne dukanadar se kaha.
‘ye lijiye. ’ dukanadar ne kapDe ek thaile mein rakhe aur buddhu ko pakDa diye. buddhu ne thaila liya aur chal diya.
‘are sahab, kapDon ke paise to dete jaiye. ’ dukanadar chillaya.
‘paise? kaise paise?’ buddhu ne chakit hokar puchha.
‘are vaah! aapne ye jo kapDe kharide hain unke paise nahin denge kyaa?’ dukanadar krodhit hote hue bola.
‘lekin paise to mere paas nahin hain. ’ buddhu ne kaha. wo chalte samay batuva rakhna bhool gaya tha jo uske sasur ne use diya tha.
‘to phir aap ye kapDe nahin le ja sakte hain. ’ dukanadar ne thaila vapas lete hue kaha.
magar ye kapDe mujhe bahut pasand aaye hain aur main inhen lena chahta hoon. ’ buddhu ne kaha.
‘theek hai. yadi aap inhen lena hi chahte hain aur aapke paas paise nahin hain to aap mujhe in kapDon ke badle kuch aur de dijiye. ’ dukanadar ne buddhu ki ichchha ka dhyaan rakhte hue kaha.
is par buddhu soch mein paD gaya ki wo kapDon ke badle dukanadar ko kya de?
buddhu ne vichar kiya ki uske pita ke gaanv mein lagbhag har ghar mein ek patni hai. lekin har ghar mein itne sundar kapDe nahin hain. yadi wo in kapDon ko le jakar apne gaanv valon ko dikhayega to uske gaanv valon ki ankhen khuli ki khuli rah jayengi. buddhu ne us dukanadar se kaha ki kapDon ke badle uski patni ko rakh le. dukanadar buddhu ki baat sunkar pahle to chakit rah gaya phir wo samajh gaya ki ye vyakti sachmuch moorkh hai. usne dekha ki uski patni sundar aur sushil hai atah wo buddhu ki patni ke badle kapDe dene ko taiyar ho gaya.
jab buddhu ki patni ko is baat ka pata chala to usne bhi ye sochkar santosh kar liya ki aise vyakti ke saath jivan vyatit karne se to achchha hai ki usse alag ho jaya jaye. use paas hi apne gaanv ka ek adami dikhai diya. buddhu ki patni ne us adami ko apni vyatha katha sunai. us adami ne buddhu ke jane ke baad us dukanadar ko kapDon ke paise diye aur buddhu ki patni ko chhuDakar uske pita ke paas le gaya.
idhar buddhu apne pasand ke kapDe lekar apne gaanv chal diya. gaanv ke bahar use apna ek purana mitr mila.
‘buddhu re buddhu! tu akela kaise? teri dulhan kahan hai?’ mitr ne puchha. use pata tha ki buddhu patni ki khoj mein gaanv se chala gaya tha.
‘pita ne dulhan dilai, suar use le bhaga. main pahuncha dulhan ke gaanv, juDa byaah ka dhaga. ’ buddhu ne kaha.
‘vo dikhne mein kaisi hai?’ mitr ne jigyasavash puchha.
‘dikhne mein wo hai sundar, lekin kapDe usse bhi sundar. ’ buddhu ne kaha.
‘are, jiti jagti dulhan ki bhala kapDon se kaisi tulna?’ mitr ne chakit hokar puchha.
‘suar bhaga kar dulhan pai, dulhan dekar kapDe pae, kapDe aise sundar sundar, sabke man par raub jamayen. ’ buddhu ne baDi shaan se kaha.
buddhu ki baat sunkar uske mitr ne apna sir peet liya. iske baad buddhu apne ghar pahuncha.
‘are buddhu mere bete! tu kahan chala gaya tha? teri dulhan kahan hain? aur ye is thaile mein kya hai?’ apne putr ko bahut samay baad apne samne pakar buddhu ka pita bhavavibhor ho utha. usne buddhu par prashnon ki jhaDi laga di.
‘pita ji, suar bhaga ke dulhan pai, dulhan de ke kapDe pae kapDe aise sundar sundar, sabke man par raub jamayen. buddhu ne apne pita se kaha.
‘kya kaha? tune in kapDon ke badle apni dulhan kisi aur ko de dee?’ buddhu ke pita avak rah ge. buddhu ke pita ne bhi apna matha thonk liya. ve samajh ge ki buddhu sada buddhu hi rahega.
udhar buddhu ko apni patni ke jane ka koi dukh nahin tha, wo to apne man ke sundar sundar kapDe pakar khush tha. isi ko kahte hain yatha naam tatha gun.
buddhu apne mata pita ka iklauta putr tha. wo bachpan se hi buddhu tha isliye sab use buddhu kahkar pukarte the. buddhu ka koi mazak uData to wo bhi use apni prshansa lagti. buddhu ke mata pita uske bhavishya ko lekar bahut chintit rahte. buddhu jaise jaise baDa hua vaise vaise wo aur adhik buddhu hota gaya.
ek din buddhu ke ek dost ka vivah hua. buddhu ne dekha ki vivah mein to baDe baje gaje bajte hain, mithaiyan khane ko milti hain aur achchhe achchhe kapDe pahanne ko milte hain to usne apne pita se kaha ki ve uska bhi vivah kara den. pita ne use bahut samjhaya ki wo abhi vivah ke yogya nahin hua hai kintu buddhu manne ko taiyar nahin tha.
jab mere dost ka vivah ho gaya to mera kyon nahin ho sakta hai? buddhu ki hath thi.
‘tera dost buddhiman hai lekin tu buddhu hai. ’ uske pita ne use samjhane ka prayas kiya.
‘vivah to laDki se karna hai phir ismen buddhiman ya buddhu hone ki kya baat hai?’ buddhu ne ruthte hue kaha.
‘baat ye hai beta ki tujhse koi kaam karte to banta nahin hai, chaar paise kama nahin sakta hai phir apni patni ko khilayega kahan se?’ pita ne aspasht shabdon mein kaha.
‘jaise main khata hoon vaise wo khayegi. main kothe se anaj nikalkar maan ko deta hoon to wo chakki mein use pisti hai phir hum khate hain. vaise hi wo bhi kothe se anaj nikal kar maan ko degi, maan pisegi aur hum sab khayenge. ’ buddhu ne bholepan se tark diya.
pita samajh gaya ki buddhu kisi bhi tarah se manega nahin. atah usne buddhu ko bahlane ka prayas kiya.
‘theek hai. jo tu kahta hai to main tera vivah kara dunga. magar pahle tu laDki se milkar use pasand kar lena phir mujhe batana. ’ pita ne kaha.
‘mujhe laDki kahan milegi?’ buddhu ne puchha.
‘tu jab khet ki rakhvali karne jayega to main laDki ko tere paas bhej dunga. pita ne kaha.
‘haan, ye theek rahega. ’ buddhu khush hokar bola.
buddhu ke pita ne buddhu se kah to diya ki wo khet mein laDki bhej dega lekin ab wo laDki bheje kahan se? samuche gaanv mein ek bhi laDki aisi nahin thi jo buddhu se milne ko bhi taiyar hoti. buddhu ke pita ne bahut soch vichar kiya aur anttah wo kumhar ke paas pahuncha.
‘mujhe ek mitti ki laDki chahiye. bilkul asli jaisi qad kathi vali. ’ buddhu ke pita ne kumhar se kaha.
kumhar ne asli laDki jaisi mitti ki ek murti bana di. buddhu ke pita ne laDki ki murti le jakar khet mein bane machan par rakh diya.
raat ko khet ki rakhvali karne ke liye jab buddhu machan par pahuncha to vahi bahut ‘anndhera tha. wo raat bhar machan par chaDhkar khet ki rakhvali karta raha kintu use laDki ki murti dikhai nahin di. bhor hone par wo machan se utra aur ghar aaya. aate hi apne pita par bigaDne laga.
‘apne kaha tha ki aap khet mein kisi laDki ko bhejenge taki main use dekhkar pasand kar sakun magar aap ne nahin bheji. aap jhuthe hain. ’
‘nahin re buddhu! main jhutha nahin hoon. main svayan ek laDki ko machan par bithakar aaya tha. kya tumne usse baat bhi nahin kee?’ buddhu ke pita ne kaha.
‘are vaah! kaise nahin thee? main use svayan vahan bithakar aaya hoon. ’ buddhu ke pita ne jhooth bolte hue kaha.
‘aisa hai to main abhi khet mein jata hoon. usse milkar auunga. ’ buddhu ne kaha aur khet jane ko udyat ho utha.
‘theek hai jao, lekin ek baat ka dhyaan rakhna ki yadi tum usse kisi bhi prakar ka hath karoge to wo tumse rooth jayegi aur tumhare liye wo mitti ki ho jayegi. ’ buddhu ke pita ne buddhu ko agah kiya. buddhu ka pita janta tha ki jab laDki ki murti buddhu ke prashnon ka uttar nahin degi to buddhu hath karega aur use lagega ki uske hath karne ke karan laDki mitti ki ho gai hai.
buddhu dauDa dauDa khet par pahuncha. usi samay paDos ke khet vale ne apne khet se jangli suar ko bhagaya.
jangli suar usi or bhaga jidhar buddhu ke khet ka machan tha. idhar buddhu bhi apne khet ki machan ki or aa raha tha. suar buddhu ko apni or aata dekhkar haDbaDa kar palta aur machan se takra kar bhaga. suar ke takrane se baans balli ki bani machan hil gai aur us par rakhi laDki ki murti niche gir kar toot gai.
jab buddhu ne machan par chaDhkar dekha to use laDki nahin mili. buddhu to tha buddhu, usne samjha ki suar uski hone vali patni ko lekar bhaag raha hai. bas, phir kya tha, buddhu suar ke pichhe dauDa. aage aage jangli suar aur pichhe pichhe buddhu. donon bhagte bhagte ghane jangal mein ja pahunche. suar ko to jangal ka chappa chappa pata tha isliye wo palak jhapakte hi kisi jhurmut mein ghayab ho gaya. magar buddhu jangal mein bhatak gaya.
bahut der tak bhatakne ke baad buddhu jangal ke paar ek dusre gaanv ja pahuncha. gaanv ke bahar ek kuan tha. us kuen par gaanv ki laDkiyan pani bhar rahi theen. buddhu ne un laDakiyon ko dhyaan se dekha. unmen se ek laDki buddhu ko bha gai. buddhu ko laga ki yahi wo laDki hai jisko suar bhaga laya hai. buddhu ne aav dekha na taav, laDki ka haath pakaD kar apne saath le jane ko udyat ho utha.
pani bharne aai laDakiyon mein cheenkh pukar mach gai. wo laDki bhi sahayata ke liye pukarne lagi jiska haath buddhu ne pakaD rakha tha. laDakiyon ki cheekh pukar sunkar gaanv vale vahan aa ge. unmen us laDki ke mata pita bhi the.
‘tumne meri beti ka haath kyon pakaD rakha hai?’ laDki ke pita ne buddhu se puchha.
‘ye meri hone vali patni hai. main ise apne saath le jane aaya hoon. ’ buddhu ne kaha.
‘kisne kaha ki ye tumhari hone vali patni hai?’ laDki ke pita ne puchha.
‘mere pita ne. ’ buddhu ne uttar diya.
‘yadi aisa hai to tumhari hone vali patni ko lene ke liye tumhare saath tumhare pita ko bhi aana chahiye. ve kyon nahin aaye? tum akele kyon aye?’ laDki ke pita ne puchha.
‘main to iska pichha karte karte yahan aa gaya. ise to suar bhaga laya tha. lekin ab ye chinta na karen, main ise apne saath le jaunga. ’ buddhu ne kaha.
‘hen? ise suar bhaga laya tha?’
‘haan!’
‘beta tumhara naam kya hai? tum mujhe apna naam batao aur puri ghatna batao kyonki main is laDki ka pita hoon aur tumhara hone vala sasur hoon. ’ laDki ke pita ne kaha.
‘mera naam buddhu hai. ’ kahte hue buddhu ne apne pita se hui batachit se lekar jangal mein suar ka pichha karte hue kuen tak aane ki puri ghatna suna Dali.
laDki ka pita samajh gaya ki buddhu yatha naam tatha gun hai. use laga ki ye laDka moorkh avashya hai lekin uski putri ka dhyaan rakhega. ye vichar karke laDki ke pita ne apni laDki ka vivah buddhu ke saath kara diya aur use apne saath apne hi gaanv mein basa liya.
buddhu apni patni ke saath hansi khushi se rahne laga. ek din achanak use apne mata pita ki yaad aane lagi. use laga ki mata pita se mile bahut din ho ge hain aur usne abhi tak apni patni bhi unhen nahin dikhai hai. buddhu ne apne sasur se kaha ki wo apne gaanv jana chahta hai aur saath mein apni patni ko bhi le jana chahta hai.
‘theek hai, yadi tum jana chahte ho to jao. vaise bhi meri beti ko apni sasural mein rahna chahiye. ’ buddhu ke sasur ne kaha. wo ab tak buddhu ki murkhtaon se tang aa chuka tha isliye usne saharsh anumti de di.
idhar buddhu ki patni buddhu jaisa moorkh pati pakar dukhi thi. use laga ki kam se kam buddhu ke parivar ke log to moorkh nahin honge. unke sahare jivan kat jayega. phir use is baat ka bhi malal tha ki uske pita ne buddhu jaise moorkh vyakti se uska vivah kara diya jabki use achchhe laDke mil sakte the. isliye buddhu ki patni bhi khushi khushi saath jane ko taiyar ho gai.
buddhu aur uski patni parivar valon aur gaanv valon se vida lekar chal paDe. buddhu ke sasur ne buddhu ke gaanv ka sahi rasta apni beti ko samjha diya tha. buddhu apni patni ke saath jis raste se laut raha tha us raste par ek gaanv paDa. us gaanv mein mela laga hua tha. nana prakar ki vastuon ki dukanen saji hui theen. buddhu ne dekha ki ek dukan par baDhiya baDhiya rang birange kapDe bik rahe the. buddhu apni patni sahit us dukan par pahuncha aur usne apne liye, apni patni ke liye aur apne mata pita ke liye achchhe achchhe kapDe pasand kar liye.
‘in kapDon ko achchhe se ek thaile mein rakh do. inhen main apne saath le jaunga. ’ buddhu ne dukanadar se kaha.
‘ye lijiye. ’ dukanadar ne kapDe ek thaile mein rakhe aur buddhu ko pakDa diye. buddhu ne thaila liya aur chal diya.
‘are sahab, kapDon ke paise to dete jaiye. ’ dukanadar chillaya.
‘paise? kaise paise?’ buddhu ne chakit hokar puchha.
‘are vaah! aapne ye jo kapDe kharide hain unke paise nahin denge kyaa?’ dukanadar krodhit hote hue bola.
‘lekin paise to mere paas nahin hain. ’ buddhu ne kaha. wo chalte samay batuva rakhna bhool gaya tha jo uske sasur ne use diya tha.
‘to phir aap ye kapDe nahin le ja sakte hain. ’ dukanadar ne thaila vapas lete hue kaha.
magar ye kapDe mujhe bahut pasand aaye hain aur main inhen lena chahta hoon. ’ buddhu ne kaha.
‘theek hai. yadi aap inhen lena hi chahte hain aur aapke paas paise nahin hain to aap mujhe in kapDon ke badle kuch aur de dijiye. ’ dukanadar ne buddhu ki ichchha ka dhyaan rakhte hue kaha.
is par buddhu soch mein paD gaya ki wo kapDon ke badle dukanadar ko kya de?
buddhu ne vichar kiya ki uske pita ke gaanv mein lagbhag har ghar mein ek patni hai. lekin har ghar mein itne sundar kapDe nahin hain. yadi wo in kapDon ko le jakar apne gaanv valon ko dikhayega to uske gaanv valon ki ankhen khuli ki khuli rah jayengi. buddhu ne us dukanadar se kaha ki kapDon ke badle uski patni ko rakh le. dukanadar buddhu ki baat sunkar pahle to chakit rah gaya phir wo samajh gaya ki ye vyakti sachmuch moorkh hai. usne dekha ki uski patni sundar aur sushil hai atah wo buddhu ki patni ke badle kapDe dene ko taiyar ho gaya.
jab buddhu ki patni ko is baat ka pata chala to usne bhi ye sochkar santosh kar liya ki aise vyakti ke saath jivan vyatit karne se to achchha hai ki usse alag ho jaya jaye. use paas hi apne gaanv ka ek adami dikhai diya. buddhu ki patni ne us adami ko apni vyatha katha sunai. us adami ne buddhu ke jane ke baad us dukanadar ko kapDon ke paise diye aur buddhu ki patni ko chhuDakar uske pita ke paas le gaya.
idhar buddhu apne pasand ke kapDe lekar apne gaanv chal diya. gaanv ke bahar use apna ek purana mitr mila.
‘buddhu re buddhu! tu akela kaise? teri dulhan kahan hai?’ mitr ne puchha. use pata tha ki buddhu patni ki khoj mein gaanv se chala gaya tha.
‘pita ne dulhan dilai, suar use le bhaga. main pahuncha dulhan ke gaanv, juDa byaah ka dhaga. ’ buddhu ne kaha.
‘vo dikhne mein kaisi hai?’ mitr ne jigyasavash puchha.
‘dikhne mein wo hai sundar, lekin kapDe usse bhi sundar. ’ buddhu ne kaha.
‘are, jiti jagti dulhan ki bhala kapDon se kaisi tulna?’ mitr ne chakit hokar puchha.
‘suar bhaga kar dulhan pai, dulhan dekar kapDe pae, kapDe aise sundar sundar, sabke man par raub jamayen. ’ buddhu ne baDi shaan se kaha.
buddhu ki baat sunkar uske mitr ne apna sir peet liya. iske baad buddhu apne ghar pahuncha.
‘are buddhu mere bete! tu kahan chala gaya tha? teri dulhan kahan hain? aur ye is thaile mein kya hai?’ apne putr ko bahut samay baad apne samne pakar buddhu ka pita bhavavibhor ho utha. usne buddhu par prashnon ki jhaDi laga di.
‘pita ji, suar bhaga ke dulhan pai, dulhan de ke kapDe pae kapDe aise sundar sundar, sabke man par raub jamayen. buddhu ne apne pita se kaha.
‘kya kaha? tune in kapDon ke badle apni dulhan kisi aur ko de dee?’ buddhu ke pita avak rah ge. buddhu ke pita ne bhi apna matha thonk liya. ve samajh ge ki buddhu sada buddhu hi rahega.
udhar buddhu ko apni patni ke jane ka koi dukh nahin tha, wo to apne man ke sundar sundar kapDe pakar khush tha. isi ko kahte hain yatha naam tatha gun.
स्रोत :
पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 131)
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।