Font by Mehr Nastaliq Web

क्या निराश हुआ जाए

kya nirash hua jaaye

हजारीप्रसाद द्विवेदी

हजारीप्रसाद द्विवेदी

क्या निराश हुआ जाए

हजारीप्रसाद द्विवेदी

और अधिकहजारीप्रसाद द्विवेदी

    नोट

    प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा आठवीं के पाठ्यक्रम में शामिल है।

    मेरा मन कभी-कभी बैठ जाता है। समाचार पत्रों में ठगी, डकैती, चोरी, तस्करी और भ्रष्टाचार के समाचार भरे रहते हैं। आरोप-प्रत्यारोप का कुछ ऐसा वातावरण बन गया है कि लगता है, देश में कोई ईमानदार आदमी ही नहीं रह गया है। हर व्यक्ति संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा है। जो जितने ही ऊँचे पद पर हैं उनमें उतने ही अधिक दोष दिखाए जाते हैं।

    एक बहुत बड़े आदमी ने मुझसे एक बार कहा था कि इस समय सुखी वही है जो कुछ नहीं करता। जो कुछ भी करेगा उसमें लोग दोष खोजने लगेंगे। उसके सारे गुण भुला दिए जाएँगे और दोषों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाने लगेगा। दोष किसमें नहीं होते? यही कारण है कि हर आदमी दोषी अधिक दिख रहा है, गुणी कम या बिलकुल ही नहीं। स्थिति अगर ऐसी है तो निश्चय ही चिंता का विषय है।

    क्या यही भारतवर्ष है जिसका सपना तिलक और गाँधी ने देखा था? रवींद्रनाथ ठाकुर और मदनमोहन मालवीय का महान संस्कृति-सभ्य भारतवर्ष किस अतीत के गह्वर में डूब गया? आर्य और द्रविड़, हिंदू और मुसलमान, यूरोपीय और भारतीय आदर्शों की मिलन-भूमि 'मानव महा-समुद्र' क्या सूख ही गया? मेरा मन कहता है ऐसा हो नहीं सकता। हमारे महान मनीषियों के सपनों का भारत है और रहेगा।

    यह सही है कि इन दिनों कुछ ऐसा माहौल बना है कि ईमानदारी से मेहनत करके जीविका चलाने वाले निरीह और भोले-भाले श्रमजीवी पिस रहे हैं और झूठ तथा फ़रेब का रोज़गार करने वाले फल-फूल रहे हैं। ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय समझा जाने लगा है, सचाई केवल भीरु और बेबस लोगों के हिस्से पड़ी है। ऐसी स्थिति में जीवन के महान मूल्यों के बारे में लोगों की आस्था ही हिलने लगी है।

    भारतवर्ष ने कभी भी भौतिक वस्तुओं के संग्रह को बहुत अधिक महत्त्व नही दिया है, उसकी दृष्टि से मनुष्य के भीतर जो महान आंतरिक गुण स्थिर भाव से बैठा हुआ है, वही चरम और परम है। लोभ-मोह, काम-क्रोध आदि विचार मनुष्य में स्वाभाविक रूप से विद्यमान रहते हैं, पर उन्हें प्रधान शक्ति मान लेना और अपने मन तथा बुद्धि को उन्हीं के इशारे पर छोड़ देना बहुत बुरा आचरण है। भारतवर्ष ने कभी भी उन्हें उचित नहीं माना, उन्हें सदा संयम के बंधन से बाँधकर रखने का प्रयत्न किया है। परंतु भूख की उपेक्षा नहीं की जा सकती, बीमार के लिए दवा की उपेक्षा नहीं की जा सकती, गुमराह को ठीक रास्ते पर ले जाने के उपायों की उपेक्षा नहीं की जा सकती।

    हुआ यह है कि इस देश के कोटि-कोटि दरिद्रजनों की हीन अवस्था को दूर करने के लिए ऐसे अनेक क़ायदे-क़ानून बनाए गए हैं जो कृषि, उद्योग, वाणिज्य, शिक्षा और स्वास्थ्य की स्थिति को अधिक उन्नत और सुचारु बनाने के लक्ष्य से प्रेरित हैं, परंतु जिन लोगों को इन कार्यों में लगना है, उनका मन सब समय पवित्र नहीं होता। प्रायः वे ही लक्ष्य को भूल जाते हैं और अपनी ही सुख-सुविधा की ओर ज़्यादा ध्यान देने लगते हैं।

    भारतवर्ष सदा क़ानून को धर्म के रूप में देखता रहा है। आज एकाएक क़ानून और धर्म में अंतर कर दिया गया है। धर्म को धोखा नहीं दिया जा सकता, क़ानून को दिया जा सकता है। यही कारण है कि जो लोग धर्मभीरु हैं, वे क़ानून की त्रुटियों से लाभ उठाने में संकोच नहीं करते।

    इस बात के पर्याप्त प्रमाण खोजे जा सकते हैं कि समाज के ऊपरी वर्ग में चाहे जो भी होता रहा हो, भीतर-भीतर भारतवर्ष अब भी यह अनुभव कर रहा है कि धर्म क़ानून से बड़ी चीज़ है। अब भी सेवा, ईमानदारी, सचाई और आध्यात्मिकता के मूल्य बने हुए है। वे दब अवश्य गए हैं लेकिन नष्ट नहीं हुए हैं। आज भी वह मनुष्य से प्रेम करता है, महिलाओं का सम्मान करता है, झूठ और चोरी को ग़लत समझता है, दूसरे को पीड़ा पहुँचाने को पाप समझता है। हर आदमी अपने व्यक्तिगत जीवन में इस बात का अनुभव करता है। समाचार पत्रों में जो भ्रष्टाचार के प्रति इतना आक्रोश है, वह यही साबित करता है कि हम ऐसी चीज़ों को ग़लत समझते हैं, और समाज में उन तत्वों की प्रतिष्ठा कम करना चाहते हैं जो ग़लत तरीक़े से धन या मान संग्रह करते हैं।

    दोषों का पर्दाफ़ाश करना बुरी बात नहीं है। बुराई यह मालूम होती है कि किसी के आचरण के ग़लत पक्ष को उद्घाटित करके उसमें रस लिया जाता है और दोषोद्घाटन को एकमात्र कर्तव्य मान लिया जाता है। बुराई में रस लेना बुरी बात है, अच्छाई में उतना ही रस लेकर उजागर करना और भी बुरी बात है। सैकड़ों घटनाएँ ऐसी घटती हैं जिन्हें उजागर करने से लोक-चित्त में अच्छाई के प्रति अच्छी भावना जगती है।

    एक बार रेलवे स्टेशन पर टिकट लेते हुए ग़लती से मैंने दस के बजाए सौ रुपए का नोट दिया और मैं जल्दी-जल्दी गाड़ी में आकर बैठ गया। थोड़ी देर में टिकट बाबू उन दिनों के सेकंड क्लास के डिब्बे में हर आदमी का चेहरा पहचानता हुआ उपस्थित हुआ। उसने मुझे पहचान लिया और बड़ी विनम्रता के साथ मेरे हाथ में नब्बे रुपए रख दिए और बोला, यह बहुत ग़लती हो गई थी। आपने भी नहीं देखा, मैंने भी नहीं देखा। उसके चेहरे पर विचित्र संतोष की गरिमा थी। मैं चकित रह गया।

    कैसे कहूँ कि दुनिया से सचाई और ईमानदारी लुप्त हो गई है, वैसी अनेक अवांछित घटनाएँ भी हुई हैं, परंतु यह एक घटना ठगी और वंचना की अनेक घटनाओं से अधिक शक्तिशाली है।

    एक बार मैं बस में यात्रा कर रहा था। मेरे साथ मेरी पत्नी और तीन बच्चे भी थे। बस में कुछ ख़राबी थी, रुक-रुककर चलती थी। गंतव्य से कोई आठ किलोमीटर पहले ही एक निर्जन सुनसान स्थान में बस ने जवाब दे दिया। रात के कोई दस बजे होंगे। बस में यात्री घबरा गए। कंडक्टर उतर गया और एक साइकिल लेकर चलता बना। लोगों को संदेह हो गया कि हमें धोखा दिया जा रहा है।

    बस में बैठे लोगों ने तरह-तरह की बातें शुरू कर दीं। किसी ने कहा, यहाँ डकैती होती है, दो दिन पहले इसी तरह एक बस को लूटा गया था। परिवार सहित अकेला मैं ही था। बच्चे पानी-पानी चिल्ला रहे थे। पानी का कहीं ठिकाना था। ऊपर से आदमियों का डर समा गया था।

    कुछ नौजवानों ने ड्राइवर को पकड़कर मारने-पीटने का हिसाब बनाया। ड्राइवर के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगीं। लोगों ने उसे पकड़ लिया। वह बड़े कातर ढंग से मेरी ओर देखने लगा और बोला, हम लोग बस का कोई उपाय कर रहे हैं, बचाइए, ये लोग मारेंगे। डर तो मेरे मन में था पर उसकी कातर मुद्रा देखकर मैंने यात्रियों को समझाया कि मारना ठीक नहीं है। परंतु यात्री इतने घबरा गए कि मेरी बात सुनने को तैयार नहीं हुए। कहने लगे, इसकी बातों में मत आइए, धोखा दे रहा है। कंडक्टर को पहले ही डाकुओं के यहाँ भेज दिया है।

    मैं भी बहुत भयभीत था पर ड्राइवर को किसी तरह मार-पीट से बचाया। डेढ़-दो घंटे बीत गए। मेरे बच्चे भोजन और पानी के लिए व्याकुल थे। मेरी और पत्नी की हालत बुरी थी। लोगों ने ड्राइवर को मारा तो नहीं पर उसे बस से उतारकर एक जगह घेरकर रखा। कोई भी दुर्घटना होती है तो पहले ड्रावइर को समाप्त कर देना उन्हें उचित जान पड़ा। मेरे गिड़गिड़ाने का कोई विशेष असर नहीं पड़ा। इसी समय क्या देखता हूँ कि एक ख़ाली बस चली रही है और उस पर हमारा बस कंडक्टर भी बैठा हुआ है। उसने आते ही कहा, अड्डे से नई बस लाया हूँ, इस बस पर बैठिए। वह बस चलाने लायक़ नहीं है। फिर मेरे पास एक लोटा में पानी और थोड़ा दूध लेकर आया और बोला, पंडित जी! बच्चों का रोना मुझसे देखा नहीं गया। वहीं दूध मिल गया, थोड़ा लेता आया। यात्रियों में फिर जान आई। सबने उसे धन्यवाद दिया। ड्राइवर से माफ़ी माँगी और बारह बजे से पहले ही सब लोग बस अड्डे पहुँच गए।

    कैसे कहूँ कि मनुष्यता एकदम समाप्त हो गई! कैसे कहूँ कि लोगों में दया-माया रह ही नहीं गई! जीवन में जाने कितनी ऐसी घटनाएँ हुई हैं जिन्हें मै भूल नहीं सकता।

    ठगा भी गया हूँ, धोखा भी खाया है, परंतु बहुत कम स्थलों पर विश्वासघात नाम की चीज़ मिलती है। केवल उन्हीं बातों का हिसाब रखो, जिनमें धोखा खाया है तो जीवन कष्टकर हो जाएगा, परंतु ऐसी घटनाएँ भी बहुत कम नहीं हैं जब लोगों ने अकारण सहायता की है, निराश मन को ढाढ़स दिया है और हिम्मत बँधाई है। कविवर रवींद्रनाथ ठाकुर ने अपने प्रार्थना गीत में भगवान से प्रार्थना की थी कि संसार में केवल नुक़सान ही उठाना पड़े, धोखा ही खाना पड़े तो ऐसे अवसरों पर भी हे प्रभो! मुझे ऐसी शक्ति दो कि मैं तुम्हारे ऊपर संदेह करूँ।

    मनुष्य की बनाई विधियाँ ग़लत नतीज़े तक पहुँच रही हैं तो इन्हें बदलना होगा। वस्तुतः आए दिन इन्हें बदला ही जा रहा है, लेकिन अब भी आशा की ज्योति बुझी नहीं है। महान भारतवर्ष को पाने की संभावना बनी हुई है, बनी रहगी।

    मेरे मन! निराश होने की ज़रूरत नहीं है।

    वीडियो
    This video is playing from YouTube

    Videos
    This video is playing from YouTube

    हजारीप्रसाद द्विवेदी

    हजारीप्रसाद द्विवेदी

    स्रोत :
    • पुस्तक : वसंत (भाग-3) (पृष्ठ 25)
    • रचनाकार : हजारी प्रसाद द्विवेदी
    • प्रकाशन : एन.सी. ई.आर.टी
    • संस्करण : 2022
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    Rekhta Gujarati Utsav I Vadodara - 5th Jan 25 I Mumbai - 11th Jan 25 I Bhavnagar - 19th Jan 25

    Register for free