सोना बया न नीपजै
sona baya na nipajai
सोना बया न नीपजै, मोती लगै न डाल।
रूप उधारा नां मिले, भूलै फिरौ जमाल॥
सोना बोने से उपजता नहीं, मोती किसी डाल में नहीं फलता, रूप (लावण्य) कहीं से उधार नहीं मिल सकता; इनको प्राप्त करने के हेतु भ्रमवश भटकना नहीं चाहिए।
- पुस्तक : जमाल दोहावली
- संपादक : महावीर सिंह गहलोत
- प्रकाशन : पुस्तक भवन
- संस्करण : 1945
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