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निसि दिन गुंजत रहत जे

nisi din gunjat raht je

रसनिधि

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निसि दिन गुंजत रहत जे

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और अधिकरसनिधि

    निसि दिन गुंजत रहत जे, बिरद ग़रीब नेवाज।

    है निज मधुकर-सुतन की, कमल-नैन तुहि लाज॥

    हे कमल के समान नेत्रों वाले श्रीकृष्ण! जो तुम्हारे पुत्र रूपी भ्रमर रात-दिन तुम्हारे दीनदयालु के यश का बखान करते हुए मानो गूँजते रहते हैं, उनकी लाज तुम्हारे ही हाथों में हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : पुष्प-पराग (पृष्ठ 270)
    • संपादक : टेकचंद शास्त्री
    • रचनाकार : रसनिधि
    • प्रकाशन : भारती सदन, दिल्ली
    • संस्करण : 1955

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