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हरषि न बोली, लखि ललनु

harashi na boli, lakhi lalanu

बिहारी

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हरषि न बोली, लखि ललनु

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    हरषि बोली, लखि ललनु, निरखि अमिलु संग साथु।

    आँखिनु ही मैं हँसि, धर्यौ सीस हियँ धरि हाथु॥

    नायक के संग कुछ अपरिचित लोगों को देखकर उससे तो प्रसन्नता प्रकट करते बना और वह नायक से बोली ही। उसने केवल आँखों में हँसकर अपने हाथ को पहले हृदय पर रखा और फिर सिर पर रखा। इस प्रकार संकेत से प्रेम प्रदर्शन किया।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बिहारी सतसई (पृष्ठ 258)
    • संपादक : हरिचरण शर्मा
    • रचनाकार : बिहारी
    • प्रकाशन : श्याम प्रकाशन, जयपुर
    • संस्करण : 2007

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