बंधु भए का दीन के
bandhu bhae ka deen ke
बंधु भए का दीन के, को तार्यौ रघुराइ।
तूठे-तूठे फिरत हौ, झूठे बिरद कहाइ॥
भक्त अपने आराध्य को उपालंभ देता हुआ कहता है कि आप भाई भी बने तो दीन अर्थात् धर्मात्मा के। इसमें आपकी कोई बड़ाई नहीं है क्योंकि धर्मात्मा तो धर्मपरायण होने के कारण स्वतः ही भवसागर पार कर जाते हैं। हाँ, यदि मुझ जैसे पापी का उद्धार करते तो उसमें आपकी गरिमा होती है । हे रघुवंश के शिरोमणि, आप यह भी बता दीजिए कि अपनी मिथ्या कीर्ति पर आप प्रसन्न क्यों? जब आपने किसी पापी को तारा ही नहीं या किसी पापी का उद्धार ही नहीं किया तो आप पतिततारण की उपाधि पर प्रसन्नता का अनुभव क्यों कर रहे हैं?
- पुस्तक : बिहारी सतसई (पृष्ठ 206)
- संपादक : हरिचरण शर्मा
- रचनाकार : बिहारी
- प्रकाशन : श्याम प्रकाशन, जयपुर
- संस्करण : 2007
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