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अनल भखे शशि रति हितू

anal bhakhe shashi rati hitu

दयाराम

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अनल भखे शशि रति हितू

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    अनल भखे शशि रति हितू, चकोर गिनत ताप।

    भस्म होई भवभाल लगु, हुइ कबु मित्त मिलाप॥

    चकोर ताप की परवाह करके अंगारे खाता है। वह चाहता है कि भस्म होकर ही वह (अपने प्रिय के निकट) शिव के ललाट तक पहुँच जाए

    और शायद इसी बहाने प्रिय से मिलाप हो जाए।

    स्रोत :
    • पुस्तक : दयाराम सतसई (पृष्ठ 102)
    • संपादक : अंबाशंकर वागर
    • रचनाकार : दयाराम
    • प्रकाशन : गुजराती रिसर्च इंस्टिट्यूट अहमदाबाद
    • संस्करण : 1967

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