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हिन्दवी ब्लॉग

साहित्य और कला की विभिन्न विधाओं का संसार

मैं जब भी कोई किताब पढ़ता हूँ

मैं जब भी कोई किताब पढ़ता हूँ तो हमेशा लाल रंग की कलम या हाईलाइटर साथ में रखता हूँ। जो भी कोई शब्द, पंक्ति या परिच्छेद महत्त्वपूर्ण लग जाए या पसंद आ जाए वहाँ बेरहमी से क़लम या हाईलाइटर चला देता हूँ—चाह ...और पढ़िए

विपिन कुमार शर्मा | 07 सितम्बर 2023

प्रतिरोध का स्वर और अस्वीकार का साहस

जब नाथूराम का नाम लेते ज़ुबान ने हकलाना छोड़ दिया हो जब नेहरू को गालियाँ दी जा रही हों एक फ़ैशन की तरह और जब गांधी की हत्या को वध कहा जा रहा हो तब राजेश कमल तुम्हें किसी ने जाहिल ही कह ...और पढ़िए

अस्मुरारी नंदन मिश्र | 01 सितम्बर 2023

क्या हम परिवार को देश की तरह देख सकते हैं

हमारे सामने एक विकट प्रश्न खड़ा हो गया है। क्या हमारे परिवार खत्म हो जाएंगे? इस मामले में नहीं कि हमारे परिवार के लोग एक दूसरे से दूर रहने लगे हैं, दूर नौकरियां करने लगे हैं और कभी कभी ही मिल पाते है ...और पढ़िए

ऋषभ प्रतिपक्ष | 25 अगस्त 2023

'लिखना ख़ुद को बचाए रखने की क़वायद भी है'

संतोष दीक्षित सुपरिचित कथाकार हैं। ‘बग़लगीर’ उनका नया उपन्यास है। इससे पहले ‘घर बदर’ शीर्षक से भी उनका एक उपन्यास चर्चित रहा। संतोष दीक्षित के पास एक महीन ह्यूमर है और एक तीक्ष्ण दृष्टि जो समय को बेध ...और पढ़िए

अंचित | 21 अगस्त 2023

‘एक विशाल शरणार्थी शिविर में’

किताबों से अधिक ज़रूरत है दवाओं की। दवाओं से अधिक ज़रूरत है परिचित दिशाओं की। दिशाओं से अधिक ज़रूरत है एक कमरे की। किराए का पानी, किराए की बिजली और किराए की साँस लेने के बाद; ख़ुद को किराए पर देने क ...और पढ़िए

अतुल तिवारी | 20 अगस्त 2023

नकार को दिसंबर की काव्यात्मक आवाज़

कोई आहट आती है आस-पास, दिसंबर महीने में। नहीं, आहट नहीं, आवाज़ आती है। आवाज़ भी ऐसी जैसे स्वप्न में समय आता है। आवाज़ ऐसी, मानो अपने जैसा कोई जीवन हो, समस्त ब्रमांड के किसी अनजाने-अदेखे ग्रह पर। किसी ...और पढ़िए

प्रांजल धर | 20 अगस्त 2023

गद्य की स्वरलिपि का संधान

हिंदी के काव्य-पाठ को लेकर आम राय शायद यह है कि वह काफ़ी लद्धड़ होता है जो वह है; वह निष्प्रभ होता है, जो वह है, और वह किसी काव्य-परंपरा की आख़िरी साँस गोया दम-ए-रुख़सत की निरुपायता होता है। आख़िरी ब ...और पढ़िए

देवी प्रसाद मिश्र | 18 अगस्त 2023

चलो भाग चलते हैं

तो क्या हुआ अगर मैंने ये सोचा था कि तुम चाक पर जब कोई कविता गढ़ोगी, मैं तुम्हारे नाख़ूनों से मिट्टी निकालूँगा। तो क्या हुआ अगर सघन मुलाक़ातों की उम्मीद में हमने कई मुलाक़ातों को मुल्तवी किया। उन योजन ...और पढ़िए

अतुल तिवारी | 17 अगस्त 2023

क्या होम्स ब्योमकेश का पुरखा था...!

सारे दिन हवाएँ साँय-साँय करती रही। बारिश खिड़कियों से टकराती रही थी, जिससे इस विशाल लंदन में भी जो इंसानों ने बनाया है, हम अपनी दिनचर्या भूलकर प्रकृति की लीला के विषय में सोचने पर मजबूर हो गए थे। जो म ...और पढ़िए

उपासना | 08 अगस्त 2023

भूलने की कोशिश करते हुए

मई 2021 हम किसी दरवाज़े के सामने खड़े हों और भूल जाएँ कि दरवाज़े खटखटाने पर ही उन्हें खोला जाता है। ठीक दूसरी तरफ़ तुम जैसा ही कोई दूसरा हो जिसने आवाज़ें पहचाना बंद कर दिया हो और जो उस चौहद्दी को ...और पढ़िए

हरि कार्की | 16 जुलाई 2023