हिन्दवी ब्लॉग

साहित्य और कला की विभिन्न विधाओं का संसार

क्या होम्स ब्योमकेश का पुरखा था...!

सारे दिन हवाएँ साँय-साँय करती रही। बारिश खिड़कियों से टकराती रही थी, जिससे इस विशाल लंदन में भी जो इंसानों ने बनाया है, हम अपनी दिनचर्या भूलकर प्रकृति की लीला के विषय में सोचने पर मजबूर हो गए थे। जो म ...और पढ़िए

उपासना | 08 अगस्त 2023

भूलने की कोशिश करते हुए

मई 2021 हम किसी दरवाज़े के सामने खड़े हों और भूल जाएँ कि दरवाज़े खटखटाने पर ही उन्हें खोला जाता है। ठीक दूसरी तरफ़ तुम जैसा ही कोई दूसरा हो जिसने आवाज़ें पहचाना बंद कर दिया हो और जो उस चौहद्दी को ...और पढ़िए

हरि कार्की | 16 जुलाई 2023

‘कितना संक्षिप्त है प्रेम और भूलने का अरसा कितना लंबा’

प्रिय नेरूदा, तुम कविता की दुनिया में एक चमकता सितारा हो, जिसे एक युवा दूर पृथ्वी से हमेशा निहारता रहता है। उसकी इच्छा है कि उसके घर की दीवारें तुम्हारी तस्वीरों से भरी हों। भविष्य की उसकी यात्राओ ...और पढ़िए

गौरव गुप्ता | 15 जुलाई 2023

शहर, अतीत और अंत के लिए

शहर शहर अपने आपमें कितना कुछ समेटे रहता है—बहुत सारी त्रासदी, पलायन, सांप्रदायिक दंगे और बहुत सारी ख़ुशियाँ भी। आप बहुत दिनों तक अकेले पड़े रहते हैं—हॉस्टल के कमरें में, किसी लाइब्रेरी के एक कोने मे ...और पढ़िए

प्रदीप्त प्रीत | 14 जुलाई 2023

‘रेशमा हमारी क़ौम को गाती हैं, किसी एक मुल्क को नहीं’

थळी से बहावलपुर, बहावलपुर से सिंध और फिर वापिस वहाँ से अपने देस तक घोड़े, ऊँट आदि का व्यापार करना जिन जिप्सी परिवारों का कामकाज था; उन्हीं में से एक परिवार में रेशमा का जन्म हुआ। ये जिप्सी परिवार क़बी ...और पढ़िए

राजेंद्र देथा | 13 जुलाई 2023

उदास दिनों की पूरी तैयारी

शब-ओ-रोज़ छत पर जूठा था अमरूद। एक मिट्टी का दिया जिसमें सुबह, सोखे हुए तेल की गंध आती थी। कंघी के दांते टूट गए। आईने पर साबुन के झाग के सूखे निशान हैं। दहलीज़ पर अख़बारों का गट्ठर। चिट्ठीदान में नही ...और पढ़िए

निशांत कौशिक | 10 जुलाई 2023

कल कुछ कल से अलग होगा

…क्या ज़रूरी है कि आलोकधन्वा की कविताओं पर बात करते हुए यह बताया जाए कि वह एक आंदोलन से निकले हुए कवि हैं? क्या ज़रूरी है कि यह बताया जाए कि उनकी कविताएँ एक विशेष वैचारिक समझ की कविताएँ हैं? क्या ज़रूरी ...और पढ़िए

अविनाश मिश्र | 02 जुलाई 2023

‘भक्त भगवानों से लगातार पूछ रहे हैं कविता क्या है’

एक व्योमेश शुक्ल के अब तक दो कविता संग्रह, ‘फिर भी कुछ लोग’ और ‘काजल लगाना भूलना’ शाया हुए हैं—जिनमें तक़रीबन सौ कविताएँ हैं, कुछ ज़्यादा या कम। इन दोनों संग्रहों की‌ कविताओं पर पर्याप्त बातचीत-बहस ...और पढ़िए

अमन त्रिपाठी | 25 जून 2023

मैं अनुवाद कैसे करता हूँ

अनुवाद भाषाओं और संस्कृतियों के बीच संगम का काम करता है। हिंदी में बहुत सारे अनुवाद हुए और हो रहे हैं। लेकिन एक समय हिंदी में एक ऐसी पूरी पीढ़ी पनप रही थी जो अँग्रेज़ी अनुवादों के माध्यम से संसार भर क ...और पढ़िए

अरविंद कुमार | 24 जून 2023

कुछ नए-पुराने पूर्वग्रह

कुछ नए-पुराने पूर्वग्रह जो जाने-अनजाने हमारी भाषा में चले आते हैं : • 'मैंने जिसकी पूँछ उठाई, उसे मादा पाया है'—धूमिल ने आज अगर यह कविता-पंक्ति लिखी होती तो सोशल मीडिया पर उचित ही उनकी धज्जियाँ उड ...और पढ़िए

प्रियदर्शन | 23 जून 2023

जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

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