साहित्य और कला की विभिन्न विधाओं का संसार
आज यह सोचकर विस्मय होता है कि कभी मार्क्सवादी आलोचना ने नई कविता पर यह आक्षेप किया था कि ये कविताएँ ऐंद्रिक अनुभवों के आवेग में सामाजिक अनुभवों की उपेक्षा करती हैं। आज आधी सदी बाद जब काव्यानुभव में इ ...और पढ़िए
आशीष मिश्र | 07 अक्तूबर 2023
समय की समझदारी का चेहरा तत्कालीन पीढ़ियों के कई सारे लोग मिल कर बनाते हैं। समकालीन कविता के महत्त्वपूर्ण कवि-लेखक राजेश जोशी से उनकी रचनाओं के आस-पास या यूँ कहें उनके रचना-समय के आस-पास पिछले दिनों एक ...और पढ़िए
कुमार मंगलम | 04 अक्तूबर 2023
शहर शहर अपने आपमें कितना कुछ समेटे रहता है—बहुत सारी त्रासदी, पलायन, सांप्रदायिक दंगे और बहुत सारी ख़ुशियाँ भी। आप बहुत दिनों तक अकेले पड़े रहते हैं—हॉस्टल के कमरें में, किसी लाइब्रेरी के एक कोने मे ...और पढ़िए
प्रदीप्त प्रीत | 03 अक्तूबर 2023
हर बार जब आरा पहुँचता था, तो रामनिहाल गुंजन जी से ज़रूर मिलता था। इस बार 10 अप्रैल को पहुँचने के बाद उन्हें फ़ोन किया, तो उन्होंने बताया कि घर में कुछ काम लगा रखा है। मुझे लगा कि छत पर कोई कमरा बनवा रह ...और पढ़िए
सुधीर सुमन | 01 अक्तूबर 2023
इस सृष्टि में किसी के प्रेम में होना मनुष्य की सबसे बड़ी नेमत है। उसके सपनों के जीवित बचे रहने की एक उम्मीद भरी संभावना। मोमिन का एक मशहूर शे’र है : तुम मेरे पास होते हो गोया जब कोई दूसरा नहीं हो ...और पढ़िए
दया शंकर शरण | 29 सितम्बर 2023
हिंदी एक विचारधारा है और यह विचारधारा पुनरुत्थानवादी और सांप्रदायिक है जो किसी प्रतिगामी हिंदी राष्ट्रवाद से अभिज्ञापित की जा सकती है। भाषा एक विचारधारा हो सकती है, यह एक नया विचार है। इस तरह से द ...और पढ़िए
देवी प्रसाद मिश्र | 28 सितम्बर 2023
‘कवियों में बची रहे थोड़ी लज्जा’ मंगलेश डबराल की इस पंक्ति के साथ यह भी कहना इन दिनों ज़रूरी है कि प्रकाशकों में भी बचा रहे थोड़ा धैर्य―बनी रहे थोड़ी शर्म। कविता और लेखक के होने के बहुतायत में प् ...और पढ़िए
पंकज प्रखर | 26 सितम्बर 2023
आदिम युग से ही कृति के साथ कर्ता भी हमेशा ही कौतूहल का विषय बना रहा है। जो हमसे भिन्नतर है, वह ऐसा क्यों है, इसकी जिज्ञासा आगे भी बनी ही रहेगी। इन्हीं जिज्ञासाओं में एक जिज्ञासा का लगभग शमन करते हुए ...और पढ़िए
प्रज्वल चतुर्वेदी | 22 सितम्बर 2023
मैं गद्य का आदमी हूँ, कविता में मेरी गति और मति नहीं है; यह मैं मानता हूँ और कहता भी हूँ फिर भी यह इच्छा हो रही है कि आज की कविता के सरोकार तथा मूल्यबोध के बारे में कुछ स्याही ख़र्च करूँ। इस अनाधिकार ...और पढ़िए
हरी चरन प्रकाश | 22 सितम्बर 2023
...कहाँ से निकलती हैं कविताएँ? उनका उद्गम स्थल कहाँ-कहाँ पाया जा सकता है? आदर्श भूषण के यहाँ कविताएँ टीसों के भंगार से, विस्मृतियों की ओंघाई गति से, एक नन्हीं फुदगुदी की देख से, पूँजीवाद की दुर्गंध स ...और पढ़िए
प्रतिभा किरण | 20 सितम्बर 2023
जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली
टिकट ख़रीदिए